Tuesday, 16 July 2024

शारदा: कहानी मंटो - शारदा कुछ कहने वाली थी कि डरबे से किसी बच्चे के रोने की आवाज़ आई। लड़की उठी नज़ीर ने उसे रोका कहाँ जा रही हैं आप

नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़ज़ में लिपटी हुई बोतल ली तो उस वक़्त ग्यारह बजे थे दिन के। यूं तो वो रात को पीने का आदी था मगर उस रोज़ मौसम ख़ुशगवार होने के बाइस वो चाहता था कि सुब्ह ही से शुरू करदे और रात तक पीता रहे।

 

बोतल हाथ में पकड़े वो ख़ुश ख़ुश घर की तरफ़ रवाना हुआ। उस का इरादा था कि बोरी बंदर के स्टैंड से टैक्सी लेगा। एक पैग उस में बैठ कर पीएगा और हल्के हल्के सुरूर में घर पहुंच जाएगा। बीवी मना करेगी तो वो उस से कहेगा। मौसम देख कितना अच्छा। फिर वो उसे वो भोंडा सा शेअर सुनाएगा

की फ़रिश्तों की राहबर ने बंद

जो गुनाह कीजीए सवाब है आज

 

वो कुछ देर ज़रूर चीख़ करेगी, लेकिन बिल-आख़िर ख़ामोश हो जाएगी और उस के कहने पर क़ीमे के पराठे बनाना शुरू कर देगी।

 

दुकान से बीस पचीस गज़ दूर गया होगा कि एक आदमी ने उस को सलाम किया। नज़ीर का हाफ़िज़ा कमज़ोर था। उस ने सलाम करने वाले आदमी को पहचाना, लेकिन उस पर ये ज़ाहिर किया कि वो उस को नहीं जानता, चुनांचे बड़े अख़लाक़ से कहा।क्यूं भई कहाँ होते हो। कभी नज़र ही नहीं आए

 

उस आदमी ने मुस्कुरा कर कहा।हुज़ूर, मैं तो यहीं होता हूँ। आप ही कभी तशरीफ़ नहीं लाए”?

नज़ीर ने उस को फिर भी पहचाना।मैं अब जो तशरीफ़ ले आया हूँ

तो चलीए मेरे साथ

 

नज़ीर उस वक़्त बड़े अच्छे मूड में था।चलो

उस आदमी ने नज़ीर के हाथ में बोतल देखी और मानी ख़ेज़ तरीक़े पर मुस्कुराया।

बाक़ी सामान तो आप के पास मौजूद है

 

ये फ़िक़रा सुन कर नज़ीर ने फ़ौरन ही सोचा कि वो दलाल है।तुम्हारा नाम क्या है

करीम.....आप भूल गए थे”!

नज़ीर को याद आगया कि शादी से पहले एक करीम उस के लिए अच्छी अच्छी लड़कीयां लाया करता था। बड़ा ईमानदार दलाल था। उस को ग़ौर से देखा तो सूरत जानी पहचानी मालूम हुई। फिर पिछले तमाम वाक़ियात उस के ज़ेहन में उभर आए। करीम से उस ने माज़रत चाही।यार मैंने तुम्हें पहचाना नहीं था। मेरा ख़याल है। ग़ालिबन छः बरस होगए हैं तुम से मिले हुए

जी हाँ

 

तुम्हारा अड्डा तो पहले ग्रांट रोड काना का हुआ करता था”?

करीम ने बीड़ी सुलगाई और ज़रा फ़ख़्र से कहा।मैंने वो छोड़ दिया है। आप की दुआ से अब यहां एक होटल में धंदा शुरू कर रख्खा है

नज़ीर ने उस को दाद दी।ये बहुत अच्छा किया तुम ने”?

 

करीम ने और ज़्यादा फ़ख़्रिया लहजे में कहा।दस छोकरियाँ हैं......एक बिल्कुल नई है

 

नज़ीर ने उस को छेड़ने के अंदाज़ में कहा।तुम लोग यही कहा करते हो।करीम को बुरा लगा। क़सम क़ुरआन की, मैंने कभी झूट नहीं बोला। सोर खाऊं अगर वो छोकरी बिल्कुल नई हो फिर उस ने अपनी आवाज़ धीमी की और नज़ीर के कान के साथ मुँह लगा कर कहा।

 

आठ दिन हुए हैं जब पहला पैसन्ज़र आया था। झूट बोलूँ तो मेरा मुँह काला हो

नज़ीर ने पूछा।कुंवारी थी”?

