Wednesday 28 June 2023

Bali Aur Shambhu: A drama by Manav Kaul- वृद्ध आश्रम के दो वरिष्ठ कैदी. शंभू क्रोधी, चिड़चिड़ा है.बाली को वृद्धाश्रम में शरण लेने के लिए मजबूर किया जाता है

सीन- 1

शंभु अपने बेड पर सूटकेस खोल रहा है। Stage (R) गौतम सो रहा है, शंभु सूटकेस में से एक फोटो निकालता है और Stage (R) देखता है औरतितलीकहता है। तितली आकर शंभु के बगल में बैठ जाती है।

 

तितली- पापा, आप डांस देखने तो आए नहीं, अब यहाँ बैठे-बैठे फोटो देख रहे हो।

शंभु- बेटा, मैं वहाँ आकर क्या करूँगा?

 

तितली- मुझे भी पता है आप नहीं आएँगे, पर पता नहीं क्यों हमेशा नाचते हुए मैं आपको भीड़ में ढूँढती हूँ। या जब लोग पीछे मिलने आते हैं तो मैं इंतज़ार क्यों करती हूँ कि आप मेरा नाम पूछते हुए, पीछे मुझे ढूँढेंगे। तितली को देखा आपने? तितली... जो सबसे आगे डांस कर रही थी, उसका कमरा कहाँ है? तितली, बेटा...

शंभु- बेटा, मुझे पता है कि तुम अच्छा डांस करती हो।

तितली- अच्छा! यह आपने फोटो देखकर जान गए?

 

शंभु- सारी प्रेक्टिस तो तुमने मेरे सामने की है। विश्वास नहीं? मैं तुम्हें तुम्हारा डांस करके बताता हूँ... (डांस करता है.. और शंभु की कमर दुखने लगती है, वो वापिस बेड पर जाता है।)

 

तितली- (हँसती है) आप बैठ जाइए, रहने दीजिए। एक बात कहूँ, आप बहुत गंदा डांस करते हैं। पापा, कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं नाचते-नाचते उड़ जाऊँगी और किसी पहाड़ पर जाकर बैठ जाऊँगी और वहाँ नीचे आप मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। पर मैं नहीं आऊँगी और जब आप इंतज़ार करते-करते थक जाएँगे, तब मैं पीछे आकर...’बोकरके आपको डरा दूँगी। मज़ा आएगा, क्यों पापा?

 

शंभु- मुझसे ऐसी बातें मत किया करो।

तितली- पापा, मैं मज़ाक कर रही थी।

शंभु- मुझे पसंद नहीं ऐसा मज़ाक।

तितली- ठीक है पापा, अच्छा मेरी परीकथा कहाँ है?

शंभु- परीकथा बाद में।

 

(Starts to take out something from the suitcase)

तितली- तो ठीक है। फिर मैं परीकथा सुनने आऊँगी।

शंभु- बेटा तितली, कहाँ जा रही हो? बैठो सुनो... चली गई... अपने समय से आती है अपने समय से चली जाती है। (तभी उसे दरवाज़े पर परछाई दिखाई देती है... मानों कोई खड़ा हो।) अरे आप, आप कौन हैं? तितली बेटा, तुमने किसी को बुलाया है? आप, आपका नाम क्या है? बेटा देखो अपने घर कोई घुस आया है... (Shadow laughs) क्या हँस क्यों रहे हो। जाओ निकल जाओ यहाँ से।

 

शुभांकर- मेरा नाम...

शंभु- नहीं, नहीं जानना मुझे तुम्हारा नाम, निकल जाओ।

शुभांकर- मेरा नाम शुभांकर है... (Laughs & exit)

(शंभु बहुत सारी चीजें फेंकने लगता है दरवाज़े की तरफ़। गौतम, जो कि ज़मीन पर सो रहा है, डरकर उठ जाता है।)

 

गौतम- डर लगे तो गाना गाओ, भूख लगे तो खाना खाओ।

(शंभु बेहोश हो जाता है। गौतम उसे उठाकर पलंग पर सुलाता है और भाग जाता है।)


 सीन- 2

(गौतम दरवाज़े पर खड़ा है, झिलमिल सामान बीन रही है, भीतर से शंभु आता है)

शंभु- अरे आप लोग कब आए?

