कुस्तुन्तुनिया एक ना-काबिल तसखिर शहर था, इसके तीन तरफ समुन्दर एक तरफ खुश्की, शहर के चारो तरफ 12 मीटर उची दीवार के 170 फिट के फासले पर मज़बूत टावर बने हुवे थे , दीवार के अंदर एक ओर दीवार थी ओर उन दोनों के बीचो बीच एक न काबिले उबुर खन्दक थी ,जिसकी चौड़ाई 60 फिट ओर गहराई 100 फिट थी ,एक तीसरी दीवार ने शहर की एक लाख से ज्यादा की आबादी को अपने दामन में पनाह दे रखी थी,ओर यू ये शहर फ़तेह करना करीब करीब ना-मुमकिन हो गया था.
क़ुस्तुन्तुनिया कभी हार का मुंह ना देखने वाला शहर माना जाता था जो आज भी मूल्यवान कलात्मक‚ साहित्यिक और ऐतिहासिक धरोहरों से मालामाल समझा जाता है, 12 मीटर उंची दिवारों से घिरे इस शहर को भेदना उस समय किसी के लिए मुमकिन नही था।
कुस्तुन्तुनिया की स्थापना रोमन सम्राट् कांस्टैंटाइन ने 328 ई. में प्राचीन नगर बाईज़ैंटियम को विस्तृत रूप देकर की थी। रोमन साम्राज्य की राजधानी के रूप में इसका आरंभ 11 मई 330 ई. को हुआ था।
कहते हैं कि जब यूनानी साम्राज्य का विस्तार हो रहा था तो प्राचीन यूनान के नायक बाइज़ैस ने मेगारा नगर को बाइज़ैन्टियम के रूप में स्थापित किया था. यह बात 667 ईसापूर्व की है. उसके बाद जब कॉंस्टैन्टीन राजा आए तो इसका नाम कॉंस्टैंटिनोपल रख दिया गया जिसे हम कुस्तुन्तुनिया के रूप में पढ़ते आए हैं. यही आज का इस्ताम्बुल शहर है.
कुस्तुन्तुनिया फ़तेह होने की बसारते हुजूर ए पाकﷺ दी आपﷺ ने फ़रमाया तुम जरूर कुस्तुन्तुनिया फ़तेह करोगे, पस बेहतर अमीर उसका अमीर होगा, ओर बेहतरीन लश्कर वो लश्कर होगा.
यही
फरमाने रिसालतﷺ था
,जिसने हर दौर के मुस्लमान फातेहिन को कुस्तुन्तुनिया का परवाना बनाए रखा लेकिन पे-दर-पे कई हमलो का सामना करने के ब-वजूद भी इस कदीम शहर के दरवाजे मुस्लमान फातेह के लिए ना खुल सके.
यह सन 1451 की बात है, जब सुल्तान मोहम्मद द्वितीय दूसरी बार गद्दी पर बैठे तो अपने से पहले के सुल्तानों की तरह उन्होंने भी क़ुस्तुन्तुनिया और पूरे इस्तांबुल को फ़तह करने का सपना देखा.
उन्होंने छह अप्रैल सन
1453 को पहले तो इस्तांबुल की ज़मीनी घेराबंदी का हुक्म दिया लेकिन फिर बाद में उन्होंने इसकी समुद्री घेराबंदी भी की. इस तरह समंदर की ओर से वह इस्तांबुल को जीतने के अपने सपने को सच करने में कामयाब हुए.
डेढ़ महीने से ज़्यादा समय की घेराबंदी के बाद इस्तांबुल अंततः 29 मई
1453 को फ़तह हो गया और सुल्तान मोहम्मद द्वितीय को सुल्तान मोहम्मद फ़ातेह (विजेता) की उपाधि दी गई.
Sultan Mehmed Fateh |
इस मसले की वजह से सुल्तान चाहते थे कि कोई नई तकनीक से बेहतर तोप बने जो टारगेट को ज्यादा नुकसान पोहचाए
सुल्तान मोहम्मद फातेह के दौर में तोप के माहिरीन ने ऐसी तोपे बनाना शूरू करदी थी जिसके गोले टारगेट से टकरा ते ही ब्लास्ट हो जाते फ़ढ़ जाते थे, गोलो के साथ तोपे भी मज़बूत हो गई थी , लोहे की जगह अब Bronze (कांसा कांस्य तांबे या ताम्र-मिश्रित धातु मिश्रण) से बनने लग गई थी इसमे पहले के मुकाबले खर्चा तो ज्यादा होता था लेकिन डिजाइन बेहतर हो जाती थी.