जी हाँ…… दो सौ रुपये लिए थे उस पैसन्ज़र से”?

नज़ीर ने करीम की पसुलियों में एक ठोंका दिया।लो, यहीं भाव पक्का करने लगे

 

करीम को नज़ीर की ये बात फिर बुरी लगी।क़सम क़ुरआन की, सोर हो जो आप से भाव करे आप तशरीफ़ ले चलीए। आप जो भी देंगे मुझे क़ुबूल होगा। करीम ने आप का बहुत नमक खाया है

 

नज़ीर की जेब में उस वक़्त साढे़ चार सौ रुपये थे। मौसम अच्छा था। मूड भी अच्छा था। वो छः बरस पीछे के ज़माने में चला गया। बिन पिए मसरूर था।चलो यार आज तमाम अय्याशियां रहीं...... एक बोतल का और बंद--बस्त हो जाना चाहिए

 

करीम ने पूछा।आप कितने में लाए हैं ये बोतल”?

पैंतीस रुपये में

कौन सा ब्रांड है”?

जूनी वॉकर”!

 

करीम ने छाती पर हाथ मार कर कहा।मैं आप को तीस में लादूंगा

नज़ीर ने दस दस के तीन नोट निकाले और करीम के हाथ में दे दिए।

नेकी और पूछ पूछ……. ये लो। मुझे वहां बिठा कर तुम पहला काम यही करना। तुम जानते हो, मैं ऐसे मुआमलों में अकेला नहीं पिया करता।

 

करीम मुस्कुराया।और आप को याद होगा। मैं डेढ़ पैग से ज़्यादा नहीं पिया करता

 

नज़ीर को याद आगया कि करीम वाक़ई आज से छः बरस पहले सिर्फ़ डेढ़ पैग लिया करता था।

 

ये याद करके नज़ीर भी मुस्कुराया।आज दूर हैं

जी नहीं।डेढ़ से ज़्यादा एक क़तरा भी नहीं

 

करीम एक थर्ड क्लास बिल्डिंग के पास ठहर गया। जिस के एक कोने में छोटे से मैले बोर्ड पर मेरीना होटल लिखा था। नाम तो ख़ूबसूरत था। मगर इमारत निहायत ही ग़लीज़ थी। सीढ़ीयां शिकस्ता। नीचे सौ ख़्वार पठान बड़ी बड़ी शलवारें पहने खाटों पर लेटे हुए थे। पहली मंज़िल पर क्रिस्चियन आबाद थे। दूसरी मंज़िल पर जहाज़ के बेशुमार ख़लासी। तीसरी मंज़िल होटल के मालिक के पास थी। चौथी मंज़िल पर कोने का एक कमरा करीम के पास था जिस में कई लड़कीयां मुर्ग़ीयों की तरह अपने डरबे में बैठी थीं।

 

करीम ने होटल के मालिक से चाबी मंगवाई। एक बड़ा लेकिन बेहंगम सा कमरा खोला जिस में लोहे की एक चारपाई, एक कुर्सी और एक तिपाई पड़ी थी। तीन अतराफ़ से ये कमरा खुला था, यानी बेशुमार खिड़कियां थीं, जिन के शीशे टूटे हुए थे और कुछ नहीं, लेकिन हवा की बहुत इफ़रात थी।

 

करीम ने आराम--कुर्सी जो कि बेहद मैली थी, एक उस से ज़्यादा मैले कपड़े से साफ़ की और नज़ीर से कहा।तशरीफ़ रखिए, लेकिन मैं ये अर्ज़ कर दूं। इस कमरे का किराया दस रुपये होगा

 

नज़ीर ने कमरे को अब ज़रा ग़ौर से देखा।दस रुपये ज़्यादा हैं यार”?

करीम ने कहा।बहुत ज़्यादा हैं, लेकिन क्या किया जाये। साला होटल का मालिक ही बनिया है। एक पैसा कम नहीं करता।और नज़ीर साहब मौज शौक़ करने वाले आदमी भी ज़्यादा की परवाह नहीं करते

 

नज़ीर ने कुछ सोच कर कहा।तुम ठीक कहते हो……. किराया पेशगी दे दूं”?

