सीन- 1
शंभु अपने बेड पर सूटकेस खोल रहा है।
Stage (R) गौतम सो रहा है, शंभु सूटकेस में से एक फोटो निकालता है और
Stage (R) देखता है और ‘तितली’ कहता है। तितली आकर शंभु के बगल में बैठ जाती है।
तितली- पापा, आप डांस देखने तो आए नहीं, अब यहाँ बैठे-बैठे फोटो देख रहे हो।
शंभु- बेटा, मैं वहाँ आकर क्या करूँगा?
तितली- मुझे भी पता है आप नहीं आएँगे, पर पता नहीं क्यों हमेशा नाचते हुए मैं आपको भीड़ में ढूँढती हूँ। या जब लोग पीछे मिलने आते हैं तो मैं इंतज़ार क्यों करती हूँ कि आप मेरा नाम पूछते हुए, पीछे मुझे ढूँढेंगे। तितली को देखा आपने? तितली... जो सबसे आगे डांस कर रही थी, उसका कमरा कहाँ है? तितली, बेटा...
शंभु- बेटा, मुझे पता है कि तुम अच्छा डांस करती हो।
तितली- अच्छा! यह आपने फोटो देखकर जान गए?
शंभु- सारी प्रेक्टिस तो तुमने मेरे सामने की है। विश्वास नहीं? मैं तुम्हें तुम्हारा डांस करके बताता हूँ...
(डांस करता है.. और शंभु की कमर दुखने लगती है, वो वापिस बेड पर आ जाता है।)
तितली- (हँसती है) आप बैठ जाइए, रहने दीजिए। एक बात कहूँ, आप बहुत गंदा डांस करते हैं। पापा, कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं नाचते-नाचते उड़ जाऊँगी और किसी पहाड़ पर जाकर बैठ जाऊँगी और वहाँ नीचे आप मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। पर मैं नहीं आऊँगी और जब आप इंतज़ार करते-करते थक जाएँगे, तब मैं पीछे आकर...’बो’ करके आपको डरा दूँगी। मज़ा आएगा, क्यों पापा?
शंभु- मुझसे ऐसी बातें मत किया करो।
तितली- पापा, मैं मज़ाक कर रही थी।
शंभु- मुझे पसंद नहीं ऐसा मज़ाक।
तितली- ठीक है पापा, अच्छा मेरी परीकथा कहाँ है?
शंभु- परीकथा बाद में।
(Starts
to take out something from the suitcase)
तितली- तो ठीक है। फिर मैं परीकथा सुनने आऊँगी।
शंभु- बेटा तितली, कहाँ जा रही हो? बैठो सुनो... चली गई... अपने समय से आती है अपने समय से चली जाती है। (तभी उसे दरवाज़े पर परछाई दिखाई देती है... मानों कोई खड़ा हो।) अरे आप, आप कौन हैं? तितली बेटा, तुमने किसी को बुलाया है? आप, आपका नाम क्या है? बेटा देखो अपने घर कोई घुस आया है...
(Shadow laughs) क्या हँस क्यों रहे हो। जाओ निकल जाओ यहाँ से।
शुभांकर- मेरा नाम...
शंभु- नहीं, नहीं जानना मुझे तुम्हारा नाम, निकल जाओ।
शुभांकर- मेरा नाम शुभांकर है...
(Laughs & exit)
(शंभु बहुत सारी चीजें फेंकने लगता है दरवाज़े की तरफ़। गौतम, जो कि ज़मीन पर सो रहा है, डरकर उठ जाता है।)
गौतम- डर लगे तो गाना गाओ, भूख लगे तो खाना खाओ।
(शंभु बेहोश हो जाता है। गौतम उसे उठाकर पलंग पर सुलाता है और भाग जाता है।)
सीन- 2
(गौतम दरवाज़े पर खड़ा है, झिलमिल सामान बीन रही है, भीतर से शंभु आता है)
शंभु- अरे आप लोग कब आए?
झिलमिल- नमस्ते! रात में काफ़ी तोड़-फोड़ की है आपने, याद है? कल आप गौतम की वजह से बच गए। अगर समय पर ये मुझे नहीं बुलाता तो कुछ भी हो सकता था। कल आपको दूसरा अटैक आया था।
(गौतम के पास जाता है।गौतम शंभु से बहुत डरता है।)
गौतम- डर लगे तो गाना गाओ, भूख लगे तो खाना खाओ।
शंभु- चुप, क्या है! कल रात के लिए माफ़ी चाहता हूँ।
गौतम- डर लगे तो गाना गाओ, भूख लगे तो खाना खाओ।
झिलमिल- अब कैसी तबीयत है?
शंभु- ठीक है।
झिलमिल- गौतम को आपकी ही देखभाल के लिए रखा है, पर वो इतना डर गया है कि वो इस कमरे में आना भी नहीं चाहता। पहले ही मूर्ख भूतों से डरता था। आप बताइए क्या करूँ? इस Old
Age Home के भी कुछ
rules हैं, मुझे भी जवाब देना पड़ता है। और आपकी तबीयत?
