Tuesday 14 September 2021

नैना जोगिन--गांव की एक दबंग लड़की: (लेखक: फणीश्वरनाथ रेणु)

नाम तो उसका रतनी है, पर गांव में लोग उसे नैना जोगिन कहते हैं. पूरे गांव में उसका खौफ़ है. वह सरे आम किसी को भी गाली दे देती है, पर कोई कुछ पलटकर कहने की हिम्मत नहीं कर पाता. पर क्या नैना जोगिन की सिर्फ़ यही कहानी है? नहीं, इस चेहरे के पीछे भी एक चेहरा है, फणीश्वरनाथ रेणु की इस कहानी की नायिका का.

 

रतनी ने मुझे देखा तो घुटने से ऊपर खोंसी हुई साड़ी कोकोंचाकी जल्दी से नीचे गिरा लिया. सदा साइरेन की तरह गूंजनेवाली उसकी आवाज कंठनली में ही अटक गई. साड़ी की कोंचा नीचे गिराने की हड़बड़ी में उसकाआंचरभी उड़ गया.

 

उस संकरी पगडंडी पर, जिसके दोनों और झरबेरी के कांटेदार बाड़े लगे हों, अपनीभलमनसाहतदिखलाने के लिए गरदन झुका कर, आंख मूंद लेने के अलावा बस एक ही उपाय था. मैंने वही किया. अर्थात पलट गया. मेरे पीछे-पीछे रतनी ने अपने उघड़े हुएतन-बदनको ढंक लिया और उसके कंठ में लटकी हुई एक उग्र-अश्लील गाली पटाके की तरह फूट पड़ी.मैं लौट कर अपने दरवाज़े पर गया और बैठ कर रतनी की गालियां सुनने लगा.


नहीं, वह मुझे गाली नहीं दे रही थी. जिसकी बकरियों ने उसकेपाटका सत्यानाश किया है, उन बकरीवालियों को गालियां दे रही है वह. सारा गांव, गांव के बूढ़े-बच्चे-जवान, औरत-मर्द उसकी गालियां सुन रहे हैं. लेकिनलेकिन क्यों, शायद सच ही, उनके सुनने और मेरे सुनने में फ़र्क़ है.


 मैंसचेतन रुपेणअर्थात जिस तरह रेडियो से प्रसारित महत्वपूर्ण वार्ताएं सुनता हूं, इन गालियों को सुन रहा हूं. कान में उंगली डालने के ठीक विपरीतएक-एक गाली को कान में डाल रहा हूं. उसकी एक-एक गाली नंगी, अश्लील तसवीर बनाती हैब्लू फिल्मों के दृश्य.

 Pharanvis Renu
 

उदाहरण? उदाहरण दे करथाना-पुलिस-अदालत-फौजदारीको न्योतना नहीं चाहता.रमेसर की मां ने टोका शायद.

 

गांव-भर की बकरीवालियों को सार्वजनिक गालियां दागने के बाद रतनी ने रमेसर की मां केप्रजास्थानको लक्ष्य करके एक महास्थूल गाली दी. रमेसर की मां ने टोका,‘पहले खेत में चल कर देखो. एक भी पत्ती जो कहीं चरी हो.’

 

 रतनी अब तक इसी टोक की प्रतीक्षा में थी, शायद. अब उसकी बोली लयबद्ध हो गई. वह प्रत्येक शब्द पर विशेष बल दे कर, हाथ और उंगलियों से भाव बतला कर कहने लगी किवह पाट के खेत में जा कर क्या देखेगी, अपना?’ (भले घर की लड़की होती तो कहतीअपना सिर, किंतु रतनी सिर के बदले में अपने अन्य हिस्से का नाम लेती है.)

 

इसके बाद बहुत देर तक रतनी की बातें सुनता रहा. …लेकिन उन्हें लिख नहीं सकता. वारंट का डर है.

