Wednesday 17 June 2020

आखिरी पत्ता: ओ हेनरी की एक कहानी-The Last Leaf by O. Henry


वाशिंगटन चौक के पश्चिम की ओर एक छोटा-सा मुहल्ला है जिसमें टेढ़ी-मेढ़ी गलियों के जाल में कई बस्तियां बसी हुई हैं। ये बस्तियां बिना किसी तरतीब के बिखरी हुई है। कहीं-कहीं सड़क अपना ही रस्ता दो-तीन बार काट जाती है। इस सड़क के सम्बन्ध में एक कलाकार के मन में अमूल्य सम्भावना पैदा हुई कि कागज, रंग और कैनवास का कोई व्यापारी यदि तकादा करने यहां आये तो रास्ते में उसकी अपने आपसे मुठभेड़ हो हो जायेगी और उसे एक पैसा भी वसूल कियेबिना वापिस लौटना पड़ेगा।

इस टूटे-फ़ूटे और विचित्र,'ग्रीनविच ग्राम' नामक मुह्ल्ले में दुनिया भर के कलाकार आकर एकत्रित होने लगे। वे सब के सब उत्तर दिशा में खिड़कियां, अठारहवीं सदी के महराबें, छत के कमरे और सस्ते किरायों की तलाश में थे। बस छठी सड़क से कुछ कांसे के लोटे और टिन की तश्तरियां खरीद लाये और ग्रहस्थी बसा ली।

एक नीचे से मकान के तीसरी मंजिल पर, सू जौर जान्सी का स्टूडियो था। जान्सी, जोना का अपभ्रंश था। एक 'मेईन' से आयी थी और दूसरी 'कैलाफ़ोर्निया' से। दोनों की मुलाकात, आठवीं सड़क के एक अत्यन्त सस्ते होटल में हुई थी। दोनों की कलारूचि और खाने-पीने की पसन्द में इतनी समानता थी कि दोनों के मिले-जुले स्टूडियो का जन्म हो गया।
यह बात मई के महीने की थी। नवम्बर की सर्दियों में एक अज्ञात अजनबी ने, जिसे डाक्टर लोग 'निमोनिया' कहते हैं। मुहल्ले में डेरा डाल कर, अपनी बर्फ़ीली उंगलियों से लोगों को छेड़ना शुरू किया। पूर्वी इलाके में तो इस सत्यनाशी ने बीसियों लोगों की बलि लेकर तहलका मचा दिया था, परन्तु पश्चिम की तंग गलियों वाले जाल में उसकी चाल कुछ धीमी पड़ गयी।

मिस्टर 'निमोनिया' स्त्रियों के साथ भी कोई रिआयत नहीं करते थे। कैलीफ़ोर्निया की आंधियों से जिसका खून फ़ीका पड़ गया हो, ऎसे किसी दुबली-पतली लड़की का इस भीमकाय फ़ुंकारते दैत्य से कोई मुकाबला तो नही था, फ़िर भी उसने जान्सी पर हमला बोल दिया। वह बेचारी चुपचाप अपनी लोहे की खाट पर पड़ी रहती और शीशे की खिड़की में से सामने के ईटों के मकान की कोरी दीवार को देखा करती।

एक दिन उसका इलाज करने वाले बूढ़े डाक्टर ने, थर्मामीटर झटकते हुये, सू को बाहर के बरामदे में बुलाकर कहा,"उसके जीने की संभावना रूपये में दो आना है और, वह भी तब, यदि उसकी इच्छा-शक्ति बनी रहे। जब लोगों के मन में जीने की इच्छा ही नही रहती और वे मौत का स्वागत करने को तैयार हो जाते हैं तो उनका इलाज धन्वंतरि भी नहीं कर सकते। इस लड़की के दिमाग पर भूत सवार हो गया है कि वह अब अच्छी नहीं होगी। क्या उसके मन पर कोई बोझ है?"