शंभु- कितने दिन बचे हैं मेरे पास?
झिलमिल- सब कुछ आपके ऊपर है।
शंभु- सॉरी!
झिलमिल- ये आप पहले भी कई बार कह चुके हैं। गौतम, दवाइयाँ दी?
गौतम- मैं वो देने ही वाला था पर...
झिलमिल- ये दवाइयाँ... गौतम, वो काग़ज़ कंप्लीट हो गए?
गौतम- किसके?
झिलमिल- वो क्या नाम है, बलि आने वाले थे ना उनके?
गौतम- वो आज शाम आने वाले थे पर age
proof certificate नहीं था तो वो रात तक उसे लेकर आ जाएँगे।
झिलमिल- ठीक है। अगर सब ठीक है तो उन्हें, इनके साथ शिफ्ट कर देना।
शंभु- क्या मैं किसी के साथ नहीं रहूँगा मैं इस old
age home को अपनी पूरी पेंशन दे रहा हूँ, ताकि मैं अकेला रह सकूँ।
झिलमिल- अगर मैंने आपकी सही-सही रिपोर्ट तैयार कर के दे दी कि आप कैसे अकेले यहाँ आए दिन तोड़-फोड़ करते रहते हैं तो आपको अगले दिन यहाँ से निकाल दिया जाएगा। देखिए ये सब आप ही की बेहतरी के लिए है। अरे हाँ, आपकी परिकथा मुझे लगी।
शंभु- हाँ?
झिलमिल- जी! अजीब नहीं है, छोटी सी... पर अच्छी है।
शंभु- क्या करूँ इसकी मुझे आदत हो गई है तितली को बहुत अच्छी लगती थी, मैं इसे पढ़कर उसे सुलाया करता था।
झिलमिल- ठीक है, दवाइयाँ भूलिएगा नहीं।
(शंभु परिकथा पढ़ना शुरू करता है... तितली भीतर से वही परिकथा पढ़ते हुए बाहर आती है।)
शंभु- मैंने एक परी से कहा कि मुझे एक ऐसी परिकथा सुनाओ, जिसे सुनकर मेरी बेटी को अपनी परी मिल जाए। वो परी हँसने लगी और उसने कहा ठीक है, मैं एक ऐसी परी की कहानी सुनाती हूँ जो एक दिन ग़ायब हो गई थी और फिर कभी नहीं मिली। वो बहुत ख़ूबसूरत परी थी जिस दिन वो ग़ायब हो गई थी, परी देश में सभी परेशान हो उठे थे। कैसे गई? कहाँ गई? क्योंकि ऐसे कोई परी कभी ग़ायब नहीं होती। उसे ढूँढने का काम मुझे सौंपा गया क्योंकि (तितली साथ में बोलती है) हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे।
तितली- मैं धरती पर उस आदमी की तलाश करने लगी जिसकी वो परी थी। बहुत समय बाद वो मिला। पर परी उसके पास नहीं थी जानते हो क्या हुआ था। उस आदमी ने एक बार किसी से कह दिया था कि मैं परियों में विश्वास नहीं करता और उसकी परी मर गई थी।
सीन- 3
(शंभु सो रहा है)
झिलमिल- आइए, ये कमरा है। ये शंभुजी हैं, शायद सो रहे हैं। आप काफ़ी लेट हो गए।
बलि- हाँ, आयु प्रमाण पत्र बनने में दे हो गई।
झिलमिल- वो आपकी जगह, चलती हूँ, कल मुलाक़ात होगी।
बलि- वैसे नाम क्या बताया आपने?
झिलमिल- अभी तक तो बताया नहीं, वैसे मेरा नाम झिलमिल है।
बलि- झिलमिल!
झिलमिल- जी।
बलि- काफ़ी अच्छा नाम है, ये नाम हमने सुना है, अरे हाँ...
झिलमिल- सो जाइए, काफ़ी देर हो गई है, सुबह बात होगी।
(exit)
बलि-
(singing) नमस्ते शंभु जी! कमरा तो ऐसा लग रहा है जैसे अभी आपके बच्चे फुटबाल खेल के गए हों। (पलंग सरकाने लगता है।)
शंभु- पलंग मत सरकाइए। (लेटे हुए.. बलि को समझ नहीं आता कि ये आवाज़ कहाँ से आई है।)
बलि- अरे शंभु जी! नमस्ते! काफ़ी अच्छा है कमरा, आपने एकदम अपने घर जैसा रखा है। काफ़ी समय से आप यहाँ रह रहे होंगे।
शंभु- दो साल से।
बलि- ये झिलमिल जी कोन हैं?