 

किंतु, रतनी के बारे में अब कुछ नहीं लिखा गया तो जीवन में कभी नहीं लिखा जाएगा. क्योंकि रतनी की गालियों में मर्माहत और अपमानित करने के अलावा उत्तेजित करने की तीव्र शक्ति है-यह मैं हलफ़ ले कर कह सकता हूं.

 

रतनी का नामनैना जोगिनमैंने ही दिया था, एक दिन. तब वह सात-आठ साल की रही होगी. …नैना जोगिन? देहात में झाड़-फूंक करनेवाले ओझा-गुणियों के हरमंतरके अंतिम आखर में बंधन लगाते हुए कहा जाता है-दुहाए इस्सर महादेव गौरा पारबती, नैना जोगिनइत्यादि. लगता है, कोई नैना जोगिन नाम की भैरवी ने इन मंत्रों को सिद्ध किया था.

 

सात साल की उम्र में ही रतनी ने गांव के एक धनी, प्रतिष्ठित वृद्ध कोफिलचक्करमें डाल दिया था. उसकी बेवा मां, वृद्ध की हवेली की नौकरानी थी. पंचायत में सात साल की रतनी ने अपना बयान जिस बुलंदी और विस्तार से दिया था, कोई जन्मजात नैना जोगिन ही दे सकती थी.

Pharanvis Renu


 अब तो उसकी जामुन की तरह कजराई आंखें भी उसके नाम को सार्थक करती हैं, किंतु सात साल की उम्र में ही इलाक़े में कहर मचानेवाली लड़की से आंख मिलाने की ताकत गांव के किसी बहके हुए नौजवान में भी नहीं हुई कभी. उसको देखते ही आंखों के सामने पंचायत, थाना, पुलिस, फौजदारी, अदालत, जेल नाचने लगते.

 

रतनी की मां सरकारी वक़ील को भी क़ानून सिखा आई है. …बहस कर आई है सेशन-कोर्ट में.

 

सो, पिछले ग्यारह वर्षों में रतनी की मां ने मुंह के ज़ोर से ही पंद्रह एकड़ जमीनअरजाहै. पिछवाड़े में लीची के पेड़ हैं, दरवाजे पर नींबू. सूद पर रुपए लगाती है. ‘दस पैसाहाथ में है और घर में अनाज भी. इसलिए अब गांव की ज़मींदारिन भी है वही.

 

 गांव के पुराने ज़मींदार और मालिक जब किसी रैयत पर नाराज़ होते तो इसी तरहग़ुस्सा उतारते थे. यानी उसकी बकरी, गाय वगैरह को परती ज़मीन पर से ही हांक कर दरवाज़े पर ले आते थे और गालियां देते, मार-पीट करते और अंगूठे का निशान ले कर ही ख़ुश होते थे.

 

रमेसर की मां कल हाट जाते समय लीची की टोकरी नहीं ले गई ढो कर, इसलिए रतनी और रतनी की मां ने आज इस झगड़े कासिरजनकिया हैजान-बूझ कर.

 

रमेसर का बाप मेरा हलवाहा है. रमेसर हमारे भैंसों का रखवाला यानीभैंसवारहै. रमेसर की मां हमारे घर बर्तन-बासन मांजती है, धान कूटती है. इसलिए रतना अब अपनी गालियों का मुख धीरे-धीरे हमारी ओर करने लगी,‘तू किसका डर दिखलाती है? सहर से आए भतार का? रोज मांस-मछली औरब्रांडिलपी कर तेरे (प्रजास्थान में) तेल बढ़ गया है. एं?

 

मुझे अचानक रमेसर की मां की गंदीहल्दी-प्याज़-लहसन पसीना-मैल की सम्मिलित गंध-भरी साड़ी की महक लगी. लगा, अब रतनी मुझे बेपर्द करेगी. नंगा करेगी. ख़ुद अपने को उसने पिछले एक घंटे में साठ बार नंगा किया है अर्थात जब-जब उसने गाली का रुख़ हमारी ओर किया, हर बार यह कहना ना भूली कि रमेसर की मां जिसका डर दिखलाती है वहमुनसा (व्यक्ति.) रतनी काअथिभी नहीं उखाड़ सकता.