जी नहीं…… आआप पहले छोकरी तो देखिए ये कह कर वो अपने डरबे में चला गया।

 

थोड़ी देर के बाद वापिस आया तो उस के साथ एक निहायत ही शर्मीली लड़की थी। घरेलू क़िस्म की

 

लड़की सफ़ेद धोती बांधे थी। उम्र चौदह बरस के लग भग होगी। ख़ुश शक्ल तो नहीं थी, लेकिन भोली भाली थी।

करीम ने उस से कहा।बैठ जाओ। ये साहब मेरे दोस्त हैं। बिल्कुल अपने आदमी हैं

 

लड़की नज़रें नीचे किए लोहे की चारपाई पर बैठ गई। करीम ये कह कर चला गया।अपना इतमीनान कर लीजिए नज़ीर साहब…… में गिलास और सोडा लाता हूँ

 

नज़ीर आराम--कुर्सी पर से उठ कर लड़की के पास बैठ गया। वो सिमट कर एक तरफ़ हट गई। नज़ीर ने उस से छः बरस पहले के अंदाज़ में पूछा।आप का नाम

 

लड़की ने कोई जवाब दिया। नज़ीर ने आगे सरक कर उस के हाथ पकड़े और फिर पूछा।आप का नाम क्या है जनाब”?

लड़की ने हाथ छुड़ा कर कहा।शकुंतला

और नज़ीर को शकुंतला याद आगई। जिस पर राजा दशनीत आशिक़ हुआ था।मेरा नाम दुश्यंत है

 

नज़ीर मुकम्मल अय्याशी पर तुला हुआ था। लड़की ने उस की बात सुनी और मुस्कुरा दी। इतने में करीम गया। उस ने नज़ीर को सोडे की चार बोतलें दिखाईं जो ठंडी होने के बाइस पसीना छोड़ रही थीं।मुझे याद है कि आप को रोजर का सोडा पसंद है बर्फ़ में लगा हुआ लेकर आया हूँ

 

नज़ीर बहुत ख़ुश हुआ।तुम कमाल करते हो फिर वो लड़की से मुख़ातब हुआ।जनाब आप भी शौक़ फ़रमाएंगी”?

 

लड़की ने कुछ कहा।करीम ने जवाब दिया। नज़ीर साहब। ये नहीं पीती। आठ दिन तो हुए हैं इस को यहां आए हुए

 

ये सुन कर नज़ीर को अफ़सोस सा हुआ।ये तो बहुत बुरी बात है

करीम ने विस्की की बोतल खोल कर नज़ीर के लिए एक बड़ा पैग बनाया और उस को आँख मार कर कहा।आप राज़ी कर लीजिए इसे

 

नज़ीर ने एक ही जर्रे में गिलास ख़त्म किया। करीम ने आधा पैग पिया। फ़ौरन ही उस की आवाज़ नशा आलूद हो गई। ज़रा झूम कर उस ने नज़ीर से पूछा।छोकरी पसंद है ना आप को”?

 

नज़ीर ने सोचा कि लड़की उसे पसंद है कि नहीं। लेकिन वो कोई फ़ैसला कर सका।

 

उस ने शकुंतला की तरफ़ ग़ौर से देखा। अगर इस का नाम शकुंतला होता बहुत मुम्किन है वो उसे पसंद कर लेता। वो शकुंतला जिस पर राजा दुश्यंत शिकार खेलते खेलते आशिक़ हुआ था। बहुत ही ख़ूबसूरत थी। कम अज़ कम किताबों में यही दर्ज था कि वो चंदे आफ़ताब चंदे माहताब थी। आहू चश्म थी। नज़ीर ने एक बार फिर अपनी शकुंतला की तरफ़ देखा।

 

उसकी आँखें बुरी नहीं थीं। आहू चश्म तो नहीं थी, लेकिन उस की आँखें उस की अपनी आँखें थीं। काली काली और बड़ी बड़ी। उस ने और कुछ सोचा और करीम से कहा।ठीक है यार……... बोलो मुआमला कहाँ तै होता है’?

 

करीम ने आधा पैग अपने लिए और उंडेला और कहा।सौ रुपये”!

नज़ीर ने सूचना बंद कर दिया था।ठीक है”!