शंभु- डॉक्टर है। रोज सुबह-शाम देखने आती है।
बलि- काफ़ी अच्छी दिखती है। मेरा मानना है डॉक्टर को हमेशा अच्छा दिखना चाहिए। इससे मरीज़ जल्दी ठीक हो जाता है।
शंभु- अपने मानने को आप अपने पास ही रखिए। लाइट बंद कर दीजिए, मुझे सोना है।
बलि- जी, जैसा आप कहें। बस थोड़ा सामान जमा लूँ।
शंभु- मुझे नींद आ रही है लाइट ऑफ कर दीजिए।
बलि- अरे ऎसे कैसे चलेगा.. मैं काम कर रहा हूँ।
शंभु- लाईट ऑफ!!! (बलि बड़बड़ाता हुआ लाइट ऑफ करता है, वापिस आकर पलंग सरकाता है।) पलंग मत सरकाईये...
बलि- पर ये तो एकदम अजीब जगह रखा है। मुझे घर के कोनों से बहुत घबराहट होती है।
शंभु- जो भी हो वो ही आपकी जगह है। अब चुपचाप सो जाइए। (बलि पलंग पर लेट जाता है... कुछ देर में)
बलि- अगर मेरी पढ़ने की इच्छा हुई तो शंभु जी? तब तो लाइट जलानी ही पड़ेगी क्योंकि अँधेरे में पढ़ना मैंने अभी तक सीखा नहीं है।
शंभु- मेरे साथ रहना है तो अँधेरे में पढ़ने की आदत डाल लीजिए।
(silence)
बलि- आप खर्राटे तो नहीं लेते?
(silence)
....बस यूँ ही पूछ लिया।
(silence)
....मैं रात को खर्राटे लेता हूँ, बस बताना चाहता था। (
silence)
(starts
singing) ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया...
शंभु- (शंभु पहली बार उठकर बैठ जाता है।) आप चुपचाप नहीं सो सकते? अब अगर एक शब्द भी मुँह से निकाला तो धक्के मारकर इस कमरे से निकाल दूँगा।
बलि- (बलि भी उठ जाता है।) मुझे इतनी जल्दी नींद नहीं आती... अजीब तानाशाही है, मेरी जब इच्छा होगी तब सोऊँगा। आप क्या, क्या, डरा किसको रहे हैं? मैं किसी से नहीं डरता। देखो मुझसे पंगा मत लेना। मैंने जवानी में कराटे सीखे थे। एक समय ब्रूस ली मेरे गुरु थे...
शंभु- और मैंने जवानी में दो ख़ून किए हैं। अभी तीसरा ख़ून करने में मुझे कोई दिक़्क़त नहीं होगी, समझे! चुप! एकदम चुप लेटो! आँखें बंद एकदम बंद!
बलि- पेशाब करने चला जाऊँ शंभु जी?
सीन-4
(बलि सो रहा है। शंभु उसके आगे ग़ुस्सें में चक्कर लगा रहा है। झिलमिल आती है।)
झिलमिल-
Good Morning! मैंने कहा
Good Morning! कैसी तबीयत है?
शंभु- ज़िंदा हूँ।
झिलमिल- बलि जी दिख नहीं रहे, वो ज़िंदा हैं कि वो... अरे अभी तक सो रहे हैं?
शंभु- उल्लू हैं, उल्लू! दिन में सोते हैं रात में गाने गाते हैं।
बलि- मैं सोया नहीं हूँ। सुबह-सुबह अपनी तारीफ़ सुन रहा हूँ।
झिलमिल-
Good Morning बलि जी!
बलि-
Good Morning! उठ जाऊँ शंभु जी? डर के मारे रात भर सो नहीं पाया। और आप एक मिनट...
झिलमिल- बाथरूम उधर है।
बलि- रात भर इन्होंने जाने नहीं दिया।
शंभु- मैं इसके साथ एक मिनट भी नहीं रह सकता।
बलि- मैं भी इनके साथ नहीं रहना चाहता, मैं पागल हो सकता हूँ। ये रात में मुझे डरा रहे थे। अभी जैसे दिख रहे हैं, असल में हैं नहीं। मैं अभी आया, आप जाना मत। (बलि अंदर जाता है)
झिलमिल- शुभांकर का लैटर आया है। ये 10 दिन पहले आया था। ये अभी आया है।
शंभु- मैंने कहा था इसे फेंक दो।
झिलमिल- पता है आपने कहा था, पर मुझे लगा शायद बलि जी के आने से आपका मूड ठीक हो जाए, पर अब मुझे लगता है, इन्हें फेंकना ही पड़ेगा।
शंभु- डस्टबिन उधर है।
झिलमिल-
दो साल हो गए हैं। वो लगातार आपको लैटर लिख रहा है, क्या आपकी एक बार भी इच्छा नहीं हुई कि कम से कम एक लैटर पढ़कर देखें, क्या कहना चाहता है वो। कल शुभांकर का फोन भी आया था, कह रहा था किसी बड़ी कंपनी में उसे ऑफर आया है, शायद out of India जाना
पड़े। पर समझ में नहीं आ रहा है कि Join करे या नहीं करे। वो आपसे मिलना चाहता है।
शंभु- मैं किसी शुभांकर को नहीं जानता हूँ, तुम मुझसे उसकी बातें मत किया करो।
झिलमिल- मैंने मना कर दिया। कहा कि आपकी तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए आप अभी नहीं मिल सकते।
शंभु- नहीं, कभी नहीं मिलना मुझे। (बलि की अंदर से कुल्ला करने की आवाज़ आती है) मैं इस आदमी के साथ नहीं रह सकता हूँ इसे पहले यहाँ से निकाल दो।
झिलमिल- आपका अकेले रहना ठीक नहीं है ये मेरा नहीं मैनेजमेंट का फैसला है। मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकती। कम से कम कुछ दिन रहकर तो देखिए, फिर भी आपको ठीक नहीं लगेगा, तो बात करूँगी।
शंभु- ठीक है।
झिलमिल- वैसे बलि जी के बारे में हमने पता किया है, वो अच्छे आदमी हैं।
बलि-
Thank you मैंने सुन लिया....