 

ऐसे-ऐसेमद्दकी मुनसाको वह अपनेअथिमें दाहिने-बाएं बांध रखेगी. …बगुला-पंखी धोती-कुरता और घड़ी-छड़ी-जूतावाले शहरी छैलचिकनियां लोग ऊपर से लकदक और भीतर फोक होते हैं. …सफाचट मोंछ मुंडाए मुछमुंडा लोगों की सूरत देख कर भूलनेवाली बेटी नहीं रतनी. …रतनी की मां को इसका गुमान है कि बड़े-बड़े वकील-मुख्तार के बेटों को देख कर भी उसकी बेटी कीअथिअर्थात जीभ नहीं पनियायी कभी. डकार भी नहीं किया.

 

रतनी अपने आंगन से निकल आई थी. रमेसर की मां ने कोई जवाब दिया होगा शायद. अब रतनी और रतनी की मां दोनों मिल कर नाचने लगीं. उसका घर दरवाज़े से दस रस्सी दूर है, लेकिन सामने है.

 

मैं रतनी और रतनी की मां का नाच देखने को बाध्य था. रतनी की काव्य-प्रतिभा ने मुझे अचंभे में डाल दिया. उसकी टटकी और तुरत रची हुई पंक्तियों में वह सब कुछ था जो कविता में होता हैबिंब, प्रतीक, व्यंग्य तथा गंध.

 

बतौर बानगीअटना का साहब और पटना की मेम, रात खाए मुरगी और सुबह करे नेम, तेरा झुमका और नथिया और साबुन महकौवातू पान में जरदा खाए नखलौवा.

 

रतनी और रतनी की मां की यह काव्य-नाटिका समाप्त हुई तो मैंने दरवाज़े पर बैठेगांव के दो-तीन नौजवानों की ओर देखा. मेरा चेहरा तमतमाया हुआ था, किंतु वे निर्विकार और निर्मल मुद्रा में थे. परिवार तथापट्टीदारकेमर्द पुरुषोंकी ओर देखा, वे पान चबा रहे थे, हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे.

 

लगता था, इन लोगों ने रतनी की गालियां सुनी ही नहीं. मैंने जब भोजन के समय बात चलाई तो परिवार के एक व्यक्ति ने (जिन्हें शहर के नाम से ही जड़ैया बुखार धर दबाता है) हंस कर कहा,‘शहर से आने के बाद आप कुछ दिन तक ऐसी असभ्यता ही करेंगे, यह हमें मालूम है.

 

इन छोटे लोगों की गाली पर इस तरह ध्यान कोई भलामानुस नहीं देता. इस तरह गालियों के अर्थ को प्याज के छिलके की तरह उतार-उतार कर समझने का क्या मतलब? शहर में क्या औरतें गाली नहीं देतीं?’

 

अजब इंसाफ हैगाली सुन कर समझना अन्याय है. असभ्यता है. मन में मैल है मेरे?

 

अश्लील और घिनौने मुकदमे के कारण रतनी की बदनामी बचपन से ही फैलती गई. जवान हुई तो बदनामियां भी जवान हुईं. फलत: गांव के हिसाब सेपकजाने पर भी कोई दूल्हा नहीं मिला. मिलता भी तोघर-जमाईहो कर नहीं रहना चाहता था.

 

दो साल हुए, निमोंछिया जवान जाने किस गांव से आया सांझ में और रात में भात खाने के लिए घर के अंदर गया तो रतनी की मां एक हाथ में सिंदूर की पुड़िया और दूसरे में फरसा लेकर खड़ी थी–‘छदोड़ी की सीथ में सिंदूर डालो, नहीं तो अभी हल्ला करती हूं, घर में चोर घुसा है.’…तो सींकिया नौजवान जो हर सुबह को शीशम की कोमल पत्तियां तोड़ कर ले जाता है, वही है रतनी का रतन-धन.