 

करीम अपना दूसरा आधा पैग पी कर चला गया। नज़ीर ने उठ कर दरवाज़ा बंद कर दिया। शकुंतला के पास बैठा तो वो घबरा सी गई। नज़ीर ने उस का प्यार लेना चाहा तो वो उठ कर खड़ी हुई। नज़ीर को उस की ये हरकत नागवार महसूस हुई। लेकिन उस ने फिर कोशिश की। बाज़ू से पकड़ कर उस को अपने पास बिठाया।

 

ज़बरदस्ती उस को चूमा। बहुत ही बे-कैफ़ सिलसिला था। अलबत्ता विस्की का नशा अच्छा था। वो अब तक छः पैग पी चुका था और उस को अफ़सोस था कि इतनी महंगी चीज़ बिल्कुल बे कार गई है इस लिए कि शकुंतला बिल्कुल अल्हड़ थी। उस को ऐसे मुआमलों के आदाब की कोई वाक़फ़ियत ही नहीं थी।

 

नज़ीर एक अनाड़ी तैराक के साथ इधर उधर बे कार हाथ पांव मारता रहा। आख़िर उकता गया।दरवाज़ा खोल कर उस ने करीम को आवाज़ दी जो अपने डरबे में मुर्ग़ीयों के साथ बैठा था। आवाज़ सुन कर दौड़ा आया।क्या बात है नज़ीर साहब”?

 

नज़ीर ने बड़ी नाउम्मीदी से कहा।कुछ नहीं यार। ये अपने काम की नहीं है”?

क्यूं”?

कुछ समझती ही नहीं

 

करीम ने शकुंतला को अलग ले जा कर बहुत समझाया। मगर वो समझ सकी। शर्माई, लजाई, धोती सँभालती कमरे से बाहर निकल गई। करीम ने उस पर कहा।मैं अभी हाज़िर करता हूँ

 

नज़ीर ने उस को रोका।जाने दो……. कोई और ले आओ।लेकिन उस ने फ़ौरन ही इरादा बदल लिया।वो जो तुम्हें रुपये दिए थे, उस की बोतल ले आओ और शकुंतला के सिवा जितनी लड़कीयां इस वक़्त मौजूद हैं उन्हें यहां भेज दो...... मेरा मतलब है जो पीती हैं। आज और कोई सिलसिला नहीं होगा। उस के साथ बैठ कर बातें करूंगा और बस”!

 

करीम नज़ीर को अच्छी तरह समझता था। उस ने चार लड़कीयां कमरे में भेज दीं। नज़ीर ने उन सब को सरसरी नज़र से देखा, क्यूं कि वो अपने दिल में फ़ैसला कर चुका था कि प्रोग्राम सिर्फ़ पीने का होगा। चुनांचे उस ने उन लड़कीयों के लिए गिलास मंगवाए और उन के साथ पीना शुरू कर दिया। दोपहर का खाना होटल से मंगवा कर खाया और शाम के छः बजे तक उन लड़कीयों से बातें करता रहा। बड़ी फ़ुज़ूल क़िस्म की बातें, लेकिन नज़ीर ख़ुश था। जो कोफ़्त शकुंतला ने पैदा की थी। दूर होगई थी।

 

आधी बोतल बाक़ी थी, वो साथ लेकर घर चला गया। पंद्रह रोज़ के बाद फिर मौसम की वजह से उस का जी चाहा कि सारा दिन पी जाये। सिगरेट वाले की दुकान से ख़रीदने के बजाय उस ने सोचा क्यूं करीम से मिलूं, वो तीस में दे देगा। चुनांचे वो उस के होटल में पहुंचा। इत्तिफ़ाक़ से करीम मिल गया। उस ने मिलते ही बहुत हौले से कहा।नज़ीर साहब, शकुंतला की बड़ी बहन आई हुई है। आज सुबह ही गाड़ी से पहुंची है……. बहुत हटीली है। मगर आप उस को ज़रूर राज़ी कर लेंगे

 

नज़ीर कुछ सोच सका। उस ने अपने दिल में इतना कहा।चलो देख लेते हैं

 

लेकिन उस ने करीम से कहा।तुम पहले यार विस्की ले आओ ये कह कर उस ने तीस रुपये जेब से निकाल कर करीम को दिए।

