Monday 28 February 2022

Love in Wartime:--Pictures of emotional goodbyes and last kisses of loved ones.” That Will Melt Your Heart”

Just prepare to wipe out your tears….

Here you’ll see wartime pictures of emotional goodbyes and departing kisses of loved ones.

Love doesn’t change though the years do.

There’s nothing more heartbreaking than to abandon his beloved on the dock to go to the front, to goodbye on the platform of a station, the last kisses through the window of the train, to go to the front and nothing more painful than having to let his lover going for an uncertain fate.

 

One fine morning, I was surfing vintage photos in G and came across these wonderful pieces of art. Some of them moved me to tears.

 

Sometimes it can be difficult to remember that people in photos from bygone eras had the same concerns, hopes, dreams, and loves that we do.

 

Uniform may change, the great pride and love you can feel in each of them doesn’t.Love in the time of war was never easy. In Fact it was so intense even that these breath-taking pictures hardly do justify.

 

The intensified atmosphere of wartime, when couples met with the very real knowledge that they might never see each other again.

 

 “Love rather than war, flowers rather than bombs.” These touching images remind us that love in wartime can be the worst, as the most comforting feeling.















The End

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Sunday 27 February 2022

कर्म: Khushwant Singh की ये कहानी प्रसिद्ध कहावत "प्राइड कम्स बिफोर ए फॉल" को दर्शाती है

सर मोहन लाल ने रेलवे स्टेशन के फर्स्ट-क्लास वेटिंग रूम में लगे शीशे में अपना चेहरा देखा।शीशा भारत में ही बना लगता था।उसके पीछे लगे लाल ऑक्साइड की परत जगह-जगह उखड़ गयी थी और सामने लम्बी-लम्बी लकीरें पड़ी थीं।

 

सर मोहन लाल ने शीशे की तरफ़ दया की एक मुस्कान फेंकी।

'तुम भी इस देश की हर और चीज़ की तरह हो, गंदे, अकुशल और उदासीन, वह धीरे-से बोला।

 

शीशा उनकी तरफ़ देखकर जैसे मुस्कुराया।

'और तुम ठीक-ठीक ही हो, प्यारे भाई,' शीशे ने जैसे जवाब-सा दिया, 'प्रतिष्ठित, कुशल और स्मार्ट भी।

 

ये तराशी हुई मूँछें, लंदन का सिला सूट, जिसमें सुन्दर फूल टैंका है, 'यू डी कोलोन टेलकम पाउडर और खुशबूदार साबुन की मिली-जुली तुम्हारे चारों ओर फैल रही खुशबू।सब कुछ ठीक-ठाक ही है।

 

सर मोहन लाल ने अपना सीना फुलाया, गर्दन से लटकती बैलियोल टाई पर एक बार फिर हाथ फेरा, और शीशे की ओर हाथ हिलाकर विदाई ली। फिर घड़ी पर नज़र डाली। एक छोटा पैग लेने का समय अभी था। 'कोई है? सफ़ेद कपड़े पहने जालीदार दरवाज़े से एक बैरा प्रकट हुआ।

 

एक छोटा, सर मोहन लाल ने आदेश दिया और बेंत की बड़ी-सी कुर्सी पर पीने और सोचने बैठ गये।वेटिंग रूम के बाहर सर मोहन लाल का सामान दीवार के सहारे एक दूसरे के ऊपर लदा रखा था।

 

एक छोटे-से लोहे के ट्रंक पर लक्ष्मी, यानी लेडी मोहन लाल, पान चबाती और अखबार से हवा करती बैठी थीं।छोटा कद बदन भारी और अधेड़ उम्र, चालीस से कुछ ज़्यादा

 

वह एक गंदी-सी साड़ी पहने जिसमें लाल रंग का बॉर्डर लगा था।नाक में एक तरफ़ हीरे की नथ जगमगा रही थी और हाथों में कई सोने की चूड़ियाँ चमक रही थीं।

 

सर मोहन लाल के भीतर बुलाने तक वह बैरे से बातें कर रही थीं।जैसे ही बैरा भीतर गया, उन्होंने एक कूली को आवाज़ दी और पूछा, 'यह ज़नाना डिब्बा कहाँ रुकता है ?