आपने सुना।
झिलमिल- अच्छा तो मैं चलती हूँ।
बलि- अरे! मुझे आपसे बात करनी है, इधर आइए, क्या आप लोग यहाँ खूनियों को भी रखते हैं?
झिलमिल- कौन?
बलि- ये बुढ़उ दो ख़ून कर चुके हैं। एक और करना चाहते हैं, वो भी मेरा बताइए।
झिलमिल- वो मज़ाक कर रहे होंगे।
बलि- नहीं भाई। इनका तो नाम भी खूनियों जैसा है- शंभु। आप क्यों मेरी बलि चढ़ा रही हैं?
झिलमिल- आपको रहना तो इन्हीं के साथ। घबराइए नहीं मैं आती रहूँगी। क्या आप मेरे ख़ातिर इतना नहीं कर सकते, प्लीज़!
बलि- ठीक है। पर आप आती रहिएगा वरना ये मुझे मार डालेंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा।
झिलमिल- चलती हूँ शंभु जी, शाम को आती हूँ आपसे मिलने बलि जी- ठीक।
(exit)
बलि- झिलमिल जी शाम को आ रही हैं मुझसे मिलने...
(singing)
शंभु- देखिए! सुनिए! गाना बंद! आप और हम आराम से एक साथ रह सकते हैं, अगर हमारे बीच कम से कम संवाद हो तो।
बलि- आप यह हिंदी में बोलेंगे?
शंभु- मूर्ख!
बलि- और मैं मज़ाक कर रहा था, आप मज़ाक समझते नहीं क्या? देखिए मैं आपको बता दूँ, मैं बहुत बोलता हूँ। मेरा यहाँ रहना और बात करना एक ही बराबर है। मैं जहाँ होता हूँ, वहाँ बहुत बोलता हूँ। बोलना मेरी बीमारी है, जो बुढ़ापे में आकर लगातार बढ़ती जा रही है। बोलने के कारण मेरे घर वालों ने मुझे, मेरे घर से निकाल दिया।
(शंभु आईने में अपना चेहरा देख रहा है।) वैसे मैं आपसे कम बूढ़ा हूँ।
शंभु- कम बूढ़ा क्या होता है?
बलि- मतलब आप ज़्यादा बूढ़े हैं और मैं कम बूढ़ा।
शंभु- देखिए कम, ज़्यादा कुछ नहीं होता। बूढ़ा आदमी, बूढ़ा आदमी होता है।
बलि- ठीक है तो आप चिड़चिड़े खड़ूस बूढ़े हैं और मैं ज़्यादा बोलने वाला नेक दिल बूढ़ा।
शंभु- तुमको मैं खड़ूस दिखता हूँ?
बलि- तो आपको मैं बूढ़ा दिखता हूँ, ध्यान से देखिए- ये जॉ लाइन देखिए।
शंभु- सच में तुम बहुत बकवास करते हो। क्या ये तुम्हारी खानदानी बीमारी है?
बलि- नहीं खानदानी नहीं है, मेरे एक दोस्त थे हरिशंकर तिवारी...
(बलि आसमान की तरफ देखता है) माफ़ करना।
शंभु- क्या?
बलि- डॉ हरिशंकर तिवारी वो बहुत बोलते थे। ये बीमारी मुझे वहीं से मिली है।
शंभु- किससे बात कर रहे हो?