 

झिलमिल- नमस्ते! रात में काफ़ी तोड़-फोड़ की है आपने, याद है? कल आप गौतम की वजह से बच गए। अगर समय पर ये मुझे नहीं बुलाता तो कुछ भी हो सकता था। कल आपको दूसरा अटैक आया था।

 

(गौतम के पास जाता है।गौतम शंभु से बहुत डरता है।)

गौतम- डर लगे तो गाना गाओ, भूख लगे तो खाना खाओ।

शंभु- चुप, क्या है! कल रात के लिए माफ़ी चाहता हूँ।

गौतम- डर लगे तो गाना गाओ, भूख लगे तो खाना खाओ।

झिलमिल- अब कैसी तबीयत है?

शंभु- ठीक है।

 

झिलमिल- गौतम को आपकी ही देखभाल के लिए रखा है, पर वो इतना डर गया है कि वो इस कमरे में आना भी नहीं चाहता। पहले ही मूर्ख भूतों से डरता था। आप बताइए क्या करूँ? इस Old Age Home के भी कुछ rules हैं, मुझे भी जवाब देना पड़ता है। और आपकी तबीयत?

शंभु- कितने दिन बचे हैं मेरे पास?

झिलमिल- सब कुछ आपके ऊपर है।

शंभु- सॉरी!

 

झिलमिल- ये आप पहले भी कई बार कह चुके हैं। गौतम, दवाइयाँ दी?

गौतम- मैं वो देने ही वाला था पर...

झिलमिल- ये दवाइयाँ... गौतम, वो काग़ज़ कंप्लीट हो गए?

गौतम- किसके?

 

झिलमिल- वो क्या नाम है, बलि आने वाले थे ना उनके?

गौतम- वो आज शाम आने वाले थे पर age proof certificate नहीं था तो वो रात तक उसे लेकर जाएँगे।

 

झिलमिल- ठीक है। अगर सब ठीक है तो उन्हें, इनके साथ शिफ्ट कर देना।

शंभु- क्या मैं किसी के साथ नहीं रहूँगा मैं इस old age home को अपनी पूरी पेंशन दे रहा हूँ, ताकि मैं अकेला रह सकूँ।

 

झिलमिल- अगर मैंने आपकी सही-सही रिपोर्ट तैयार कर के दे दी कि आप कैसे अकेले यहाँ आए दिन तोड़-फोड़ करते रहते हैं तो आपको अगले दिन यहाँ से निकाल दिया जाएगा। देखिए ये सब आप ही की बेहतरी के लिए है। अरे हाँ, आपकी परिकथा मुझे लगी।

शंभु- हाँ?

 

झिलमिल- जी! अजीब नहीं है, छोटी सी... पर अच्छी है।

शंभु- क्या करूँ इसकी मुझे आदत हो गई है तितली को बहुत अच्छी लगती थी, मैं इसे पढ़कर उसे सुलाया करता था।

झिलमिल- ठीक है, दवाइयाँ भूलिएगा नहीं।

 

(शंभु परिकथा पढ़ना शुरू करता है... तितली भीतर से वही परिकथा पढ़ते हुए बाहर आती है।)

 

शंभु- मैंने एक परी से कहा कि मुझे एक ऐसी परिकथा सुनाओ, जिसे सुनकर मेरी बेटी को अपनी परी मिल जाए। वो परी हँसने लगी और उसने कहा ठीक है, मैं एक ऐसी परी की कहानी सुनाती हूँ जो एक दिन ग़ायब हो गई थी और फिर कभी नहीं मिली। वो बहुत ख़ूबसूरत परी थी जिस दिन वो ग़ायब हो गई थी, परी देश में सभी परेशान हो उठे थे। कैसे गई? कहाँ गई? क्योंकि ऐसे कोई परी कभी ग़ायब नहीं होती। उसे ढूँढने का काम मुझे सौंपा गया क्योंकि (तितली साथ में बोलती है) हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे।

 

तितली- मैं धरती पर उस आदमी की तलाश करने लगी जिसकी वो परी थी। बहुत समय बाद वो मिला। पर परी उसके पास नहीं थी जानते हो क्या हुआ था। उस आदमी ने एक बार किसी से कह दिया था कि मैं परियों में विश्वास नहीं करता और उसकी परी मर गई थी।


सीन- 3

(शंभु सो रहा है)

झिलमिल- आइए, ये कमरा है। ये शंभुजी हैं, शायद सो रहे हैं। आप काफ़ी लेट हो गए।

 

बलि- हाँ, आयु प्रमाण पत्र बनने में दे हो गई।

झिलमिल- वो आपकी जगह, चलती हूँ, कल मुलाक़ात होगी।

बलि- वैसे नाम क्या बताया आपने?