सू बोली,"और तो कुछ नहीं, पर किसी रोज नेपल्स की खाड़ी का चित्र बनाने की उसकी प्रबल आकांक्षा है।"
"चित्र? हूं! मैं पूछ रहा था, कि उसके जीवन में कोई ऎसा आकर्षण भी है कि जिससे जीने की इच्छा तीव्र हो? जैसे कोई नौजवान!"
बिच्छू के डंक की-सी चुभती आवाज में सू बोली," नौजवान? पुरूष और प्रेम-छोड़ो भी-नहीं डाक्टर साहब, ऎसी कोई बात नहीं है।"

डाक्टर बोला,"सारी बुराई की जड़ यही है। डाक्टरी विद्या के अनुसार जो कुछ मुझसे मुमकिन है, उसे किये बिना नहीं छोडूंगा। पर जब कोई मरीज अपनी अर्थी के साथ चलने वालों की संख्या गिनने लगा जाता है तब दवाइयों की शाक्ति आधी रह जाती है। अगर तुम उसके जीवन में कोई आकर्षण पैदा कर सको, जिससे वहअगली सर्दियों में प्रचलित होने वाले कपड़ो के फ़ैशन के बारे में चर्चा करने लगे, तो उसके जीने की संभावना कम से कम दूनी हो जायेगी।"
डाक्टर के जाने के बाद सू अपने कमरे में गयी और उसने रो-रो कर कई रूमाल निचोड़ने काबिल कर दिये। कुछ देर बाद, चित्रकारी का सामान लेकर, वह सीटी बजाती हुई जान्सी के कमरे में पहुंची। जान्सी, चद्दर ओढ़े, चुपचाप, बिना हिले-डुले, खिड़की की ओर देखती पड़ी थी। उसे सोई हुई जान कर उसने सीटी बजाना बन्द कर दिया।

तख्ते पर कागज लगाकर वह किसी पत्रिका की कहानी के लिए, कलम स्याही से एक तस्वीर बनाने बैठी। नवोदित कलाकारों को 'कला' की मंजिल तक पहुंचने केलिए, पत्रिकाओं के लिए तस्वीरें बनानी ही पड़ती है। जैसे साहित्य की मंजिल तक पहुंचने के लिए, नवोदित लेखकों को पत्रिकाओं की कहानियां लिखनी पड़तीहै।

ज्यों ही सू, एक घुड़सवार जैसा ब्रीजस पहने, एक आंख का चश्मा लगाये, किसी इडाहो के गडरिये के चित्र की रेखाएं बनाने लगी कि उसे एक धीमी आवाज अनेक बार दुहराती-सी सुनाई दी। वह शीघ्र ही बीमार के बिस्तरे के पास गयी।

जान्सी की आंखे खुली थीं। वह खिड़की से बाहर देख रही थी और कुछ गिनती बोल रही थी। लेकिन वह उल्टा जप कर रही थी। वह बोली,"बारह" फ़िर कुछ देर बाद "ग्यारह" फ़िर "दस" और "नौ" और तब एक साथ "आठ" और "सात"

सू ने उत्कण्ठा से, खिड़की के बाहर नजर डाली। वहां गिनने लायक क्या था। एक खुला, बंजर चौक या बीस फ़ीट दूर ईंटों के मकान की कोरी दीवार!
एक पुरानी, ऎंठी हुई, जड़े निकली हुए,. सदाबहार की बेल दीवार की आधी ऊंचाई तक चढ़ी हुई थी। शिशिर की ठंडी सांसो ने उसके शरीर की पत्तियां तोड़ ली थीं और उसकी कंकाल शाखाएं, एकदम उघाड़ी, उन टूटी-फ़ूटी ईटों से लटक रही थीं।
सू ने पूछा,"क्या है जानी?"

अत्यन्त धीमे स्वरों में जान्सी बोली,":! अब वे जल्दी-जल्दी गिर रही हैं। तीन दिन पहले वहां करीब एक सौ था। उन्हें गिनते-गिनते सिर दुखने लगाता था। वह, एक और गिरी। अब बची सिर्फ़ पांच।"
"पांच क्या? जानी, पांच क्या? अपनी सू को तो बता!"

"पत्तियां। उस बेल की पत्तियां। जिस वक्त आखिरी पत्ती गिरेगी, मैं भी चली जाऊंगी। मुझे तीन दिन से इसका पता है। क्या डाक्टर ने तुम्हें नहीं बताया?"

अत्यन्त तिरस्कार के साथ सू ने शिकायत की, "ओह! इतनी बेवकूफ़ तो कहीं नही देखी। तेरे ठीक होने का इन पत्तियों से क्या सम्बन्ध है? तू उस बैल से प्यार किया करती थी-क्यों इसलिए? बदमाश! अपनी बेवकूफ़ी बन्द कर!