करीम ने नोट लेकर नज़ीर से कहा।मैं ले आता हूँ। आप अंदर कमरे में बैठें

 

नज़ीर के पास सिर्फ़ दस रुपये थे, लेकिन वो कमरे का दरवाज़ा खुलवा कर बैठ गया। उस ने सोचा था कि विस्की की बोतल लेकर एक नज़र शकुंतला की बहन को देख कर चल देगा। जाते वक़्त दो रुपये करीम को दे देगा।

 

तीन तरफ़ से खुले हुए हवादार कमरे में निहायत ही मैली कुर्सी पर बैठ कर उस ने सिगरेट सुलगाया और अपनी टांगें रख दीं। थोड़ी ही देर के बाद आहट हुई। करीम दाख़िल हुआ। उस ने नज़ीर के कान के साथ मुँह लगा कर हौले से कहा।

 

नज़ीर साहब रही है। लेकिन आप ही राम की जीएगा उसे

ये कह कर वो चला गया। पाँच मिनट के बाद एक लड़की जिस की शक्ल--सूरत क़रीब क़रीब शकुंतला से मिलती थी। तीवड़ी चढ़ाए, शकुंतला के से अंदाज़ में सफ़ेद धोती पहने कमरे में दाख़िल हुई। बड़ी बे-परवाई से उस ने माथे के क़रीब हाथ ले जा करआदाबकहा और लोहे के पलंग पर बैठ गई। नज़ीर ने यूं महसूस किया कि वो उस से लड़ने आई है। छः बरस पीछे के ज़माने में डुबकी लगा कर वो उस से मुख़ातब हुआ।आप शकुंतला की बहन हैं

 

उस ने बड़े तीखे और ख़फ़्गी आमेज़ लहजे में कहा।जी हाँ

नज़ीर थोड़ी देर के लिए ख़ामोश हो गया। उस के बाद उस लड़की को जिस की उम्र शकुंतला से ग़ालिबन तीन बरस बड़ी थी। बड़े ग़ौर से देखा। नज़ीर की ये हरकत उस को बहुत नागवार महसूस हुई। वो बड़े ज़ोर से टांग हिला कर उस से मुख़ातब हुई।आप मुझ से क्या कहना चाहते हैं

 

नज़ीर के होंटों पर छः बरस पीछे की मुस्कुराहट नुमूदार हुई।जनाब आप इस क़दर नाराज़ क्यूं हैं”?

 

वो बरस पड़ी।मैं नाराज़ क्यूं हूँ....... ये आप का करीम मेरी बहन को जयपुर से उड़ा लाया है। बताईए आप मेरा ख़ून नहीं खोलेगा। मुझे मालूम हुआ है कि आप को भी वो पेश की गई थी”?

 

नज़ीर की ज़िंदगी में ऐसा मुआमला कभी नहीं आया था। कुछ देर सोच कर उस ने उस लड़की से बड़े ख़ुलूस के साथ कहा।शकुंतला को देखते ही मैंने फ़ैसला कर लिया था। कि ये लड़की मेरे काम की नहीं। बहुत अल्हड़ है।मुझे ऐसी लड़कीयां बिल्कुल पसंद नहीं। आप शायद बुरा मानें। लेकिन ये हक़ीक़त है कि मैं उन औरतों को बहुत ज़्यादा पसंद करता हूँ जो मर्द की ज़रूरीयात को समझती हों

 

उस ने कुछ कहा। नज़ीर ने उस से दरयाफ़्त किया।आप का नाम

शकुंतला की बहन ने मुख़्तसरन कहा।शारदा

नज़ीर ने फिर उस से पूछा।आप का वतन

जयपुर उस का लहजा बहुत तीखा और ख़फ़्गी आलूद था।

 

नज़ीर ने मुस्कुरा कर उस से कहा।देखिए आप को मुझ से नाराज़ होने का कोई हक़ नहीं…… करीम ने अगर कोई ज़्यादती की है तो आप उस को सज़ा दे सकती हैं, लेकिन मेरा कोई क़ुसूर नहीं ये कह कर वो उठा और उस को अचानक अपने बाज़ूओं में समेट कर उस के होंटों को चूम लिया। वो कुछ कहने भी पाई थी कि नज़ीर उस से मुख़ातब हुआये क़ुसूर अलबत्ता मेरा है। इस की सज़ा मैं भुगतने के लिए तय्यार हूँ