उस वक़्त की तोपे 16 फुट लम्बी ओर साढ़े सात सो पाउंड वजन के गोले फेक सकती थी, सुल्तान मोहम्मद फातेह को इससे भी बड़ी तोप चाहिए थी इतनी बड़ी के कम गोलो में ज्यादा दीवार को नुकसान पोहचाया जा सके.
सुल्तान को जरूरत थी एक ऐसे इंजीनियर की जो इतनी पावरफूल तोप बना सके जितनी वो चाहते थे , ओर वो मिल गया हंगेरियन तोप इंजीनियर ओर्बन के रूप में.
इसको सुल्तान का मुकद्दर ही कहेंगे, कि हेंगरी से एक इंजीनियर ओर्बन तोपे बनाने की पेशकस लेकर कुस्तुन्तुनिया Constantine XI
Palaiologos के पास आता हे ओर उसे तोपसाजी की पेशकस की,लेकिन इन तोपो के बदले में ओर्बन ने बोहोत बड़ी तनख्वाह ओर इनाम की पेशकस भी करदी कुस्तुन्तुनिया की माली हालत उस वक़्त बोहोत खराब थी उसपे कर्ज़ों का बोझ था Constantine XI
ने तोपों से ज्यादा खज़ाना भरने की फिकर थी.
वो उस्मानों के नए सुल्तान मोहम्मद फातेह को कोई खतरा नही समझता था बल्कि मोहम्मद फातेह के सुल्तान बनने पर कुस्तुन्तुनिया से लेकर फ्रांस तक यूरोपी हुक्मरानों ने एक दूसरे को मुबारकबादे दी थी के आलमी ताकत के तख्त पर एक कमजोर सुल्तान आ बैठा हे.
उसने ओर्बन तोप इंजीनियर को टाल दिया, ओर उसकी थोड़ी सी तनख्वाह मुकर्रर करदी,ताके इतना माहिर इंजीनियर कहि ओर ना चला जाए.
ओर्बन ने कुछ दिनों तक तो काम किया लेकिन इतनी कम तनख्वाह ओर वो भी टाइम पे ना मिलने साथ ही उसमे भी सरकारी अधिकारियों का डंडी मारने की वजह से ओर्बन ने सल्तनत ए उस्मानिया में नोकरी करने का फैसला किया, ओर यू सुल्तान की मुराद पूरी हो गई और उन्हें उनकी पसंद का इंजीनियर मिल गया.
ओर्बन इस बात को जनता था कि सुल्तान कुस्तुन्तुनिया की दीवार गिराने के लिए बे करार हे लिहाज़ा उसने अच्छी तरह कुस्तुन्तुनिया की दीवारों के जायज़ा लिया ओर वहा से निकल कर 140 मिल दूर एड्रिन शहर में सुल्तान मोहम्मद फातेह के दरबार मे पोहच गया.
Costantinntine xi Palaiogos |
इस सुपर तोप बनने के बाद ओर्बन ने ओर भी तोपे बनाई लेकिन वो इतनी लम्बी नही थी बल्कि उनका साइज़14 फिट से कुछ जादा होता था ओर्बन से सुल्तान ने ऐसी 60 से ज्यादा तोपे बनवाई.
तुर्को के कबाइली रिवाज़ के मुताबिक सुल्तान ने ये किया कि घोड़े के दूम से बना एक परचम महल के सहन में गढ़ दिया ये इस बात का ऐलान था कि सुल्तान मोहम्मद सानी जंग शूरू करने जा रहे हे.परचम गाड़ने के साथ ही सारी सल्तनत में क़ासिद दौड़ा दिए गए कि ओर तमाम अमीरों को हुक्म दिया गया की वो फ़ौज़ लेकर एड्रिन पोहच जाए.
यू देखते ही देखते 1453 के मौसम बहार तक 2 लाख का लश्कर हो गया जिसमें 180 बहरी जंगी जहाजो का ताकत वर बेड भी शामिल था
असल मे देखने मे ये लगता हे कि ये जंग एक तरफा होगी लेकिन ऐसा नही था कांस्टेनटाइन को, कई एडवांटेज हासिल थे जो उस्मानियो के पास नही थे.