 

'प्लेटफ़ार्म के एकदम आखिर में कुली ने अपनी पगड़ी सिर पर जमाई, लोहे का ट्रंक उस पर रखा और प्लेटफ़ार्म पर आगे बढ़ा।लेडी लाल ने पीतल का टिफ़िन कैरियर हाथ में लटकाया और उसके पीछे चलीं।

 

रास्ते में वह एक पानवाले की दुकान पर रुकीं, चाँदी का पान का डिब्बा भरवाया और फिर कुली के पीछे हो लीं।कुली ने एक जगह बक्सा नीचे रख दिया। उस पर वह बैठ गईं और कुली से बतियाने लगीं। 'इन लाइनों पर क्या गाड़ियाँ बहुत भरी चलती हैं ?

 

आजकल तो सब गाड़ियाँ भरी ही चलती हैं, लेकिन आपको ज़नाने डिब्बे में जगह मिल जायेगी '

 

'तो फिर मैं खाने का झमेला अभी ही निबटा लूँ यह कहकर उन्होंने टिफ़िन का डिब्बा खोला और उसमें से रोटियाँ निकालकर आम के अचार से खाने लगीं।कुली थोड़ी दूर पर उनके सामने बैठा ज़मीन पर अपनी उँगलियों से कुछ लकीरें खींचने लगा।

 

बहनजी, आप अकेली सफ़र कर रही हैं ?

 

नहीं भैया, पति भी साथ हैं। वेटिंग रूम में हैं। फ़र्स्ट-क्लास में सफ़र करते हैं। बड़े बैरिस्टर हैं, बड़े-बड़े अफ़सरों और अंग्रेजों से मिलना-जुलना है और मैं ठहरी सीधी-सादी गाँव की औरत अंग्रेज़ी समझती हूँ इनके तौर-तरीके इसलिए मैं ज़नाना इन्टर क्लास में ही सफ़र करती हूँ।' 

लक्ष्मी मज़े से गपशप करती रही। उसे बातें करना अच्छा लगता था।घर पर तो कोई होता नहीं था।पति को भी उनसे मिलने का ज़्यादा समय नहीं मिलता धा।

 

वह मकान की ऊपरी म॑ज़िल पर रहती थीं और पति नीचे वाली पर, उन्हें पत्नी के गरीब, अशिक्षित रिश्तेदारों का बँगले में आना-जाना पसन्द नहीं था, इसलिए वे आते भी नहीं थे।

 

कभी-कभी सर मोहन लाल रात को कुछ मिनट के लिए पत्नी से मिलते और फिर नीचे लौट आते थे।वह अंग्रेज़ी मिली-जुली हिन्दी में पतली को आदेश देते और वह चुपचाप उनका पालन करती रहती थी।

 

लेकिन रात की उन मुलाकातों का कोई नतीजा नहीं निकला था।सिग्नल नीचे गिरा और घंटियाँ बजने लगीं कि गाड़ी रही है।

 

लेडी लाल ने जल्दी से खाना खत्म किया, वह अचार की गुठली चूसती उठीं और दूसरी तरफ़ लगे नल से हाथ-मुँह धोने के साथ-साथ ज़ोर से डकार मारी।मुँह धोकर साड़ी के पल्लू से पोंछा, और अपने ट्रंक की तरफ़ तेज़ी से बढ़ने लगीं, मन ही मन भगवान को भरपेट खाने के लिए धन्यवाद करती हुईं

 

रेलगाड़ी धक-धक करती प्लेटफ़ार्म पर आई ।लक्ष्मी के लगभग सामने ही, गार्ड के डिब्बे के बगल में इन्टर क्लास का लगभग खाली ज़नाना डिब्बा आकर रुका ।बाकी गाड़ी ठसाठस भरी थी।

 

उन्होंने अपना भारी-भरकम शरीर हॉँफते हुए दरवाज़े से भीतर धकेला और खिड़की के बगल की एक सीट पर धम से बैठ गईं।फिर साड़ी के कोने की गाँठ खोलकर दुअन्नी निकाली और कुली को विदा किया।

 

फिर अपना पान का डिब्बा खोला, उसमें से पत्ता निकाल कर चूना, कत्था लगाया और सुपारी रखकर उसे मुँह में भर लिया जिससे उनके दोनों गाल गेंद की तरह फूल गये ।फिर दोनों हाथों पर अपनी ठोड़ी टिका ली और आराम से प्लेटफ़ार्म का नज़ारा देखने लगीं

 

गाड़ी के आने से सर मोहन लाल की मुद्रा में कोई फ़र्क नहीं पड़ा।उन्होंने स्कॉच पीते हुए बैरे से कहा कि जब सामान फ़र्स्ट-क्लास के डिब्बे में रख दे, तब उन्हें बताये ।उत्तेजना, शोर-शराबा और जल्दबाज़ी बुरे पालन-पोषण के लक्षण होते हैं, और उनका पालन-पोषण बहुत ऊँचे स्तर पर हुआ था