 

लड़की के माथे पर बेशुमार तब्दीलियां नुमूदार हुईं। उस ने तीन चार मर्तबा ज़मीन पर थोका। ग़ालिबन गालियां देने वाली थी, लेकिन चुप होगई। उठ खड़ी हुई थी। लेकिन फ़ौरन ही बैठ गई। नज़ीर ने चाहा कि वो कुछ कहे।बताईए, आप मुझे क्या सज़ा देना चाहती हैं

 

वो कुछ कहने वाली थी कि डरबे से किसी बच्चे के रोने की आवाज़ आई। लड़की उठी नज़ीर ने उसे रोका। कहाँ जा रही हैं आप”?

 

वो एक दम माँ बन गई।मुन्नी रो रही है, दूध के लिए ये कह कर वो चली गई।

 

नज़ीर ने उस के बारे में सोचने की कोशिश की मगर कुछ सोच सका। इतने में करीम विस्की की बोतल और सोडे लेकर गया। उस ने नज़ीर के लिए छोटा डाला। अपना गिलास ख़त्म किया और नज़ीर से राज़दाराना लहजे में कहा।कुछ बातें हुईं शारदा से…….

 

मैंने तो समझा था कि आप ने पटा लिया होगा”?

नज़ीर ने मुस्कुरा कर जवाब दिया।बड़ी ग़ुस्सैली औरत है”!

 

जी हाँ…… सुबह आई है, मेरी जान खा गई। आप ज़रा उस को राम करें…… शकुंतला ख़ुद यहां आई थी। इस लिए कि उस का बाप उस की माँ को छोड़ चुका है और इस शारदा का मुआमला भी ऐसा है। इस का पति शादी के फ़ौरन बाद ही उस को छोड़कर ख़ुदा मालूम कहाँ चला गया था...... अब अकेली अपनी बच्ची के साथ माँ के पास रहती है...... आप मना लीजिए इस को”?

 

नज़ीर ने उस से कहा।मनाने की क्या बात है”?

करीम ने उस को आँख मारी।साली मुझ से तो मानती नहीं। जब से आई है डांट रही है

 

इतने में शारदा अपनी एक साल की बच्ची को गोद में उठाए अंदर कमरे में आई। करीम को उस ने ग़ुस्से से देखा। उस ने आधा पैग पिया और बाहर चला गया।

 

मुन्नी को बहुत ज़ुकाम था। नाक बहुत बुरी तरह बह रही थी। नज़ीर ने करीम को बुलाया और उस को पाँच का नोट देकर कहा।जाओ, एक विक्स की बोतल ले आओ

 

करीम ने पूछा।वो क्या होती है”?

नज़ीर ने उस से कहा।ज़ुकाम की दवा है ये कह कर उस ने एक पुर्ज़े पर इस दवा का नाम लिख दिया।किसी भी स्टोर से मिल जाएगी

 

जी अच्छा कह कर करीम चला गया। नज़ीर मुन्नी की तरफ़ मुतवज्जा हुआ। उस को बच्चे बहुत अच्छे लगते थे। मुन्नी ख़ुश शक्ल नहीं थी। लेकिन कम-सिनी के बाइस नज़ीर के लिए दिलकश थी। उस ने उस को गोद में लिया। माँ से सो नहीं रही थी। सर में हौले हौले उंगलियां फेर कर उस को सुला दिया और शारदा से कहा।उस की माँ तो में हूँ।शारदा मुस्कुराई।लाईए, मैं उस को अंदर छोड़ आऊं

 

शारदा उस को अंदर ले गई और चंद मिनट के बाद वापिस आगई। अब उस के चेहरे पर ग़ुस्से के आसार नहीं थे। नज़ीर उसके पास बैठ गया। थोड़ी देर वो ख़ामोश रहा। इस के बाद उस ने शारदा से पूछा।क्या आप मुझे अपना पति बनने की इजाज़त दे सकती हैं और उस के जवाब का इंतिज़ार किए बगै़र उस को अपने सीने के साथ लगा लिया।शारदा ने ग़ुस्से का इज़हार किया।जवाब दीजीए जनाब”?