कांस्टेनटाइन को जंग खुले मैदान में नहीं बल्कि किले की महफूज़ दीवार के पीछे से लड़ना थी.यानी उसके सिपाही महफूज़ जगहों से दुश्मन पर गोले पत्थर तीर ओर ग्रीक फायर जैसा खतरनाक केमिकल फेक सकते थे.वही ग्रीक फायर जिसकी आग पानी से भी नही भुजती थी बल्कि ओर भड़कती थी.
इसके मुकाबले में उस्मानी इनको तभी नुकसान पोहचा सकते थे जबकि वो दीवारों पे चाड आए, यही काम तकरीबन ना-मुमकिन था, ओर इसकी एक लॉजिकल रीजन वजह थी.
सबसे बाहर 50 फुट चौड़ी 20 गहरी खन्दक हे, जिसमे जमीन के नीचे पाइप के जरिए पानी भरा जा सकता था फिर इसके पीछे 1 पहली छोटी दीवार इसके पीछे 2 दूसरी बुलंद दीवार ओर सबसे आखिर में 3 तीसरी दीवार जिसकी बुलंदी 36 से 100 फिट तक ये आखिरी दीवार 4 मिल तक फैली हुई थी दूसरी ओर तीसरी दीवार के दरमियान एक 60 फिट चोड़ा पेलेट फार्म भी था,
यानी एक खन्दक 3 दीवारे ओर दीवारों के पिछे से तिरो की बारिश करते सिपाही इन सब से गुजरने के बाद ही तुर्क फ़ौज़ उन प्लेटफार्म पे पोहच सकती थी जहा उन मुहफीजो पे दु ब दु हमला कर सके ओर मुहफीजो के पास तीसरी दीवार के पीछे पनाह लेने की भी ऑप्शन मौजूद थी.
Etambole during rule of Ottoman Empyre |
ये था दीफाई स्ट्रक्चर जिसकी दीवारों पे चढ़ते चढ़ते लाखो की फ़ौज़ खत्म हो जाया करती थी सदियों से शहर की यही तारीख रही थी सिर्फ दीवारे ही नही बल्कि शहर का सारा नक्शा ही जंगी नुक्ते नज़र से बनाया गया था.
बाहर से देखे तो कुस्तुन्तुनिया के एक तरफ अबना ए बासफोरस यानी सकड़ा समुंद्री रास्ता, दूसरी जानिब सी, एफ़, मरमरा यानी फिर संमुन्दर ओर तीसरी तरफ़ गोल्डन हार्न यानी तीसरी तरफ भी पानी,
लेकिन ये गोल्डन हार्न कुस्तुन्तुनिया का एक वीकपॉइन्ट भी था, ये तंग समुंदरी रस्ता अगर कोई पार करके कुस्तुन्तुनिया की तरफ़ आजाए तो इस तरफ की दीवार बोहोत कमजोर थी, लेकिन इसका भी हल शहर के मुहफीजो ने पहले ही निकाल लिया था.
इसके रास्ते मे 30 टन वजनी एक लोहे की जंजीर दालदी थी ताके कोई जहाज घुस ना सके सिर्फ वही जहाज़ आ सके जिसको वो जंजीर हटा के अंदर लाते थे सुल्तान मोहम्मद अल फातेह ने कई जंगी जहाज़ भी बनवाए थे.
30 टन वजनी जंजीर लगा दी गई थी जैसे रोड पे बेरियर लगाया जाता हे वैसे ही ये जंजीर रास्ते के दोनो तरफ फिट करदी गई थी जंजीर के एक सिरे पर कुसरन्तुनिया तो दुसरे पर गलाटा की आबादी थी
जंजीर को काटा भी नही जा सकता था क्यों के इसके पीछे हिफाज़त के लिए 10 रूमी बेहरी जहाज़ खड़े हुवे थे
अब कांस्टेनटाइन को ये करना था की शहर में बंद होकर बैठ जाए, ओर दुश्मन एड्रिन से 140 मिल का थका देने वाला सफर तेय करके आये तो उसको जंग में मुसल-सल उलझाए रखे तब तक उलझाए रखे की उस्मानी फ़ौज़ धूप गर्मी प्यास ओर बीमारियों से अदमुरी ना हो जाए ।
कुस्तुन्तुनिया को एक ओर फायदा था कि यूरोप से पोप सलेबी लश्कर उस्मानियो के मुकाबले पर भेज सकता था, ओर पोप का एक नुमाइंदा 2 हजार तीर-अनदाज़ को लेकर कुस्तुन्तुनिया पहोच भी चुका था । लेकिन सलेबी फ़ौज़ नही आई इसकी वजह पूरे यूरोप में उस्मानों के खिलाफ़ जंग करने को कोई तय्यार ना था.