झिलमिल- अभी तक तो बताया नहीं, वैसे मेरा नाम झिलमिल है।

बलि- झिलमिल!

झिलमिल- जी।

 

बलि- काफ़ी अच्छा नाम है, ये नाम हमने सुना है, अरे हाँ...

झिलमिल- सो जाइए, काफ़ी देर हो गई है, सुबह बात होगी। (exit)

बलि- (singing) नमस्ते शंभु जी! कमरा तो ऐसा लग रहा है जैसे अभी आपके बच्चे फुटबाल खेल के गए हों। (पलंग सरकाने लगता है।)

 

शंभु- पलंग मत सरकाइए। (लेटे हुए.. बलि को समझ नहीं आता कि ये आवाज़ कहाँ से आई है।)

बलि- अरे शंभु जी! नमस्ते! काफ़ी अच्छा है कमरा, आपने एकदम अपने घर जैसा रखा है। काफ़ी समय से आप यहाँ रह रहे होंगे।

शंभु- दो साल से।

बलि- ये झिलमिल जी कोन हैं?

 

शंभु- डॉक्टर है। रोज सुबह-शाम देखने आती है।

बलि- काफ़ी अच्छी दिखती है। मेरा मानना है डॉक्टर को हमेशा अच्छा दिखना चाहिए। इससे मरीज़ जल्दी ठीक हो जाता है।

शंभु- अपने मानने को आप अपने पास ही रखिए। लाइट बंद कर दीजिए, मुझे सोना है।

 

बलि- जी, जैसा आप कहें। बस थोड़ा सामान जमा लूँ।

शंभु- मुझे नींद रही है लाइट ऑफ कर दीजिए।

बलि- अरे ऎसे कैसे चलेगा.. मैं काम कर रहा हूँ।

 

शंभुलाईट ऑफ!!!  (बलि बड़बड़ाता हुआ लाइट ऑफ करता है, वापिस आकर पलंग सरकाता है।) पलंग मत सरकाईये...

 

बलि- पर ये तो एकदम अजीब जगह रखा है। मुझे घर के कोनों से बहुत घबराहट होती है।

शंभु- जो भी हो वो ही आपकी जगह है। अब चुपचाप सो जाइए। (बलि पलंग पर लेट जाता है... कुछ देर में)

 

बलि- अगर मेरी पढ़ने की इच्छा हुई तो शंभु जी? तब तो लाइट जलानी ही पड़ेगी क्योंकि अँधेरे में पढ़ना मैंने अभी तक सीखा नहीं है।

 

शंभु- मेरे साथ रहना है तो अँधेरे में पढ़ने की आदत डाल लीजिए। (silence)

बलि- आप खर्राटे तो नहीं लेते? (silence)

....बस यूँ ही पूछ लिया। (silence)

....मैं रात को खर्राटे लेता हूँ, बस बताना चाहता था। ( silence)

 

(starts singing) ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया...

शंभु- (शंभु पहली बार उठकर बैठ जाता है।) आप चुपचाप नहीं सो सकते? अब अगर एक शब्द भी मुँह से निकाला तो धक्के मारकर इस कमरे से निकाल दूँगा।

बलि- (बलि भी उठ जाता है।) मुझे इतनी जल्दी नींद नहीं आती... अजीब तानाशाही है, मेरी जब इच्छा होगी  तब सोऊँगा। आप क्या, क्या, डरा किसको रहे हैं? मैं किसी से नहीं डरता। देखो मुझसे पंगा मत लेना। मैंने जवानी में कराटे सीखे थे। एक समय ब्रूस ली मेरे गुरु थे...

 

शंभु- और मैंने जवानी में दो ख़ून किए हैं। अभी तीसरा ख़ून करने में मुझे कोई दिक़्क़त नहीं होगी, समझे! चुप! एकदम चुप लेटो! आँखें बंद एकदम बंद!

बलि- पेशाब करने चला जाऊँ शंभु जी?


 सीन-4

(बलि सो रहा है। शंभु उसके आगे ग़ुस्सें में चक्कर लगा रहा है। झिलमिल आती है।)

झिलमिल- Good Morning! मैंने कहा Good Morning! कैसी तबीयत है?

 

शंभु- ज़िंदा हूँ।

झिलमिल- बलि जी दिख नहीं रहे, वो ज़िंदा हैं कि वो... अरे अभी तक सो रहे हैं?