 

पूछताछ करने पर पता चला कि हाल ही में एक रात को रतनी ने इसको लात से मारा, घर से निकाल कर चिल्लाने लगी,‘पूछे कोई इससे कि इतना दूध, मलाई, दही, मांस-मछली, कबूतर तिस परधात-पुष्टईदवा, तो अलान-ढेकान खा कर भी जिसमर्दको आधी रात को हंफनी सुरु हो, उसका क्या कहा जाए? लोगदोखदेते हैं मेरे कोख को, कि रतनी बांझ है. निमकहराम और किसको कहते हैं?’

 

मैं अब इसे मानसिक विकार मानने लगा हूं. अब तकसामाजिकसमझ रहा था कि छोटी जात की औरत गांव की मालकिन हुई है.

 

नहीं, सामाजिक भी है. मेरे पट्टीदार के एक भाई ने कहा,‘कोई उसका क्या बिगाड़ सकता है. गांव के सभी किस्म के चोर अर्थात लती-पती और सिन्नाजोर दिन डूबते ही उसके आंगन में जमा हो जाते हैं. इलाके का मशहूर डकैत परमेसरा रतनी की बात पर उठता-बैठता है.

 

मुखिया और सरपंच रतनी की मां के खिलाफ चूं भी नहीं कर सकते. …रतनी की मां से कोईरारमोल नहीं लेना चाहता इसीलिए, दिन-भर गांव के हर टोले में दोनों घूम-घूम कर झगड़ा करती फिरती है. …रतनी अकेली खस्सी (बकरे) को जिबह कर देती है, रतनी की मां चोरी का माल खरीदती हैथाली-लोटा-गिलास.’

 

सुबह को मालूम हुआ, शहर से आया हुआ मेरा प्रेस्टिज प्रेशर कुकर ग़ायब है. दोपहर के बाद धोती गुम. रात में रमेसर की मां फिसफिसा कर आंगन में कह रही थी,‘रतनी बोलती थी किसिधकरके छोड़ेगी इस बार. …उस दिन इस तरह पीठ दिखाना अच्छा नहीं हुआ शायद.’

 

और यह सब इसलिए कि मैंने रतनी के तथाकथितपुरुषको बुला कर उसका पता-ठिकाना पूछा था, और उसको समझाया था कि गांव में अब एक नई बात चल पड़ी है. उसने बीवी की मार सह लीनतीजा यह हुआ है कि कई औरतों ने अपने घरवालों को पीटा इस गांव में.

 

रतनी ने चिल्ला-चिल्ला कर सारे गांव के लोगों को सूचना देने के लहजे से सुनाया था,‘सुन लो हो लोगों. अब इस गांव में फिर एक सेसन मोकदमा उठेगा सो जान लो. सहर का कानून यहां छांटने आया है. कोई अपने घरवाले को लात मारे याचुम्माले, दूसरा कोई बोलनेवाला कौन? देहात से ले कर सहर तक तोछुछुआतेफिरता है, काहे कोईमौगीमुंह में चुम्मा लेती है?’

 

मैं रोज़ हारता, रतनी रोज़ जीतती. मुझे स्वजनों ने सतर्क कियासांझ होने के पहले ही मैदान से घर लौट आया करूं. किसी ने शहर लौट जाने की सलाह दी. मुझे लगता, रोज ताल ठोक कर एक नंगी औरत-पहलवान मुझे चुनौती देती है. थप्पड़-घूंसे चलाती है. भागूंगा तो गांव की सीमा के बाहर तक पीछे-पीछे फटा कनस्तर पीटती और बकरे की तरहबो बो बो बोकरती जाएगी, गांव-भर के लोग तालियां बजा कर हंसेंगे.