ईसाई रियासत के उस दौर में उस्मानों से टकराना अपनी रियासत को ही दांव पे लगा देना था इस लिए वो ये खतरा मोल नही लेना चाहते थे.
29 जनवरी 1453 को एक जंगजू कमाडंर john giusriniani अपने 700
सो जंगजू के साथ कुस्तुन्तुनिया पहोच गया कांस्टेनटाइन ने giusriniani की जंगी महारत को देखते हुवे उसे अपनी फ़ौज़ का कमांडर एन चीफ बना दिया, अब कांस्टेनटाइन की फ़ौज़ 9 हजार तक पोहचा चुकी थी
इन सब से निपटने के लिए सुल्तान मोहम्मद अल फातेह के पास किया तय्यारी थी
सबसे पहले तो सुल्तान के पास एक सलेबी तीरंदाज़ से मुकाबले के लिए 20,
20 सिपाही थे.
दीवारे तोडने के लिए उसके पास तोपे थी जो दीवारों के साथ उप्पर बैठे मुहफीजो को भी गिरा सकती थी.180
बहरी जहाजो का बेड़ा शहर की बाहरी नाका बंदी के लिए काफी था.
1452 में सुल्तान मोहम्मद फातेह ने अबनाए-बास-फोरस के यूरोपी किनारे पर शहर से 6 मिल दूर एक किले कि तामीर शूरू करदी,पुर जोश सुल्तान ने खुद मज़दूरों के साथ मेहनत करके सिर्फ साढ़े 4 माह में ये किला खड़ा कर दिया था,ये किला आज भी यही मौजूद हे.
किले में तोपे लगा कर चार सौ सिपाही तैनात कर दिए गए ।इस किनारे के एन सामने बसफोर्स के एशियाई किनारे पर एक किला आन्दोलो हिजार सुल्तान के पर दादा बा-यज़ीद अव्वल ने पहले ही बनवा रखा था, ओर ये भी आज तक मौजूद है.
इस किले में भी तोपे ओर फ़ौज़ लगा दी गई अब दोनों किलो के दरमियान सिर्फ आधे मिल संमुन्दर से कोई बाहरी जहाज़ तो किया एक छोटी कश्ती भी बगेर उस्मनियो की इजाज़त के नही गुजर सकती थी.
सुल्तान के पास सब कुछ था ।लेकिन एक चीज़ नही थी जो कांस्टेनटाइन के पास थी.वो था वक़्त.
बात ये थी कि सर्दी हो या गर्मी दोनो में ही कुस्तुन्तुनिया के शहर के बाहिर कोई फ़ौज़ जादा देर तक नही ठेर सकती थी, इस हमले के लिए बेहतरीन मौसम बहाल था यानी मार्च ,ओर अप्रेल का वक़्त ,ओर इसके बाद भी कोई ताकतवर फ़ौज़ एक महीना और यानी मई, तक मुहासरा बरकरार रख सकती थी इसके बाद सख्त गर्मी प्यास बीमारिया उस फ़ौज़ का मुक़द्दर बन जाया करती थी ,ओर मुहासरा खत्म करना पड़ता था.
यानी अब कांस्टेनटाइन 3 माह अगर उस्मानी फ़ौज़ को बाहिर रोक ले तो वो जंग जीत चुका था ओर कुस्तुन्तुनिया की हिफाज़त के इंतिज़ाम ऐसे थे कि 3 माह तक किसी भी फ़ौज़ को बाहर रोका जा सकता था.
इन सब बातो को जेहेन में रखकर जब सुल्तान एड्रिन से चले तो 23 मार्च 1453 की तारीख ओर जुमे का दिन था.