 

शंभु- उल्लू हैं, उल्लू! दिन में सोते हैं रात में गाने गाते हैं।

बलि- मैं सोया नहीं हूँ। सुबह-सुबह अपनी तारीफ़ सुन रहा हूँ।

झिलमिल- Good Morning बलि जी!

 

बलि- Good Morning! उठ जाऊँ शंभु जी? डर के मारे रात भर सो नहीं पाया। और आप एक मिनट...

झिलमिल- बाथरूम उधर है।

 

बलि- रात भर इन्होंने जाने नहीं दिया।

शंभु- मैं इसके साथ एक मिनट भी नहीं रह सकता।

बलि- मैं भी इनके साथ नहीं रहना चाहता, मैं पागल हो सकता हूँ। ये रात में मुझे डरा रहे थे। अभी जैसे दिख रहे हैं, असल में हैं नहीं। मैं अभी आया, आप जाना मत। (बलि अंदर जाता है)

 

झिलमिल- शुभांकर का लैटर आया है। ये 10 दिन पहले आया था। ये अभी आया है।

 

शंभु- मैंने कहा था इसे फेंक दो।

झिलमिल- पता है आपने कहा था, पर मुझे लगा शायद बलि जी के आने से आपका मूड ठीक हो जाए, पर अब मुझे लगता है, इन्हें फेंकना ही पड़ेगा।

शंभु- डस्टबिन उधर है।

झिलमिल- दो साल हो गए हैं। वो लगातार आपको लैटर लिख रहा है, क्या आपकी एक बार भी इच्छा नहीं हुई कि कम से कम एक लैटर पढ़कर देखें, क्या कहना चाहता है वो। कल शुभांकर का फोन भी आया था, कह रहा था किसी बड़ी कंपनी में उसे ऑफर आया है, शायद out of India जाना पड़े। पर समझ में नहीं रहा है कि Join करे या नहीं करे। वो आपसे मिलना चाहता है।

 

शंभु- मैं किसी शुभांकर को नहीं जानता हूँ, तुम मुझसे उसकी बातें मत किया करो।

झिलमिल- मैंने मना कर दिया। कहा कि आपकी तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए आप अभी नहीं मिल सकते।

 

शंभु- नहीं, कभी नहीं मिलना मुझे। (बलि की अंदर से कुल्ला करने की आवाज़ आती है) मैं इस आदमी के साथ नहीं रह सकता हूँ इसे पहले यहाँ से निकाल दो।

 

झिलमिल- आपका अकेले रहना ठीक नहीं है ये मेरा नहीं मैनेजमेंट का फैसला है। मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकती। कम से कम कुछ दिन रहकर तो देखिए, फिर भी आपको ठीक नहीं लगेगा, तो बात करूँगी।

शंभु- ठीक है।

 

झिलमिल- वैसे बलि जी के बारे में हमने पता किया है, वो अच्छे आदमी हैं।

बलि- Thank you मैंने सुन लिया.... आपने सुना।

झिलमिल- अच्छा तो मैं चलती हूँ।

 

बलि- अरे! मुझे आपसे बात करनी है, इधर आइए, क्या आप लोग यहाँ खूनियों को भी रखते हैं?

झिलमिल- कौन?

बलि- ये बुढ़उ दो ख़ून कर चुके हैं। एक और करना चाहते हैं, वो भी मेरा बताइए।

 

झिलमिल- वो मज़ाक कर रहे होंगे। 

बलि- नहीं भाई। इनका तो नाम भी खूनियों जैसा है- शंभु। आप क्यों मेरी बलि चढ़ा रही हैं?


झिलमिल- आपको रहना तो इन्हीं के साथ। घबराइए नहीं मैं आती रहूँगी। क्या आप मेरे ख़ातिर इतना नहीं कर सकते, प्लीज़!

बलि- ठीक है। पर आप आती रहिएगा वरना ये मुझे मार डालेंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा।

झिलमिल- चलती हूँ शंभु जी, शाम को आती हूँ आपसे मिलने बलि जी- ठीक। (exit)

 

बलि- झिलमिल जी शाम को रही हैं मुझसे मिलने... (singing)

शंभु- देखिए! सुनिए! गाना बंद! आप और हम आराम से एक साथ रह सकते हैं, अगर हमारे बीच कम से कम संवाद हो तो।

बलि- आप यह हिंदी में बोलेंगे?

शंभु- मूर्ख!