 

मुझे हथियार डाल देना चाहिए. एक औरत, सो भी ऐसी औरत से टकराना बुद्धिमानी नहीं. एक सप्ताह तक चोरी-चपाटी करवाने के बाद एक नया उत्पात शुरू किया. रात-भर हमारे दरवाज़े और आंगन में हड्डियों कीबरखाहोती. …नंगी औरत ताल ठोक कर ललकार रही हैमर्द का बेटा है तो मैदान में

 

मैदान में मुझे उतरना ही पड़ा. रात में नींद खुली. दरवाज़े के सामने जो नया बाग़ हम लोगों ने लगाया है, उसमें भैंस का बच्चा घुस गया है, शायद. मैं धीरे-धीरे बाड़े के पास गया. पट्ट.

 

अमलतास के कोमल पौधे को तोड़ कर, गुलमोहर की ओर बढ़ते हुए हाथ को मैंनेखप्पसे पकड़ा. कलम-घिसाई के बावजूद पंजे की पकड़ में अब तक खम बचा हुआ था. …‘क्यों?’ मैंने बहुत धीरे से पूछा.

 

छोड़िए.’ जवाब भी उसी अंदाज में मिला.

क्यों तोड़ा है? क्या मिला? क्यों?’

तोड़ा तो क्या कर लीजिएगा?’

मैं लोगों को पुकारता हूं.’

खुद फंस जाइएगा. …हाथ छोड़िए.’

फंसा के देखो. मैं नहीं डरता हूं.’

क्या चाहते है आप?’

मैं जानना चाहता हूं कि तुमतुम इस तरह मेरे पीछे क्यों पड़ी हो? इस पौधे को क्यों तोड़ा है?’

 

वह तो पौधा ही है. जी तो आप को ही तोड़ देने को करता है. …हाथ छोड़िए.’ मैंने देखा उसकी कनपटी पर एक सांप का फणफण नहीं, भाला. बरछे की फली. मैंने हाथ छोड़ दिया. वह भागी नहीं, खड़ी रही. मुझे चुप और अवाक देख कर बोली,‘चिल्लाऊं?’

 

कोढ़ी डरावे थूक से.’

रतनी हंसी. तारों की रोशनी में उसकी हंसी झिलमिलाई.

जाइए, थोड़ाब्रांडिलऔर चढ़ाइए.’

तुमतुम नैना जोगिन.’

 

हां, नैना जोगिन ही हूं. तब? माधो बाबूअब रतनी करीब सट आई,‘मेरा क्या कसूर है जो बारह साल से बनवास दिए हुए हैं आप लोग. उस बूढ़े को करनी का फल चखाया तो क्या बेजा किया?

 

मैं उस समय उसकी पोती की उम्र की थी. …सो, आप लोगों ने खासकर आप दोनों भाइयो ने हम लोगों कोरंडीसे बदतर कर दिया. …आखिर आपके जन्म के दिन रतनी की मां ही सौर-घर में थीपांच साल तक आप रतनी की मां की गोद और आंचर में रहे, और आप की आंख में जरा भी पानी नहीं.

 

मैं जवान हुई, आप लोगों ने आंख उठा कर कभी देखा नहीं कि आखिर गांव-घर की एक लड़की ऐसी जवान हो गई और शादी क्यों नहीं होती? …अब इस बार आए हैं तो कभी आपके मन में यह नहीं हुआ कि रतनी की शादी हुए ढाई साल हो रहे हैं और रतनी को कोई बच्चा क्यों हुआ?

 

अटना-पटना-दिल्ली-दरभंगा में आपके इतने डागडर-डागडरनी जान-पहचान के हैंआखिर, रतनी के मां का दूध साल-भर तक पिया है आपने. रतनी की मां को बहुत दिन तक आपने मां कहा था, लोगों को याद है. …दूध का भी एक संबंध होता है.’

 

मैंने कहा,‘रतनी. रमेसर जग रहा है.मैं कुछ नहीं समझता. तुम जाओ. कोई देख लेगा.’

देख कर क्या कर लेगा?’