बलि- (तिवारी जी से) अरे! तिवारी जी के नाम के आगे डॉ नहीं लगाओ, तो वो बहुत नाराज़ हो जाते थे। पहले जब तिवारी जी जवान थे, तो उन्हें लगता था कि उनकी उनके घर मोहल्ले शहर, देश में कोई इज़्ज़त ही नहीं है।
कोई उन्हें पूछता भी नहीं है- तो उन्होंने एक दिन घर के बाहर, नेमप्लेट पर अपना नाम लिखवा दिया- ‘हरिशंकर तिवारी जी यहाँ रहते हैं।’ पर बात बनी नहीं। लोग कहने लगे- हमें तो पता है तिवारी जी यहाँ रहते हैं, लिखने की क्या ज़रूरत थी। तिवारी जी को कुछ समझ में नहीं आया क्या करें, फिर उन्होंने अंग्रेज़ी में नेम प्लेट बनवाई और लिख दिया Dr.
(डॉ0) यानि...
शंभु- डॉक्टर
बलि- हाँ। डॉक्टर हरिशंकर तिवारी यहाँ रहते हैं। और घर में छुपकर देखने लगे कि लोग क्या कहते हैं लोगों ने मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया कुछ बातें तो लोगों ने इतनी बुरी कहीं कि तिवारी जी को सहन नहीं हुई। क्या करते तिवारी जी डॉक्टर तो थे नहीं।
और पढ़ने-लिखने को शौक बहुत पहले ही गँवा चुके थे। अब Dr.
लिखकर फँस चुके थे। तो उन्होंने अपने एक दोस्त की स्कूल बस चलानी शुरू कर दी। बात बन गई। Dr.
उनकी नेमप्लेट पर बना रहा, अब यहाँ Dr.
का मतलब डॉ0 ना होकर क्या हो गया था?
Dr. का मतलब डॉक्टर ना होकर क्या हो गया था?
शंभु- (चिड़चिड़ाकर) अरे मुझे क्या पता क्या हो गया था!
बलि- अरे ड्राइवर हो गया था।
शंभु- लेकिन तुम तो उन्हें डॉक्टर कहते हो फिर तो डॉ0 कैसे हुए?
बलि- बाद में वो डॉक्टर हो गए थे, वो अलग क़िस्सा है, वो बाद में बताऊँगा।
शंभु- अभी क्या कर रहे हो?
बलि- कुछ नहीं।
शंभु- अरे अजीब आदमी हो! तो अभी सुनाओ ना क़िस्सा...
बलि- अरे अजीब तो आप हैं! कभी कहते हो क़िस्सा सुनाओ, कभी कहते हो चुप रहो।
शंभु- बात को घुमाओ मत।
बलि- मुझे नींद आ रही है। एक तो रातभर सोने नहीं दिया... अच्छा ठीक है एक शर्त पर क़िस्सा सुनाऊँगा। पहले आपको मेरे कुछ प्रश्नों का एकदम सही उत्तर देना होगा।
शंभु- अच्छा चुप रहो, मुझे नहीं सुनना कोई क़िस्सा।
बलि- ठीक, मत सुनो, मैं सोता हूँ।
(silence)
शंभु- ठीक है पूछिए, लेकिन मेरी जो इच्छा होगी, मैं सिर्फ़ उन सवालों का जवाब दूँगा।
बलि- जैसी आपकी मर्ज़ी। शुरू करूँ... आप जेल से कब छूटे? आपने जो दो ख़ून किए थे वो कैसे किए थे? और अगर अब पछतावा हो रहा है तो यहाँ क्यों आए? किसी पहाड़ पर जाकर संन्यास क्यों नहीं ले लिया? आपने इतना डरावना नाम ख़ून करने के बाद रखा या ये नाम पहले से ही था? आप मरने से डरते हैं? आपके दाँत असली हैं या नकली? और हाँ अगर आपको एक दिन के लिए प्रधानमंत्री बना दिया जाए तो आप क्या करेंगे?
शंभु- बेवकूफ़!
बलि- वो आख़िरी सवाल। मैंने ऐसे ही पूछ लिया, उसका जवाब अगर आप नहीं भी दो तो चलेगा।
शंभु- एक तो तुम...
बलि- रुको! मुझे आराम से लेट जाने दो, और हाँ आपने वो हथियार कहाँ छुपाकर रखा है, जिससे तुम ख़ून करते हो। हाँ शुरू हो जाओ।
शंभु- तुम चुप रहोगे? पहली बात तो मैंने कोई ख़ून नहीं किए, वो बात मैं तुम्हें डराने के लिए कह रहा था। पर अब पछता रहा हूँ, काश किए होते तो तुम्हें मारने में ज़रा भी दिक़्क़त नहीं होती।
बलि- अरे भई आप इतनी जल्दी गुस्सा क्यों हो जाते हो! मैं ये सब थोड़ी जानना चाहता था, मैं तो चाहता हूँ कि आप बोलें, जो इच्छा हो वो बोलें। अपने बारे में, किसी के बारे में भी, साँस भीतर ले रोकें, छोड़ें... फिर भीतर लें रोकें, छोड़ें।
शंभु- मैं तुम्हारी बात क्यों मान रहा हूँ?