 

उन्हें हर काम चुस्त-दुरुस्त और शालीन ढंग से करना पसन्द था।उन्होंने पाँच वर्ष विदेश में बिताये थे, जहाँ वह उच्च वर्ग के आचार-व्यवहार और नियमों को भली-भाँति सीख-समझ गये थे।

वह हिन्दी बहुत कम बोलते थे।जब बोलते थे तब बहुत कम शब्दों का इस्तेमाल करते थे और वह भी अंग्रेज़ी का मुलम्मा चढ़ाकर।उन्हें तो अंग्रेज़ी पसन्द थी, जो उन्होंने ऑक्सफोर्ड जैसे सर्वोत्तम विश्वविद्यालय में पढ़ी थी।

 

उन्हें बातचीत करना पसन्द था, और सुसंस्कृत अंग्रेजों की तरह किसी भी विषय पर बात कर सकते थे-किताबें, राजनीति, समाज, सभी पर।वह अक्सर लोगों को अपने बारे में यह कहते सुनते थे-बिलकुल अंग्रेज़ों की तरह अंग्रेज़ी बोलते हैं।

 

सर मोहन लाल सोच रहे थे कि क्या वह सफ़र में अकेले होंगे ?

 

यह छावनी का इलाक़ा था और गाड़ी में कुछ अंग्रेज़ अफ़सर भी हो सकते हैं।उन्हें खुशी हुई कि उनसे बात करने का अवसर मिलेगा वह दूसरे हिन्दुस्तानियों की तरह अंग्रेज़ों से बात करने की उतावली नहीं दिखाते थे

 

वह उनकी तरह ज़ोर से और आक्रामक ढंग से बोलते थे, अपनी राय ज़ाहिर करते थे ।वह बिना कोई भाव व्यक्त किये अपना काम करते रहने के कायल थे।

 

वह कोने की सीट पर बैठ जाते और टाइम्स अखवार निकाल कर पढ़ना शुरू कर देते ।वह उसे इस ढंग से मोड़ते थे कि उसका शुरू कर देते खाई पड़ता रहता था।वक्त काटने के लिए वह क्रॉसवर्ड पज़ल भरना टाइम्स नाम हमेशा दूसरों को आकृष्ट करता था

 

जब वह उसे देखकर कुछ इस तरह रख देते कि अब मुझे ज़रूरत नहीं है, तो दूसरा उनसे उसे माँग सकता था। शायद कोई उनकी बैलियोल टाई भी पहचान सकता था, जिसे वह यात्रा करते कक कप पहने रहते थे।

 

इससे फिर बातचीत का एक सिलसिला शुरू हो जाता, जिसमें ऑक्सफोर्ड के कॉलेजों , मास्टरों, ट्यूटरों, नाव की दौड़ों, सबका विस्तार से ज़िक्र होता।

 

अगर टाइम्स और टाई दोनों का कोई असर होता, तो वह 'कोई है ?” की आवाज़ लगाकर स्कॉच खुलवाते ।अंग्रेज़ों पर छिस्की का असर अवश्य होता था इसके बाद सर मोहन लाल अपना सोने का डिब्बा निकालते जिसमें इंग्लिश सिगरेट भरी होती थीं। भारत में इंग्लिश सिगरेट ?

 

ये उन्हें कैसे मिलती हैं ? क्या वह सिगरेट औरों के साथ बाँट सकेंगे ?

 

परंतु क्या वह इस अंग्रेज़ व्यक्ति के माध्यम से अपने प्रिय पुराने इंग्लैंड से सम्पर्क कर सकेंगे ?

 

ऑक्सफोर्ड में बिताये पाँच वर्ष स्पोर्ट्स ब्लेज़र और मिक्स्ड डबल्स के सुनहरी दिन, 'इन्स ऑफ़ कोर्ट' में लिये गये डिनर और पिकेडिली की वेश्याओं के साथ बिताई गई रातें सब मिलाकर पाँच गौरवशाली वर्ष!