 

बलि- और मैं मज़ाक कर रहा था, आप मज़ाक समझते नहीं क्या? देखिए मैं आपको बता दूँ, मैं बहुत बोलता हूँ। मेरा यहाँ रहना और बात करना एक ही बराबर है। मैं जहाँ होता हूँ, वहाँ बहुत बोलता हूँ। बोलना मेरी बीमारी है, जो बुढ़ापे में आकर लगातार बढ़ती जा रही है। बोलने के कारण मेरे घर वालों ने मुझे, मेरे घर से निकाल दिया।

 

(शंभु आईने में अपना चेहरा देख रहा है।) वैसे मैं आपसे कम बूढ़ा हूँ।

शंभु- कम बूढ़ा क्या होता है?

बलि- मतलब आप ज़्यादा बूढ़े हैं और मैं कम बूढ़ा।

शंभु- देखिए कम, ज़्यादा कुछ नहीं होता। बूढ़ा आदमी, बूढ़ा आदमी होता है।

बलि- ठीक है तो आप चिड़चिड़े खड़ूस बूढ़े हैं और मैं ज़्यादा बोलने वाला नेक दिल बूढ़ा।

 

शंभु- तुमको मैं खड़ूस दिखता हूँ?

बलि- तो आपको मैं बूढ़ा दिखता हूँ, ध्यान से देखिए- ये जॉ लाइन देखिए।

शंभु- सच में तुम बहुत बकवास करते हो। क्या ये तुम्हारी खानदानी बीमारी है?

बलि- नहीं खानदानी नहीं है, मेरे एक दोस्त थे हरिशंकर तिवारी... (बलि आसमान की तरफ देखता है) माफ़ करना।

शंभु- क्या?

 

बलि- डॉ हरिशंकर तिवारी वो बहुत बोलते थे। ये बीमारी मुझे वहीं से मिली है।

शंभु- किससे बात कर रहे हो?

 

बलि- (तिवारी जी से) अरे! तिवारी जी के नाम के आगे डॉ नहीं लगाओ, तो वो बहुत नाराज़ हो जाते थे। पहले जब तिवारी जी जवान थे, तो उन्हें लगता था कि उनकी उनके घर मोहल्ले शहर, देश में कोई इज़्ज़त ही नहीं है।

 

कोई उन्हें पूछता भी नहीं है- तो उन्होंने एक दिन घर के बाहर, नेमप्लेट पर अपना नाम लिखवा दिया- ‘हरिशंकर तिवारी जी यहाँ रहते हैं।पर बात बनी नहीं। लोग कहने लगे- हमें तो पता है तिवारी जी यहाँ रहते हैं, लिखने की क्या ज़रूरत थी। तिवारी जी को कुछ समझ में नहीं आया क्या करें, फिर उन्होंने अंग्रेज़ी में नेम प्लेट बनवाई और लिख दिया Dr. (डॉ0) यानि...

शंभु- डॉक्टर

 

बलि- हाँ। डॉक्टर हरिशंकर तिवारी यहाँ रहते हैं। और घर में छुपकर देखने लगे कि लोग क्या कहते हैं लोगों ने मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया कुछ बातें तो लोगों ने इतनी बुरी कहीं कि तिवारी जी को सहन नहीं हुई। क्या करते तिवारी जी डॉक्टर तो थे नहीं।

 

और पढ़ने-लिखने को शौक बहुत पहले ही गँवा चुके थे। अब Dr. लिखकर फँस चुके थे। तो उन्होंने अपने एक दोस्त की स्कूल बस चलानी शुरू कर दी। बात बन गई। Dr. उनकी नेमप्लेट पर बना रहा, अब यहाँ Dr. का मतलब डॉ0 ना होकर क्या हो गया था? Dr. का मतलब डॉक्टर ना होकर क्या हो गया था?

 

शंभु- (चिड़चिड़ाकर) अरे मुझे क्या पता क्या हो गया था!

बलि- अरे ड्राइवर हो गया था।

 

शंभु- लेकिन तुम तो उन्हें डॉक्टर कहते हो फिर तो डॉ0 कैसे हुए?

बलि- बाद में वो डॉक्टर हो गए थे, वो अलग क़िस्सा है, वो बाद में बताऊँगा।

शंभु- अभी क्या कर रहे हो?

बलि- कुछ नहीं।

 

शंभु- अरे अजीब आदमी हो! तो अभी सुनाओ ना क़िस्सा...