 

शारदा ख़ामोश रही। नज़ीर ने उठ कर एक पैग पिया, तो शारदा ने नाक सिकोड़कर उस से कहा।मुझे इस चीज़ से नफ़रत है

 

नज़ीर ने एक पैग गिलास में डाला। उस में सोडा हल करके उठाया और शारदा के पास बैठ गया।आप को इस से नफ़रत है क्यूं”?

 

शारदा ने मुख़्तसर सा जवाब दिया।बस है

तो आज से नहीं रहेगी……. ये लीजीए ये कह कर उस ने गिलास शारदा की तरफ़ बढ़ा दिया।

मैं हरगिज़ नहीं पियूंगी

मैं कहता हूँ, तुम हरगिज़ इंकार नहीं करोगी

 

शारदा ने गिलास पकड़ लिया। थोड़ी देर तक उस को अजीब निगाहों से देखती रही, फिर नज़ीर की तरफ़ मज़लूमाना निगाहों से देखा। और नाक उंगलीयों से बंद करके सात गिलास ग़टाग़ट पी गए। क़ै आने को थी मगर उस ने रोक ली। धोती के पल्लू से अपने आँसू पूंछ के उस ने नज़ीर से कहा।ये पहली और आख़िरी बार है

 

लेकिन मैंने क्यूं पी”?

नज़ीर ने उस के गीले होंट चूमे और कहा।ये मत पूछो ये कह कर उस ने दरवाज़ा बंद कर दिया।

 

शाम को सात बजे उस ने दरवाज़ा खोला। करीम आया तो शारदा नज़रें झुकाए बाहर चली गई। करीम बहुत ख़ुश था। उस ने नज़ीर से कहा।आप ने कमाल कर दियाआप से सौ तो नहीं मांगता, पचास दे दीजीए

 

नज़ीर शारदा से बेहद मुतमइन था। इस क़दर मुतमइन कि वो गुज़श्ता तमाम औरतों को भूल चुका था। वो इस के जिन्सी सवालात का सौ फ़ीसदी सही जवाब थी। उस ने करीम से कहा।मैं कल अदा कर दूंगा...... होटल का किराया भी कल चुकाऊंगा। आज मेरे पास विस्की मंगाने के बाद सिर्फ़ दस रुपये बाक़ी थे

 

करीम ने कहा।कोई वाअदा नहीं है…… मैं तो इस बात से बहुत ख़ुश हूँ कि आप ने शारदा से मुआमले तय कर लिया...... हुज़ूर, मेरी जान खा गई थी। अब शकुंतला से वो कुछ नहीं कह सकती”!

 

करीम चला गया। शारदा आई। उस की गोद में मुन्नी थी। नज़ीर ने उस को पाँच रुपये दिए लेकिन शारदा ने इंकार कर दिया। इस पर नज़ीर ने उस से मुस्कुरा कर कहा।मैं इस का बाप हूँ। तुम ये क्या कर रही हो

 

शारदा ने रुपये ले लिए। बड़ी ख़ामोशी के साथ। शुरू शुरू में वो बहुत बातूनी मालूम होती थी। ऐसा लगता था कि बातों के दरिया बहा देगी। मगर अब वो बात करने से गुरेज़ करती थी। नज़ीर ने उस की बच्ची को गोद में लेकर प्यार किया और जाते वक़्त शारदा से कहा।लो भई शारदा, मैं चला। कल नहीं तो परसों ज़रूर आऊँगा

 

लेकिन नज़ीर दूसरे रोज़ ही गया। शारदा के जिस्मानी ख़ुलूस ने उस पर जादू सा कर दिया था। उस ने करीम को पिछले रुपये अदा किए। एक बोतल मंगवाई और शारदा के साथ बैठ गया। उस को पीने के लिए कहा तो वो बोली।मैंने कह दिया था कि वो पहला और आख़िरी गिलास था

 

नज़ीर अकेला पीता रहा। सुबह ग्यारह बजे से वो शाम के सात बजे तक होटल के इस कमरे में शारदा के साथ रहा....... जब घर लौटा तो वो बेहद मुतमइन था पहले रोज़ से भी ज़्यादा मुतमइन। शारदा अपनी वाजिबी शक्ल--सूरत और कम गोई के बावजूद उस के शहवानी हवास पर छा गई थी। नज़ीर बार बार सोचता था।ये कैसी औरत है....... मैंने अपनी ज़िंदगी में ऐसी ख़ामोश, मगर जिस्मानी तौर पर ऐसी पुर-गो औरत नहीं देखी