 

रतनी ने बेलाग-बेलौस एक अश्लील बात अंधेरे में, आग की तरह उगल दी,‘देख कर आपकाअथिऔर मेराअथिउखाड़ लेगा? …बोलिए, मैं पापिन हूं? मैं अछूत हूं? रंडी हूं? जो भी हूं, आपकी हवेली में पली हूंतकदीर का फेरमाधो बाबूरतनी नाम भी आपके ही बाबू जी का दिया है.

 

आपने उसको बिगाड़ कर नैना जोगिन दिया. किस कसूर पर? आप लोगों का क्या बिगाड़ा था रतनी की मां ने जो इस तरह बोल-चाल, उठ-बैठ एकदम बंद.’

 

मैंने धीरे से कहा,‘ऐसे गांव में अब कोई भला आदमी कैसे रह सकता है?’

लगा, नागिन को ठेस लगी, फुफकार उठी,‘भला-आदमी? भला आदमी? भला आदमी कोपूछ-सिंगहोता है?’

नहीं होता है. इसीलिए.’

 

पूछ-सिंगजानवरऔरत-मर्दनंगेबेपर्दअंधकारप्रकाशगुर्राहटआंखों की चमकबड़े-बड़े नाखूनबिल्लीशिवागॄद्धासयायोनिस्या भगिनीभोगिनीमहांकुशस्वरूपछिन्नमस्ता अट्टहास.अट्टहास सुन कर चौंकारतनी कहां है? वह तो साक्षात नील सरस्वती थी.

 

इस बार गांव में, गांव के आसपास, यह ख़बर बहुत तेज़ी से फैली की नैना जोगिन काजोगमाधो बाबू पर ख़ूब ठिकाने से लगा है. …रमेसर की मां को एक दिन खोई हुई चीज़ें टोकरी में मिलींघर में ही. रतनी ने माधो बाबू कोभेड़ाबनाया है तो माधो बाबू ने रतनी काविषदंतउखाड़ दिया है. बोले तो एक भी गाली-गंदी या अच्छी?

 

रतनी और उसके नामर्द मर्द को मैं अपने साथ शहर लेता आया हूं. डॉक्टर को अचरज होता है कि मैं रतनी के लिए इतना चिंतित क्यों हूं. उन्हें कैसे समझाऊं कि यदि रतनी को कोई बच्चा नहीं हुआ तो वहवह मेरे बाग के हर पौधे तोड़ देगी, गांव के सभी पेड़-पौधे को तोड़ देगी, गांव के सभी लोगों को तोड़ेगी, गांव में हड्डियां बरसावेगी, नंगी नाचेगी, अश्लील गालियां देती हुई सभी को ललकारेगी.

 

वह सांवली-सलोनी लंबी स्वरूप पूर्ण यौवना नैना जोगिन. जांच-पड़ताल के समय जब रतनी की लंबाई नापी जाती है, वज़न लिया जाता है, पेट टटोला जाता हैतोमेडिकल कॉलेज की लेडी स्टूडेंट्स से ले कर डॉक्टर तक हैरत से मुंह बाए रहते हैं. औरत, ऐसी?

 

पांच दिन हुए हैं, पड़ोस के मलहोत्रा साहब की नौकरानी को दो दिन वह फ़्लैट के नीचे उठा कर फेंकने की धमकी दे चुकी है. …शहर की सड़ी हुई गरमी को रोज पांच अश्लील गालियां देती है.

 

उसका घरवाला गांव लौटने को कुनमुनाता है तो वह घुड़क देती हैहां, जब गई हूं तो यहां हो चाहे लहेरिया सराय, चाहे कलकत्ताजहां से हो, कोख तो भरके ही लौटूंगी, गांव तुमको जाना हो तो माधो बाबू टिकस कटा कर गाड़ी में बैठा देंगे. मैं किस मुंह से लौटूंगी खाली?’

 कोई जादू जानती है सचमुच रतनी.कोई शब्द उसके मुंह में अश्लील नहीं लगता.

The End

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