अभी सुबह ही तो डाक्टर ने बताया था कि तेरे जल्दी से ठीक होने की संभावना-ठीक किन शब्दो में कहां था-हां, कहा था, संभावना रूपये में चौदह आना है और न्यूयार्क में, जब हम किसी टैक्सी में बैठते हैं या किसी नयी इमारत के पास से गुजरते हैं, तब भी जीने की संभावना इससे आधिक नहीं रहती। अब थोड़ा शोरबा पीने की कोशिश कर और अपनी सू को तस्वीर बनाने दे, ताकि उसे सम्पादक महोदय के हाथों बेच कर वह अपने बीमार बच्ची के लिए थोड़ी दवा-दारू और अपने खुद के पेट के लिए कुछ रोटी-पानी ला सके।"

अपनी आंखों को खिड़की के बाहर टिकाये जान्सी बोली,"तुम्हें अब मेरे लिए शराब लाने की जरूरत नहीं। वह, एक और गिरी। नहीं मुझे शोरबे की भी जरूरत नहीं। अब सिर्फ़ चार रह गयीं। अन्धेरा होने से पहिले उस आखिरी पत्ती को गिरते हुए देख लूं-बस। फ़िर मैं भी चली जाऊंगी।"

सू उस पर झुकती हुई बोली,'प्यारी जान्सी! तुझे प्रतिज्ञा करनी होगी कि तू आंखे बन्द रखेगी और जब तक मैं काम करती हूं, खिड़की से बाहर नहीं देखेगी। कल तक ये तस्वीर पहुंचा देनी हैं। मुझे रोशनी की जरूरत है, वर्ना अभी खिड़की बन्द कर देती।"

जान्सी ने रूखाई से पूछा,"क्या तुम दूसरे कमरे में बैठकर तस्वीरें नहीं बन सकती?"

सू ने कहा,"मुझे तेरे पास ही रहना चहिये। इसके अलावा, मैं तुझे उस बेल की तरफ़ देखने देना नहीं चाहती।"

किसी गिरी हुई मूर्ति की तरह निश्चल और सफ़ेद, अपनी आखे बन्द करती हुई, जान्सी बोली,"काम खत्म होते ही मुझे बोल देना, क्योकिं मैं उस आखिरी पत्ती को गिरते हुए देखना चाहती हूं। अब अपनी हर पकड़ को ढीला छोड़ना चाहती हूं और उन बिचारी थकी हुई पत्तियों की तरह तैरती हुई नीचे-नीचे-नीचे चलीजाना चाहती हूं।"

सू ने कहा," तू सोने की कोशिश कर। मैं खान में मजदूर का माडल बनने के लिए उस बेहरमैन को बुला लाती हूं। अभी, एक मिनट में आयी। जब तक मैं नहीं लौंटूं, तू हिलना मत!"

बूढ़ा बेहरमैन उनके नीचे ही एक कमरे में रहता था। वह भी चित्रकार था। उसकी उम्र साठ साल से भी अधिक थी। उसकी दाढ़ी, मायकल एंजेलो की तस्वीर के मोजेस की दाढ़ी की तरह, किसी बदशक्ल बंदर के सिर से किसी भूत के शरीर तक लहराती मालूम पड़ती थी।

बेरहमैम एक असफ़ल कलाकार था। चालीस वर्षो से वह साधना कर रहा था, लेकिन अभी तक अपनी कला के चरण भी नहीं छू सका था। वह हर तस्वीर को बनाते समय यही सोचता कि यह उसकी उत्क्रष्ट क्रति होगी, पर कभी भी वैसी बना नहीं पाता।
इधर कई वर्षो से उसने व्यावसायिक या विज्ञापन-चित्र बनाने के सिवाय, यह धन्धा ही छोड़ दिया था। उन नवयुवक कलाकारों के लिए मांडल बनकर, जो किसी पेशेवर मांडल की फ़ीस नहीं चुका सकते थे, वह आजकल अपना पेट भरता था।

वह जरूरत से ज्यादा शराब पी लेता और अपनी उस उत्क्रष्ट क्रति के विषय में बकवास करता जिसके सपने वह संजोता था। वैसे वह बड़ा खूंखार बूढ़ा था, जो नम्र आदमियों की जोरदार मजाक उड़ाता और अपने को इन दोनों जवान कलाकारों का पहरेदार कुत्ता समझा करता।