 

नज़ीर ने हर दूसरे दिन शारदा के पास जाना शुरू कर दिया। उस को रुपये पैसे से कोई दिलचस्पी नहीं थी। नज़ीर साठ रुपये करीम को देता था। दस रुपये होटल वाला ले जाता था। बाक़ी पचास में से क़रीबन तेराह रुपये करीम अपनी कमीशन के वज़ा कर लेता था मगर शारदा ने इस के मुतअल्लिक़ नज़ीर से कभी ज़िक्र नहीं किया था।

 

दो महीने गुज़र गए। नज़ीर के बजट ने जवाब दे दिया। इस के अलावा उस ने बड़ी शिद्दत से महसूस किया कि शारदा उस की अज़दवाजी ज़िंदगी में बहुत बुरी तरह हाइल हो रही है। वो बीवी के साथ सोता है तो उस को एक कमी महसूस होती है। वो चाहता कि इस के बजाय शारदा हो।

 

ये बहुत बुरी थी। नज़ीर को चूँकि इस का एहसास था इस लिए उस ने कोशिश की कि शारदा का सिलसिला किसी किसी तरह ख़त्म हो जाये। चुनांचे उस ने शारदा ही से कहाशारदा मैं शादीशुदा आदमी हूँ। मेरी जितनी जमा पूंजी थी ख़त्म होगई है। समझ में नहीं आता, मैं क्या करूं। तुम्हें छोड़ भी नहीं सकता, हालाँकि में चाहता हूँ कि उधर का कभी रुख़ करूं

 

शारदा ने ये सुना तो ख़ामोश होगई। फिर थोड़ी देर के बाद कहा।जितने रुपये मेरे पास हैं आप ले सकते हैं। सिर्फ़ मुझे जयपुर का किराया दे दीजीए ताकि मैं शकुंतला को लेकर वापिस चली जाऊं

 

नज़ीर ने उस का प्यार लिया और कहा।बकवास करो……. तुम मेरा मतलब नहीं समझें। बात ये है कि मेरा रुपया बहुत ख़र्च होगया है। बल्कि यूं कहो कि ख़त्म होगया है मैं ये सोचता हूँ कि तुम्हारे पास कैसे आसकूंगा।

 

शारदा ने कोई जवाब दिया। नज़ीर एक दोस्त से क़र्ज़ लेकर जब दूसरे रोज़ होटल में पहुंचा तो करीम ने बताया कि वो जयपुर जाने के लिए तय्यार बैठी है। नज़ीर ने उस को बुलाया। मगर वो आई। करीम के हाथ उस ने बहुत से नोट भिजवाए और ये कहा....... “आप ये रुपये ले लीजीए...... और मुझे अपना ऐडरैस दे दीजीए

 

नज़ीर ने करीम को अपना ऐडरैस लिख कर दे दिया और रुपये वापिस कर दिए। शारदा आई। गोद में मुन्नी थी। उस ने आदाब अर्ज़ किया, और कहा। मैं आज शाम को जयपुर जा रही हूँ

 

नज़ीर ने पूछा।क्यूं”?

शारदा ने ये मुख़्तसर जवाब दिया।मुझे मालूम नहींऔर ये कह कर चली गई।

 

नज़ीर ने करीम से कहा उसे बुला कर लाए। मगर वो आई। नज़ीर चला गया। उस को यूं महसूस हुआ कि उस के बदन की हरारत चली गई है। उस के सवाल का जवाब चला गया है।

 

वो चली गई, वाक़ई चली गई। करीम को उस का बहुत अफ़सोस था। उस ने नज़ीर से शिकायत के तौर पर कहा।नज़ीर साहब आप ने क्यूं उस को जाने दिया”?

 

नज़ीर ने उस से कहा। भाई, मैं कोई सेठ तो हूँ नहीं...... हर दूसरे रोज़ पचास एक, दस होटल के, तीस बोतल, और ऊपर का ख़र्च अलाहिदा। मेरा तो दीवाला फट गया...... ख़ुदा की क़सम मक़रूज़ हो गया हूँ

 

ये सुन कर करीम ख़ामोश हो गय