 

यहाँ बिताये पूरे पैंतालीस वर्षों से कहीं ज़्यादा शानदार-इस गंदे मुल्क भारत में, जहाँ सफलता प्राप्त करने के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ता, जहाँ उन्हें अपनी मोटी पत्नी लक्ष्मी से, जिससे पसीने और कच्चे प्याज़ की बू आती है, कुछ ही मिनट में सहवास पूरा करके अलग होना पड़ता है।

 

सर मोहन लाल के विचारों में कुली के आने से बाधा पड़ी, जिसने घोषणा की कि उनका सामान इंजन के पास वाले फ़र्स्ट-क्लास डिब्बे में रख दिया गया है। सर मोहन लाल चहलकदमी करते हुए डिब्बे तक गये।

 

उन्हें आश्चर्य हुआ कि डिब्बा एकदम खाली था। ठंडी साँस लेकर वह खिड़की के बगल में बैठ गये और टाइम्स खोलकर, जिसे वह जाने कितनी बार पढ़ चुके थे, अपने सामने कर लिया।

 

फिर उन्होंने खिड़की से बाहर प्लेटफ़ार्म पर झाँका उनका चेहरा यह देखकर खिल उठा कि दो अंग्रेज़ सैनिक जगह की तलाश में डिब्बों में झाँकते इधर ही रहे हैं। उनके कन्धों पर यैले लदे थे और वे लड़खड़ाते हुए चल रहे थे। सर मोहन लाल ने उनका स्वागत करने का फ़ैसला किया, यद्यपि अपनी स्थिति के हिसाब से वे दूसरी श्रेणी में ही सफ़र कर सकते थे।

 

एक सैनिक उनके आखिरी डिब्बे तक आया और खिड़की में मुँह डालकर भीतर देखा। उसे खाली सीट दिखाई दी।

 

बिल.' उसने आवाज़ दी, "एक सीट है।' उसका साथी वहाँ आया, भीतर देखा, और सर मोहन लाल पर नज़र डाली।इसे निकालो,' वह अपने साथी से बोला ।उन्होंने दरवाज़ा खोला और सर मोहन लाल की तरफ़ बढ़ें।

 

'रिज़र्व्दश' बिल चीखा।

 

'रिज़र्व्ड! आर्मी-फ़ौज ' जिम ने अपनी खाक़ी शर्ट की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।

 

"एकदम जाओ-गेट आउट

 

"सुनो! सुनो! मेरी बात सुनो ' सर मोहन लाल ने अपने ऑक्सफोर्ड के लहज़े में अंग्रेज़ी में विरोध करते हुए कहा।

 

सैनिक रुके। अंग्रेज़ी तो वह अंग्रेजों की तरह बोल रहा था... इंजन ने सीटी दी और गार्ड ने हरी झंडी दिखाई।

 

उन्होंने सर मोहन लाल का सूटकेस उठाया और प्लेटफ़ार्म पर फेंक दिया। और साथ ही थरमस फ्लास्क, ब्रीफकेस, बिस्तर और टाइस्स भी फेंक दिये। सर मोहन लाल क्रोध से आग-बबूला हो उठे।

 

यह क्या कर रहे हो ? क्या कर रहे हो ? वह गुस्से में आकर चिल्लाये? 'मैं तुम्हें अरेस्ट करा दूँगा ? गार्ड, गार्ड...”

 

बिल और जिम फिर ठिठके। यह आदमी देखने में तो अंग्रेज़ नहीं था, बोल चाहे कैसे भी रहा हो।

 

बकवास बन्द करो,' यह कह कर जिम ने उनके मुँह पर थप्पड़ रसीद किया।गाड़ी ने एक और सीटी दी और पहिये आगे बढ़ने लगे। सैनिकों ने दोनों हाथों से उन्हें पकड़ा और गाड़ी से बाहर धकेल दिया वह बिस्तर से टकराये और सूटकेस पर जा गिरे।

 

सर मोहन लाल के पैर जैसे ज़मीन से चिपक गये हों और उनकी ज़बान- बन्द हो गई। वह अपने सामने से धीरे-धीरे गुज़रती खिड़कियों की रोशनी देखते रहे। आखिरी डिब्बे में गार्ड हरी बत्ती हाथ में उठाये खड़ा था।इन्टर क्लास के ज़नाने डिब्बे में लक्ष्मी आराम से मुँह फुलाये पान चबा रही थी...उसकी नाक में हीरे की नथ चमक रही थी।

 

उसके मुँह में पान से भरा थूक जमा था जिसे वह मौका मिलते ही बाहर फेंकने की तैयारी कर रही थी।गाड़ी प्लेटफ़ार्म से आगे बढ़ी। उसने अपने मुँह से पिच्च से लाल पीक को फुहारे की तरह बाहर फेंका।

The End

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