सू ने बेहरमैन को अपने अंधेरे अड्डे में पड़ा पाया। उसमें से बेर की गुठलियों-सी गन्ध रही थी। एक कोने में वह कोरा कनवास खड़ा था, जो उसकी उत्क्रष्ट कलाक्रति की पहिली रेखा का अंकन पाने की, पच्चीस वर्षो से बाट जोह रहा था।
उसने बूढ़े को बताया कि कैसे जान्सी उन पत्तों के साथ अपने पत्ते जैसे कोमल शरीर का सम्बन्ध जोड़ कर, उनके समान बह जाने की भयभीत कल्पना करती है और सोचती है कि उसकी पकड़ संसार पर ढीली हो जायेगी।

बूढ़े बेहरमैन ने इन मूर्ख कल्पनाओं पर गुस्से से आंखे निकाल कर अपना तिरस्कार व्यक्त किया।

वह बोला,"क्या कहा? क्या अभी तक दुनिया में ऎसे मूर्ख भी हैं, जो सिर्फ़ इसलिए कि एक उखड़ी हुई बेल से पत्ते झड़ रहे हैं, अपने मरने की कल्पना कर लेते है? मैंने तो ऎसा कहीं नहीं सुना! मैं तुम्हारे जैसे बेवकूफ़ पागलों के लिए कभी माडल नहीं बन सकता। तुमने उसके दिमाग में इस बात को घुसने ही कैसे दिया? अरे, बिचारी जान्सी!"

सू ने कहा,"वह बीमारी से बहुत कमजोर हो गयी है और बुखार के कारण ही उसके दिमाग में ऎसी अजीब-अजीब कलुषित कल्पनाएं जाग उठी हैं। अच्छा; बूढ़े बेहरमैन, तुम अगर मेरे लिए माडल नहीं बनना चाहते तो मत बनो। हो तो आखिर उल्लू के पट्ठे ही!"

बेरहमैन चिल्लाया,"तू तो लड़की की लड़की ही रही! किसने कहा कि मैं माडल नहीं बनूंगा? चल, मैं तेरे साथ चलता हूं। आधे घण्टे से यही तो झींक रहा हूं कि भई चलता हूं-चलता हू! लेकिन एक बात कहूं- यह जगह जान्सी जैसी अच्छी लड़की के मरने लायक नहीं है। किसी दिन जब मै अपनी उत्क्रष्ट कलाक्रति बना लूंगा तब हम सब यहां से चल चलेंगे। समझी? हां!"

जब वे लोग ऊपर पहुंचे तो जान्सी सो रही थी। सू ने खिड़कियों के पर्दे गिरा दिये और बेहरमैन को दूसरे कमरे में ले गयी। वहां से उन्होंने भयभीत द्रष्टि से खिड़की के बाहर उस बेल की ओर देखा। फ़िर उन्होंने, बिना एक भी शब्द बोले, एक-दूसरे की ओर देखा। अपने साथ बर्फ़ लिये हुये ठंडी बरसात लगातार गिर रही थी। एक केटली को उल्टा करके उस पर नीली कमीज में बेहरमैन को बिठाया गया जिससे चट्टान पर बैठे हुये, किसी खान के मजदूर का माडल बन जाये।

एक घण्टे की नींद के बाद जब दूसरे दिन सुबह, सू की आंख खुली तो उसने देखा कि जान्सी जड़ होकर, खिड़की के हरे पर्दे की ओर आंखे फ़ाड़ कर देख रही है। सुरसुराहट के स्वर में उसने आदेश दिया,"पर्दे उठा दे, मै देखना चाहती हूं।"विवश होकर सू को आज्ञा माननी पड़ी।

लेकिन यह क्या! रात भर वर्षा, आंधी तूफ़ान और बर्फ़ गिरने पर भी ईंटो की दीवार से लगी हुई, उस बेल में एक पत्ती थी। अपने डंठल के पास कुछ गहरी हरी, लेकिन अपने किनारों के आसपास थकावट और और झड़ने की आशंका लिए पीली-पीली, वह पत्ती जमीन से कोई बीस फ़ुट ऊंची अभी तक अपनी डाली से लटकरही थी।