बलि- दो-तीन बार करिए, अच्छा लगेगा। और हाँ मैं इंतज़ार कर रहा हूँ। जब इच्छा हो शुरू हो जाइएगा। मैं सुन रहा हूँ।
शंभु- कुछ नहीं बोलना है। (वापिस आकर अपने बेड पर बैठ जाता है। दो-तीन बार साँस लेता है) मुझे अच्छा लग रहा है, बेकार में ग़ुस्सा करता हूँ।
(बलि को देखता है) बुढ़ापा, बहुदा बचपने का पुनरागमन होता है, यह बात मुझ पर लागू होती है।
अजीब हूँ मैं, मेरी पलकों के बाल कई बार मेरी हथेली तक आए, पर मैंने अभी आँख बंद करके उड़ाया नहीं। कई बार मैंने टूटते तारों को भी देखा, पर मेरी आँखें तब भी खुली रहीं। आँख बंद करके मैंने कभी कुछ माँगा ही नहीं।
उस सुख की भी तलाश नहीं की जिस सुख को जीते हुए मेरी आँख झुक जाए, पर एक टीस ज़रूर है। वो भी उन सुखों की जो मेरे आसपास ही पड़े थे, कई बार मेरे रास्ते में भी आए पर पता नहीं क्यों मैं उन्हें जी नहीं पाया।
अपने ऐसे बहुत से सुखों को जिन्हें मैं जी नहीं पाया, मैंने अपने इस पुराने सूटकेस में बंद कर दिया है। कभी-कभी इसे खोलकर देख लेता हूँ। इसमें, इसमें बड़ा सुख है और इस सुख को मैंने कभी अपने इस पुराने सूटकेस से गिरने नहीं देता हूँ, इसे हमेशा अपने पास रखता हूँ।
जिन
सुखों को जी नहीं पाया उन सुखों को महसूस करना कि कभी इन्हें जी सकता था। ये अजीब सुख है और जिन सुखों को जी चुका हूँ उनका अपना अलग बोझ है। जिसे ढोते-ढोते जब भी थक जाता हूँ, तब अपना पुराना सूटकेस खोल लेता हूँ और थोड़ा हल्का महसूस करता हूँ। तितली...
तितली- खड़े क्या हो, पकड़ो धीरे।
शंभु- तितली सुनो! धीरे...
तितली- पापा! पापा!
शंभु- बस आ जाओ बेटा। मेरी हिम्मत नहीं है, बहुत थक गया बस।
तितली- आपके साथ खेलने में मज़ा नहीं आता। बाहर जाऊँ?
शंभु- बेटा, रात हो गई है, इतनी रात को बाहर नहीं निकलते।
तितली- रात कहाँ दिन है पापा। पापा, आप सच में बूढ़े हो गए हैं। बाहर जाऊँ?
शंभु- दोपहर है तो बाहर जाने की क्या ज़रूरत है, यहीं ठीक है ना।
तितली-
(Hops catch) पापा फाउल। पापा आप सच में बूढ़े हो गए है बाहर जाऊँ?
शंभु- नहीं बेटा, बाहर धूप है। दोपहर में बाहर जाओगी तो काली हो जाओगी।
तितली- हाँ, काली हो जाऊँगी तो बंदरिया जैसी दिखने लगूँगी, फिर जंगल में किसी बंदर को पकड़कर लाना पड़ेगा, मुझसे शादी करने के लिए। यही ना तो ठीक है? तो ठीक है, मैं बंदर से शादी करने को तैयार हूँ। अब बताइए। आप बंदर को ढूँढने मेरे साथ चलेंगे या मैं अकेले जाऊँ? बोलिए बाहर जाऊँ?
शंभु- काले मुँह के बंदर तो दूर जंगलों में होते हैं, आसानी से नहीं मिलते।
तितली- और लाल मुँह के बंदर, वो...
शंभु- लाल मुँह के बंदर तो सात समुंदर पार के जंगलों में होते हैं
(Blind man’s buff) उन्हें ढूँढना बहुत मुश्किल है। वैसे लाल मुँह के बंदर अपने आपको अंग्रेज़ समझते हैं, वो आसानी से तुमसे शादी करने को तैयार नहीं होंगे।
और अगर राज़ी हो भी गए तो वो दहेज़ में केले के बाग माँगेगे। बताओ बेटी, इस उम्र में मैं ज़मीन खरीदूँगा, केले के बाग लगाऊँगा, केले उगाऊँगा, तब तक तो तुम बूढ़ी हो गई होगी। और फिर एक काली-कलूटी बुढ़िया से बंदर तो क्या चूहे भी शादी करने को तैयार नहीं होंगे।
(remove blind fole) बेटा तितली, बेटा क्या हुआ? अच्छा माफ़ कर दो। चूहे राज़ी हो जाएँगे, मैं मना लूँगा उनको। अच्छा?
