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Friday 10 July 2020

Aligarh Wale Ahmad Said Khan Nawab Chhatari: First Indian Governor, Chief Minister of the United Provinces


उत्तर प्रदेश राज्य, जो प्राचीन और मध्ययुगीन काल के दौरान शक्तिशाली साम्राज्यों का निवास रहा है, आज के समय में सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। वास्तव में उत्तर प्रदेश दुनिया में किसी देश का सबसे अधिक आबादी वाला उपखंड है। राज्य में करीब 20 करोड़ निवासी हैं और 18 मंडलों और 75 जिलों में विभाजित है, जिसकी राजधानी लखनऊ है।

देश आजाद होने से पहले, 1 अप्रैल, 1937 को इस राज्य की स्थापना संयुक्त प्रांत के रूप में की गयी थी। इसी में अंग्रेजों ने यूपी को पहला मुख्यमंत्री दे दिया था. नवाब मुहम्मद अहमद सैयद खान छतारी (1888-1982),जो 3 अप्रैल 1937 से 16 जुलाई 1937 तक निर्दलीय मुख्यमंत्री रहे।

Ahmad Said Khan Nawab Of Chhatari (Aligarh)

1920 में राज्य की राजधानी को इलाहाबाद से हटाकर लखनऊ कर दिया गया. हाई कोर्ट इलाहाबाद में ही रह गया. यूपी का रौला हुआ करता था. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और दारुल उलूम देवबंद जैसे संस्थान थे. बिस्मिल और आजाद जैसे क्रांतिकारी निकले थे. जिनसे पूरा देश प्रेरणा लेता था. यहीं से मोतीलाल नेहरु, जवाहर लाल नेहरु, मदन मोहन मालवीय और गोविंद बल्लभ पंत जैसे कांग्रेस के नेता निकले थे.
Acting Governor of the United Provinces (7 April 1933 –26 November 1933) Preceded by Sir Alexander Phillips Muddiman and Succeeded by Sir William Malcolm Hailey.


स्वतंत्रता प्रप्ति के बाद 1950 में इस राज्य का नाम बदलकर उत्तर प्रदेश रखा गया। स्वतंत्रता प्रप्ति के बाद से, राज्य कई राजनीतिक दलों द्वारा शासित हुआ है और विभिन्न मुख्यमंत्रियों ने इसका नेतृत्व किया है।

यूपी के बुलंदशहर और अलीगढ़ के बीच एक रियासत छतारी थी. यहां मुस्लिम राजपूत यानी लालखानी कहे जाने वाले नवाब थे. पहले ये रियासत इतनी छोटी थी कि यहां के जमींदार को कुंवर कहा जाता था. 1915 में नवाब कहा गया.

अंग्रेज़ों ने यूपी को पहला मुख्यमंत्री दिया था. नवाब मुहम्मद अहमद सैयद खान ऑफ़ छतारी.

सैयद खान के दादा मुहम्मद अली 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश राज में हिंदुस्तान में नहीं रहना चाहते थे. सऊदी अरब में बस गये थे. पर उनके बेटे-बहू यानी सैयद के अम्मी-अब्बा की मौत सऊदी अरब में ही हो गई. तो अपने पोते सैयद की परवरिश करने के लिए वो इंडिया वापस गये. पर जब सैयद 8 साल के थे तब दादा की भी मौत हो गई. रियासत तो थी ही. काम चलने लगा. किस्मत भी साथ थी.

Nawab Ahmad Said Khan 0f Chhatari in Round Table Conference

ये
हाफिज बन गये थे यानी कुरान याद कर लिये थे. खयालात भी मॉडर्न थे. जिस वक्त जमीन की लड़ाई हुआ करती थी, ये कहा करते थे कि जमीन के बजाय मैं इंडस्ट्री लगाना पसंद करूंगा.

1919 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के बाद अंग्रेजों ने भारतीयों को अपनी व्यवस्था में शामिल करना शुरू किया. जब इलेक्टेड डिस्ट्रिक्ट बोर्ड बने तब सैयद खान पॉलिटिक्स में गये. 1921 में इनके चेयरमैन बने. फिर वहीं से इनको यूपी लेजिस्लेटिव काउंसिल के लिए जमींदारों ने नॉमिनेट कर दिया.