जान्सी ने कहा," यही आखिरी है। मैंने सोचा था कि यह रात में जरूर ही गिर जायगी। मैनें तूफ़ान की आवाज भी सुनी। खैर, कोई बात नहीं यह आज गिर जायेगी और उसी समय मैं भी मर जाऊंगीं।"
तकिये पर अपना थका हुआ चेहरा झुका कर सू बोली,"क्या कहती है पागल! अपना नहीं तो कम से कम मेरा ख्याल कर! मैं क्या करूंगी?"
पर जान्सी ने कोई जवाब नहीं दिया। इस दुनिया की सबसे अकेली वस्तु यह 'आत्मा' है, जब वह अपनी रहस्यमयी लम्बी यात्रा पर जाने की तैयारी में होती है। ज्यों-त्यों संसार और मित्रता से बांधने वाले उसके बन्धन ढ़ीले पड़ते गये त्यों-त्यों उसकी कल्पना ने उसे अधिक जोर से जकड़ना शुरू कर दिया।

दिन बीत गया और संध्या के क्षीण प्रकाश में भी, दीवार से लगी हुई बेल से लटका हुआ वह पत्ता, उन्हें दिखाई देता रहा। पर तभी रात पड़ने के साथ-साथ, उत्तरी हवाएं फ़िर चलने लगीं और वर्षा की झड़ियां खिड़की से टकरा कर छज्जे पर बह आयीं।

रोशनी होते ही निर्दयी जान्सी ने आदेश दिया कि पर्दे उठा दिये जाये।
बेल में पत्ती अब तक मौजूद थी।

जान्सी बहुत देर तक उसी को एकटक देखती रही। उसने सू को पुकारा, जो चौके में स्टोव पर मुर्गी का शोरबा बना रही थी। जान्सी बोली,"सूडी, मैं बहुत ही खराब लड़की हूं। कुदरत की किसी शक्ति ने, उस अन्तिम पत्ती को वहीं रोक कर, मुझे यह बता दिया कि मैं कितनी दुष्ट हूं। इस तरह मरना तो पाप है।

ला, मुझे थोड़ा-सा शोरबा दे और कुछ दूध में जहर मिलाकर ला दे। पर नहीं, उससे पहले मुझे जरा शीशा दे और मेरे सिरहाने कुछ तकिये लगा, ताकि मैं बैठे-बैठे तुझे खाना बनाते हुए देख सकूं।"

कोई एक घंण्टे बाद वह बोली,"सूडी, मुझे लगता है कि मैं कभी कभी नेपल्स की खाड़ी का चित्र जरूर बनाऊंगी।"शाम को डाक्टर साहब फ़िर आये सू, कुछ बहाना बनाकर, उनसे बाहर जाकर मिली। सू दे दुर्बल कांपते हाथ को अपने हाथों में लेकर डाक्टर साहब बोले, "अब संभावना आठ आना मानी जा सकती है।

अगर परिचर्या अच्छी हुई तो तुम जीत जाओगी और अब मैं, नीचे की मंजिल पर, एक-दूसरे मरीज को देखने जा रहा हूं। क्या नाम है उसका- बेहरमैन!-शायद कोई कलाकार है-निमोनिया हो गया है। अत्यन्त दुर्बल और बुरा आदमी है और झपट जोर की लगी है। बचने की कोई संभावना नहीं। आज उसे अस्पताल भिजवां दूंगा। वहां आराम ज्यादा मिलेगा।"

दूसरे दिन डाक्टर ने सू से कहा,"जान्सी, अब खतरे से बाहर है। तुम्हारी जीत हुई। अब तो सिर्फ़ पथ्य और देखभाल की जरूरत है।"

उस दिन शाम को सू, जान्सी के पलंग के पास आकर बैठ गयी। वह नीली ऊन का एक बेकार-सा गुलबन्द, निश्चिन्त होकर बुन रही थी। उसने तकिये के उस ओर से, अपनी बांह, सू के गले में डाल दी।

सू बोली,"मेरी भोली बिल्ली, तुझसे एक बात कहनी है। आज सुबह अस्पताल में, मिस्टर बेहरमैन की निमोनिया से म्रत्यु हो गयी। वह सिर्फ़ दो रोज बीमार रहा। परसों सुबह ही चौकीदार ने उसे अपने कमरे में दर्द से तड़पता पाया था।