तितली- नहीं पापा, कुछ लाल मुँह के बंदर, अपने गाँव में घुस आए हैं।
शंभु- अपने गाँव में?
तितली- हाँ पापा। एक बंदर का तो मैं नाम भी जानती हूँ।
शंभु- बेटा, बहुत हो गया मज़ाक!
तितली- मैं बताऊँ उसका नाम?
शंभु- मुझे नहीं सुनना नाम।
तितली- उसका नाम है...
शंभु- अच्छा तुम जाओ अभी।
तितली- बाहर जाऊँ? खेलने?
शंभु- हाँ चली जाओ।
तितली- मैं जा रही हूँ। (वापस आती है) वैसे उस बंदर का नाम शुभांकर है।
सीन-5
(बलि गाना गाता है, वो अंदर शंभु को देखता रहता है, पलंग खिसकाता है। उसी वक़्त शंभु अंदर आता है।)
शंभु- एक काम करो। ऊपर ही चढ़ा दो इसको। अपना पलंग मेरे पलंग के ऊपर.. है ना।
बलि- शंभु जी आपको हमारी दोस्ती की कसम।
शंभु- दोस्त-वोस्त नहीं हैं हम लोग, समझे! वापस रखो।
बलि- चलिए न आपकी न मेरी... इतना। और बताइए कैसे हैं आप?
शंभु- उठो वापस, वहीं रखो।
बलि- अच्छा ठीक है बस इतना... इससे पीछे नहीं।
शंभु- मैंने कहा ना पीछॆ।
बलि- (बलि पलंग पकड़कर लेट जाता है) मैं मर जाऊँगा पर इसके पीछे नहीं जाऊँगा। मुझे घबराहट होती है और समाज में सबको समान अधिकार है ये भेदभाव नहीं चलेगा। कसम खाता हूँ, इसके आगे नहीं आऊँगा।
शंभु- तुमने बताया नहीं।
बलि- बताया ना पीछे घबराहट होती है।
शंभु- अरे नहीं, वो, तिवारी जी ड्राइवर से डॉक्टर कैसे बने?
बलि- आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया तो मैंने भी नहीं बताया।
शंभु- मैंने जवाब दिया था, आप सो गए थे।
बलि- अब रात भर सोने नहीं देगे तो क्या करूँगा?
शंभु- अभी नींद तो नहीं आ रही ना?
बलि- नहीं.
शंभु- तो...
(इशारे से पूछता है।)
बलि- क्या?
शंभु- अरे वो ही!
बलि- वो ही क्या?
शंभु- अरे वो ही!
बलि- क्या वो ही भई?
शंभु- वो तिवारी जी ड्राइवर से डॉक्टर कैसे बने?
बलि- नहीं अभी नहीं। अभी मुझे ज़रा तैयार होना है। (बलि अंदर जाता है)
शंभु- तो तुमने जाने का फ़ैसला कर लिया है।
बलि- (अंदर से ही) नहीं, झीलमिल जी आने वाली है.. और वो मुझसे मिलने आ रही हैं।
शंभु- वो रोज़ शाम को आती हैं।
बलि- लेकिन आज वो सिर्फ मुझसे मिलने आ रही हैं।
शंभु- अरे पगलाओ मत.. एक बुढ़ा और था वो भी यहीं सोचता था....
फिर इंतज़ार करते करते टें बोल गया। (बली गुस्से में बाहर आता है सिर्फ कुर्ता पहनकर...)
बलि- अच्छा आप चुप रहिए... एकदम चुप.. मान लेने में क्या जाता है। यही कुछ सुख बचे हैं हम लोगों के पास... अगर ये भी नहीं रहे ना.. तो हम जैसे लोगों को आत्महत्या कर लेनी चाहिए।
शंभु- वैसे वो तुम्हारी बच्ची की उम्र की है...।
बलि- कैसा लग रहा हूँ मैं। (बलि एक पोज़ बनाकर खड़ा होता है.. उसके हाथ में एक गुलाब का फूल है।)
शंभु- ऎसे मिलोगे?
बलि- पैजामें का नाड़ा टूट गया है। जैसे ही आएगी मैं अंदर भाग जाऊंगा। कैसा लग रहा हूँ?
शंभु- छिछोरा..। अरे तुम्हारी बच्ची की उम्र की है वो।
बलि- बच्ची तो नहीं है ना..। आपको पता नहीं है जब मैं दिन में सो रहा था ना तो वो आपकी बच्ची जी मेरे सपने में आई थीं। पता है कैसी कैसी बातें कर रही थीं... मुझे तो बताने में भी शर्म आती है... और आप तो जानते हैं कि दोपहर का सपना सच्चा होता है।
शंभु- दोपहर का नहीं सुबह का.. सुबह का सपना सच्चा होता है।
बलि- अपने लिए तो जब जागो तभी सवेरा है..। यार आई नहीं अभी तक।
शंभु- (दरवाज़े की तरफ देखते हुए..) अरे झीलमिल बेटा कब आई।
(बलि डर के मारे अंदर भागता है... तभी शंभु को हंसी आ जाती है।) क्यों सिर्फ तुम ही मज़ाक कर सकते हो?