सुल्तान घोड़े पे सवार इस तरह आगे बढ़ रहे थे कि उनके दोनों तरफ घोड़ सवार सय्यद जादे थे उनके साथ उलमा इ किराम सीयूख की बड़ी तादाद थी । ये सब लोग बुलंद आवाज़ से कामयाबी के लिए दुआ ए मांग रहे थे
सबसे आखिर में तोपे खेच कर लाई जा रही थी, सिर्फ सुपर गन को 60 बेल ओर 200
आदमी खेच रहे थे यही नही बल्कि उस्मानी फ़ौज़ के कुछ दस्ते , एक एक करके आगे बढ़ने वाले रास्तो को भी बेहतर बनाते जा रहे थे.
2अप्रेल को बड़ी तादाद में उस्मानी फ़ौज़ शहर में पोहचना शूरू होगई और शहर के तमाम दरवाजे आखिरी बार बन्द कर दिए गए बल्कि शहर के मरकज़ी फाटक को तो बोहोत पहले ही उखाड़ कर वहा पत्थर चुन दिए गए थे , मगरिबी दीवार वाली खन्दक पर बने तमाम पुल भी गिरा दिए गए कि उस्मानी फ़ौज़ खन्दक को पार ना कर सके.
सुल्तान मोहम्मद फातेह 23 मार्च को जुमे के दिन चले थे और 6 अप्रेल को जुमे ही के रोज़ शाम के वक़्त शहर के सामने पोहोच गए थे.
कुस्तुन्तुनिया
की
चाबियां
और मुकद्दस
नक्शा
ये कैसे काशिम बिन हुस्साम को मिला
काशिम बिन हुस्साम को सुल्तान ने कुस्तुन्तुनिया पहले ही भेज दिया था खुफिया तरीके से जानकारी हासिल करने के लिए , आप वहा एक सलेबी बनकर गए थे, आप कुस्तुन्तुनिया का नक्शा हासिल करने की नीयत से एक टावर की 8 मंजिल पे पो होचते है , जहा आपकी एक बूढ़े बुजुर्ग पर नज़र पढ़ती है ,
काशिम बिन हुस्साम, देखते हे कि वो बुजुर्ग मुस्कुरा कर हाथ मे मसाल लिए दरवाजे पे खड़े हे टावर की सीडीओ पे उजाला कर रहे थे जिस उजाले के सहारे काशिम बिन हुस्साम 192
जीने चढ़कर आये थे , बुजुर्ग ने कहा बेटा अंदर आओ तुम बोहोत तेजी से जीने चढ़कर आये हो , बुजुर्ग की बाते सुनकर काशिम बिन हुस्साम हेरत में पढ़ जाते हे कुछ समझ नही आता वो समझते हे कि ये बुजुर्ग मुकद्दस की कोई चाल हे ,
मुकद्दस बुजुर्ग ने काशिम बिन हुस्साम को तलवार निकालते देखा तो मुस्कुरा कर बोले “नही बेटा इसकी जरूरत नही” में तो तुम्हारा इंतिजार कर रहा था ,”आज से नही बेटा में गुज़िश्ता कई सालो से तुम्हारा मुन्तज़िर हु”, “हर रात इसी तरह हाथ मे मसाल लेकर दरवाजा खोले तुम्हारा इंतिजार करता हु”, “मुझे मालूम था तुम आओगे,एक दिन जरूर आओगे, आओ अंदर आजाओ”,
ये सब देख कर काशिम बिन हुस्साम हैरान थे , उन्हें कुछ समझ नही आ रहा था , वो बूढ़े मुकद्दस बुजुर्ग बताएमुस के साथ अंदर की ओर चलने लगे और कमरे में दाखिल हुवे , कमरे में एक लकड़ी का सन्दूक रखा था
Estambole old Walls of Constantinpole in Turkey |
मुकद्दस बुजुर्ग ने फिर कहा बेटा अच्छा हुवा तुम आगए, में अब जादा ही बूढा हो चुका हूं , मेने तवील अरसे तुम्हारा इंतिजार किया हे , तुम्हारी अमानत मेरे पास हे , इसे हिफ़ाज़त के साथ अपने अमीर के पास पोहचाना तुम्हारा काम हे,
ये कुस्तुन्तुनिया की हजार साल पुरानी चाबियां हे मेरे लिए अब इनकी हिफ़ाज़त मुश्किल थी, शुक्र है तुम आगए,मुझे यकीन हे ,तुम्हारा अमीर कुस्तुन्तुनिया फ़तेह कर लेगा , क्यों के तुम्हारा अमीर बेहतर अमीर हे ,तुम्हारा लश्कर सबसे बेहतर लश्कर हे.