1925 में होम मेंबर यानी मिनिस्टर टाइप की पोजीशन पर पहुंचे. बहुत ज्यादा पावर तो नहीं थी फिर भी रिकमेंड करने भर की पावर थी. तो इन्होंने एक बदलाव किया. उस वक्त नौकरियां सिफारिश पर लगती थीं.  तो इनका कहना था कि सिफारिश के बजाए क्लर्कों के लिए परीक्षा करा ली जाए.
With Pandit Jawahar Lal Nehru .Then Prime Minister of India

उस वक्त अहीर और कुर्मी जातियां नौकरियों से बाहर थीं.तो नवाब ने इनको प्रोसेस में शामिल करते हुए ओपन रिक्रूटमेंट की शुरूआत की. अभी ये छोटी बात लगती है. पर उस वक्त ये चीजें मॉडर्न और निष्पक्ष हुआ करती थीं. नवाब 17 मई 1923 से 11 जनवरी 1926 तक यूपी की कैबिनेट में मिनिस्टर रहे. मिनिस्टर ऑफ इंडस्ट्री रहते हुए नवाब को उत्तर प्रदेश में चीनी मिल और आटे की मिलों को बैठाने का श्रेय प्राप्त है.

नवाब छतारी ने पहले राउंड टेबल कांफ्रेंस में हिस्सा लिया था. इंडिया से मुस्लिम डेलिगेशन आगा खान, जिन्ना, मुहम्मद अली, जफरुल्ला के नेतृत्व में गया था. छतारी भी थे इसमें. फिर 1931 में नवाब मिनिस्टर ऑफ एग्रीकल्चर बने. 1933 में जब ये गवर्नर बने तब ये पहली बार हुआ था कि किसी इंडियन को गवर्नर बनाया गया था.


अप्रैल-नवंबर 1933 तक ये इस पद पर रहे. ये किसानों के आंदोलन से भी जुड़े रहे. नेशनल एग्रीकल्चरल पार्टीज के लीडर चुने गए. फिर जब गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 आया तो नवाब को 1937 में यूपी का चीफ मिनिस्टर बनाया गया. बाद में नवाब ने चीफ मिनिस्टरी छोड़ दी. होम मिनिस्टर बन गये. 1937 में ही चुनाव हुए थे. चुनाव के बाद गोविंद बल्लभ पंत कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री बने थे. फिर दूसरे विश्व-युद्ध के चलते विधानसभा भंग कर दी गई.

विजयलक्ष्मी पंडित को जेल में देखकर रो पड़े  गवर्नर नवाब मुहम्मद अहमदसैयद खान ऑफ़ छतारी.

गवर्नर के तौर पर नवाब एक बार जेल इंसपेक्शन करने गये थे. वहां उन्होंने विजयलक्ष्मी पंडित को देखा. मोतीलाल नेहरू की बेटी को देख रो पड़े थे. हिंदुस्तान के नेताओं की ये बड़ी ही रोचक दास्तान थी. एक साथ दो जिंदगियां जीते थे. कर्म से अंग्रेजों के साथ रहते. मन से हिंदुस्तानियों का दर्द जाता नहीं था.

इस कॉन्फ्लिक्ट ने ही भारत की मॉडर्न राजनीति को जन्म दिया था.जुलाई-अगस्त 1941 के बीच नवाब नेशनल डिफेंस काउंसिल के मेंबर बने.


फिर यहां से छोड़कर वो हैदराबाद एग्जीक्यूटिव काउंसिल के प्रेसिडेंट बन गये.सरल शब्दों में निजाम के वजीर बन गये. 1 नवंबर 1947 तक वहां रहे. निजाम ने इनको सईद-उल-मुल्क का टाइटल दिया था. निजाम ने तो इंडिया से अलग होकर देश बनाने की पूरी कोशिश की थी. पर हो नहीं पाया था.

आजादी के बाद नवाब सोशल कामों में बिजी हो गए. ऑल इंडिया बॉय स्काउट्स असोशिएशन के चीफ स्काउट रहे. 1955 से 1982 में अपनी मौत तक. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के चांसलर रहे.


नवाब छतारी ने अंग्रेजों के दरबार से लेकर निजाम और फिर अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के चांसलर तक का सफर तय किया. बदलते भारत के हर दौर में रहे थे नवाब. अगर देखा जाए तो एक छोटी सी रियासत से निकलकर इतनी सारी चीजें एक जिंदगी में करना बहुत बड़ी बात थी.