उसके कपड़े-यहां तक कि जूते भी पूरी तरह से भीगे हुए और बर्फ के समान ठंडे हो रहे थे। कोई नहीं जानता कि ऎसी भयानक रात में वह कहां गया था। लेकिन उसके कमरे से एक जलती हुई लालटेन, एक नसैनी, दो-चार ब्रश और फ़लक पर कुछ हरा और पीला रंग मिलाया हुआ मिला। जरा खिड़की से बाहर तो देख-दीवार के पास की उस अन्तिम पत्ती को। क्या तुझे कभी आश्चर्य नहीं हुआ कि इतनी आंधी और तूफ़ान में भी वह पत्ती हिलती क्यों नहीं? प्यारी सखी, यही बेहरमैन की उत्क्रष्ट कलाक्रति थी जिस रात को अन्तिम पत्ती गिरी उसी रात उसने उसका निर्माण किया था।"
The End










Saturday 13 June 2020

Catherine De Medici: And Her Stable of Whores, Flying Female Spies.


Who was Catherine de' Medici
Catherine de Medici (1519-1589) was born an Italian commoner but became the Queen Consort of France's Henry II. She was a remarkable woman but vilified by many as an evil one. She was Queen mother of kings Francis II, Charles IX and Henry III from 1559 to 1589. Catherine married Henry II, in 1533, at the age of fourteen.


Diane de Poitiers, chief mistress of King Henry II
Diane de Poitiers was Henry II's Mistress but she was his life long companion.King Henry II excluded Catherine from participating in state affairs and instead showered favors on his chief mistress.

King Henry II

Diane de Poitiers was first assigned by Henry's father, King Francis to "tame" the 19 year old. She did much more than that. She commanded all his love, shared his confidences - in short became everything a wife should be - for the rest of his life.


Diane de Poitiers was nearly 20 years older than Henry, yet looked much younger. Some of her beauty secrets included plenty of cold water, no late nights and light exercise. Diane was dismissed by Catherine from court when Henry died.

Peepholes into the roof of Diane de Poitiers’s bed chamber
By some accounts, Catherine, simply drilled a hole above their fuck room to pick up a few tips on how to service her husband correctly. By others, she asked de Poitiers straight up to help her get pregnant.

Diane de Poitiers, totally unthreatened, was completely down to become a kind of sexual midwife for the couple, offering tips on positions like doggy style to better route the royal seed.


'A Stable of Whores'?: The 'Flying Squadron' of Catherine de Medici
From half-naked banquets to thwarting plots against the throne, Catherine and her "Flying Squadron" knew how to use sex appeal in their favor.

It was rumored that at this time Catherine formed a “flying squadron” of female spies, a “stable of whores” of about 80 beautiful ladies whom she would deploy to the beds of various courtiers for sexual espionage and information networking.

She kept a court of women entertainers. These women, about 80 in total, were called The Flying Squadron, and were notorious for doing the bidding of the queen.

Historical records state that many suspected the queen of asking members of the Flying Squadron seduce prominent European political leaders to unearth their secrets.


It wasn’t easy being a woman in power during the 16th century. Catherine de Medici learned this at a very young age when she was brought over from her native Italy to marry the future king of France, Henry II.

Disliked by the people as a suspicious foreigner and ignored by her husband in favor of his French mistress, Catherine had to use any means available to her to preserve her power as queen.

The “flying squadron” would become as much a part of Catherine’s legend as poison and intrigue. This band of beautiful women loyal to their queen engaged in antics that would make Caligula blush, all with the aim of helping her retain power.

Women during this period had to use the few means available to them to wield power, and the squadron found that many powerful men were defenseless against beautiful women.Catherine may have learned the power of sex in court by observing her husband’s mistress, Diane de Poitiers.

ladies served guests “half-naked”
The name “flying squadron” has its roots in dance, when Catherine introduced ballet to the French court and her own ladies gave the first performance and danced as though they were flying.

Perhaps the best-known and most often retold story about the squadron is the 1577 banquet Catherine organized to celebrate one of her son’s victories.


The queen was known for her elaborate feasts and during this particular one, her ladies served guests “half-naked” (although the original source for this saucy tale was not even present at the party described).

Since much of the propaganda was contemporary to Catherine’s rule, as the centuries passed the satire became passed down as reality, and the flying squadron was accepted as fact well into the 21st century.

Note:--This blog”Catherine De Medici:A Stable of Whores’Her “Flying Squadron” Of Female Spies,has been edited from various sources and photos available on net ,with thanks.
        The End