उन बुजुर्ग की जबान से आखिरी अल्फ़ाज़ सुनके, काशिम बिन हुस्साम के बदन का एक एक रोंगटा खड़ा हो गया , की ये तो हदीसे मुबारक के अल्फ़ाज़ हे.
रसूल ए करीम ﷺ ने फरमाया था, तुम जरूर कुस्तुन्तुनिया फ़तेह करोगे, ओर इस लश्कर के अमीर बेहतर अमीर होगा, ओर वो लश्कर बेहतर लश्कर होगा,
पहली बार काशिम बिन हुस्साम में बोलने की हिम्मत पैदा हुई, वो बोले मुकद्दस बुजुर्ग आज ये सब मेरे लिए ना-काबिले यकीन हे, मेरा दिल कहता हे आप अल्लाह तआला के मकबूल बन्दे हे, में आपकी अमानत अपने सुल्तान के पास पोहचाने में एक लम्हे की भी देरी नही करूंगा, लेकिन में एक बात कहना चाहता हु , मुकद्दस बुजुर्ग में यहा कदीम चाबियां लेने नही मुकद्दस नक्शा हासिल करने आया था,
वो बुजुर्ग मुस्कुरा के बोले मुकद्दस नक्शा भी मेरे पास पोहोच चुका हे, में वो भी तुम्हारे हवाले कर दूंगा, तुम अब जादा देर ना करो जाने की तय्यारी करो लेकिन जाने से पहले में अपने चंद अल्फ़ाज़ का तुम्हे गवाह बनाना चाहता हु , फिर उन बुजुर्ग ने ये कालीमात कहे---
“ए मेरे परवरदिगार में गवाही देता हूं, की में तेरे सिवा, किस ओर को रब नही समझता, ओर मोहम्मद ﷺ को तेरा भेजा हुवा रसूल समझता हूं”
काशिम बिन हुस्साम की आँखे हेरत से फटी जा रही थी, वो बुजुर्ग एक तरह से कालिमा ए शहादत पढ़ रहे थे, ओर ये उनके मुस्लमान होने का सबूत था.
इसके बाद वो बुजुर्ग ने लकड़ी के सन्दूक को खोला और उसमें से भारी भरकम गठरी निकली और काशिम बिन हुस्साम की तरफ बढ़ाते हुवे कहा”
ये कुस्तुन्तुनिया की चाबियां हे ,साढ़े आठ सौ साल से ये चाबियां एक मजाजी अरब नोजवान के इंतिजार में इस सन्दूक के अन्दर रखी हे.
इन्हें केसर ए रूम “हरकुल” ने अपनी मौत से पहले इस सन्दूक में मुन्तक़िल किया था, इस बात से सब बे-खबर हे, यहा तक कुस्तुन्तुनिया के शहनशाह उनका राज़ नही पा सका, इनमे दीवारे शहर के कदीम तहखानों के अलावा शाही महल के गुमनाम तहखानों की चाबियां भी हे, इन मक़ामात में कदीम रूम के खजाने रखे हे, जिनके असल मालिक तुम और तुम्हारा असल लश्कर हे.
बिल आखिर 6 अप्रैल
1453 ई, ब-मुताबिक 26 रबी-उल-अव्वल 857 ही, के रोज़ सुल्तान मोहम्मद अल फातेह अपनी बहादुर अफवाज़ के हमराह खुश्की की जानिब से कुस्तुन्तुनिया की दीवार के सामने नमूदार हुवे, शहर के सब दरवाजे बंद थे और कुस्तुन्तुनिया का पूरा शहर दीवार पे चढ़कर दूर से धूल उड़ाते उस्मानी लश्कर को देख रहा था.
उन्होंने शहर की मगरिबी दीवार के सामने अपना शुर्ख तुर्क ओर सुनहरी खेमा नसफ़ कर लिया था, उसी जगह जहा उनके वालिद ने 31 बरस पहले अपना खेमा नसफ़ किया था.
ओर इसी पहाड़ी के सामने रोमोनोस गेट पास वो दीवार थी जिसपर सुल्तान मुराद दोम की