बलि- मैं पैजामा पहनकर आता हूँ तब बताता हूँ बुढ़ऊ तेरेको... अभी मर जाता तो (अंदर जाता है।)
शंभु- अरे मर तो तू पैजामें में भी सकता है। पर एक बात सही कहीं...
(अपने से) हमारे पास थोड़े बहुत सुख हैम... वरना हम जैसे लोगों की तो दुनियाँ में ज़रुरत क्या है? ( भीतर से बलि की आवाज़ आती है... आ ई ई..।) क्या हुआ?
बलि- पैजामा गंदा हो गया। (पैजामें पर पानी गिर जाता है। एक कपड़े से बलि उसे अपने पलंग पर बैठकर साफ करने लगता है।)
शंभु- अरे अरे... अरे...
बलि- खुश मत हो ...
साफ हो रहा है।
शंभु- अरे... आप...
(मानों कोई आया हो... बलि फिर डर जाता है..) अरे कोई नहीं है.. ऎसे ही कोई गुज़र रहा था... साफ करो तुम...। (वक़्फा) वैसे टाईम तो ज़्यादा हो गया है,...
मुझे लगता नहीं कि वो आएगीं।
बलि- कीड़े पड़े तुम्हारे मुँह में।
शंभु- भाई मैं तो लेट रहा हूँ... अगर वो नहीं आए तो
light off करके सो जाना।
बलि- शंभु जी आप पहली नज़र के प्यार पर यक़ीन करते हैं?
शंभु- क्या?
बलि- मैं भी नहीं करता था, पर अब लगता है पहली नज़र का प्यार होता है। भई अब कोई मुझे पहली ही नज़र में पसंद कर ले, बस बात ख़त्म।
शंभु- पगलाओ मत सच में आ जाएगी।
बलि- अभी तक तो नहीं आई ना! बस ऐसे ही प्यार में दरार पड़नी शुरू हो जाती है।
शंभु- कल तुम उससे मिले, आज प्यार हुआ और अभी-अभी दरार भी पड़ गई।
बलि- अब सोचता हूँ, जो आसान काम है वही कर दूँ।
शंभु- क्या?
बलि- ना... ना कर दूँ उसको।
शंभु- हाँ करने का तो कोई मतलब नहीं है, बेहतर होगा ना कर दो। चलो थोड़ा प्रैक्टिस कर लो। देखो ऐसे झिलमिल जी आएँगी। (बलि हँसने लगता है) अरे मैं नहीं... मानो वो आ रही है... तो वो आई.. बलि जी.. कैसे हैं आप..?
बलि- ना!
शंभु- अरे ये तो एकदम फुस्स था। फिर आई...
बलि- ना!
शंभु- अरे ये तो एकदम राक्षसों जैसा हो गया। ठीक से प्रैक्टिस करो।
(गौतम की
Entry)
बलि- ना!
गौतम- ना! (डर कर वापस चला जाता है)
बलि- अरे बुरा ना लग जाए। मैंने सुना है प्यार में लोगों ने आत्महत्या तक की है। तुम्हें क्या लगता है कहीं वो आत्महत्या तो नहीं कर लेगी।
शंभु- अगर वो तुमसे प्यार करती है, जैसा कि तुम्हें लगता है तो कुछ तो करेगी।
बलि- देखो अभी तक नहीं आई।
शंभु- कहीं सच में तो आत्महत्या नहीं कर ली उसने?
बलि- नहीं! प्यार में जो मरता है वो कायर होता है, पर जो प्यार करे और ज़िंदा भी रहे वो ही सच्चा प्रेमी होता है। कैसी कही?
शंभु- अच्छी कही, पर कैसे कही? मतलब निकली कहाँ से?
बलि- अरे वही, मेरे दोस्त डॉ0 हरिशंकर तिवारी के मुँह से सुना था। उन्हें एक बार प्यार हो गया था। वही मोहल्ले में एक गुलाब बाई नाम की औरत रहती थी, उसकी एक बच्ची भी थी और पति मर चुका था। उसे पैसों की ज़रूरत थी तो तिवारी जी ने उसे अपने घर बर्तन माँजने और कपड़े धोने का काम दे दिया था।
गुलाब बाई को कपड़े धोता देखते-देखते तिवारी जी को गुलाब बाई से प्यार हो गया। और गुलाब बाई, वो ग़ज़ब औरत थी उसे कोई गुलाब बाई कहे तो उसे अच्छा नहीं लगता था। वो अपने आपको आंटी कहलवाना ज़्यादा पसंद करती थी। तिवारी जी थोड़ी