बलि- अरे अजीब तो आप हैं! कभी कहते हो क़िस्सा सुनाओ, कभी कहते हो चुप रहो।

शंभु- बात को घुमाओ मत।

 

बलि- मुझे नींद रही है। एक तो रातभर सोने नहीं दिया... अच्छा ठीक है एक शर्त पर क़िस्सा सुनाऊँगा। पहले आपको मेरे कुछ प्रश्नों का एकदम सही उत्तर देना होगा।

 

शंभु- अच्छा चुप रहो, मुझे नहीं सुनना कोई क़िस्सा।

बलि- ठीक, मत सुनो, मैं सोता हूँ। (silence)

शंभु- ठीक है पूछिए, लेकिन मेरी जो इच्छा होगी, मैं सिर्फ़ उन सवालों का जवाब दूँगा।

 

बलि- जैसी आपकी मर्ज़ी। शुरू करूँ... आप जेल से कब छूटे? आपने जो दो ख़ून किए थे वो कैसे किए थे? और अगर अब पछतावा हो रहा है तो यहाँ क्यों आए? किसी पहाड़ पर जाकर संन्यास क्यों नहीं ले लिया? आपने इतना डरावना नाम ख़ून करने के बाद रखा या ये नाम पहले से ही था? आप मरने से डरते हैं? आपके दाँत असली हैं या नकली? और हाँ अगर आपको एक दिन के लिए प्रधानमंत्री बना दिया जाए तो आप क्या करेंगे?

 

शंभु- बेवकूफ़!

बलि- वो आख़िरी सवाल। मैंने ऐसे ही पूछ लिया, उसका जवाब अगर आप नहीं भी दो तो चलेगा।

शंभु- एक तो तुम...

 

बलि- रुको! मुझे आराम से लेट जाने दो, और हाँ आपने वो हथियार कहाँ छुपाकर रखा है, जिससे तुम ख़ून करते हो। हाँ शुरू हो जाओ।

 

शंभु- तुम चुप रहोगे? पहली बात तो मैंने कोई ख़ून नहीं किए, वो बात मैं तुम्हें डराने के लिए कह रहा था। पर अब पछता रहा हूँ, काश किए होते तो तुम्हें मारने में ज़रा भी दिक़्क़त नहीं होती।

 

बलि- अरे भई आप इतनी जल्दी गुस्सा क्यों हो जाते हो! मैं ये सब थोड़ी जानना चाहता था, मैं तो चाहता हूँ कि आप बोलें, जो इच्छा हो वो बोलें। अपने बारे में, किसी के बारे में भी, साँस भीतर ले रोकें, छोड़ें... फिर भीतर लें रोकें, छोड़ें।

 

शंभु- मैं तुम्हारी बात क्यों मान रहा हूँ?

बलि- दो-तीन बार करिए, अच्छा लगेगा। और हाँ मैं इंतज़ार कर रहा हूँ। जब इच्छा हो शुरू हो जाइएगा। मैं सुन रहा हूँ।

 

शंभु- कुछ नहीं बोलना है। (वापिस आकर अपने बेड पर बैठ जाता है। दो-तीन बार साँस लेता है) मुझे अच्छा लग रहा है, बेकार में ग़ुस्सा करता हूँ।

 

(बलि को देखता है) बुढ़ापा, बहुदा बचपने का पुनरागमन होता है, यह बात मुझ पर लागू होती है।

 

अजीब हूँ मैं, मेरी पलकों के बाल कई बार मेरी हथेली तक आए, पर मैंने अभी आँख बंद करके उड़ाया नहीं। कई बार मैंने टूटते तारों को भी देखा, पर मेरी आँखें तब भी खुली रहीं। आँख बंद करके मैंने कभी कुछ माँगा ही नहीं।

 

उस सुख की भी तलाश नहीं की जिस सुख को जीते हुए मेरी आँख झुक जाए, पर एक टीस ज़रूर है। वो भी उन सुखों की जो मेरे आसपास ही पड़े थे, कई बार मेरे रास्ते में भी आए पर पता नहीं क्यों मैं उन्हें जी नहीं पाया।

 

अपने ऐसे बहुत से सुखों को जिन्हें मैं जी नहीं पाया, मैंने अपने इस पुराने सूटकेस में बंद कर दिया है। कभी-कभी इसे खोलकर देख लेता हूँ। इसमें, इसमें बड़ा सुख है और इस सुख को मैंने कभी अपने इस पुराने सूटकेस से गिरने नहीं देता हूँ, इसे हमेशा अपने पास रखता हूँ।

 

जिन सुखों को जी नहीं पाया उन सुखों को महसूस करना कि कभी इन्हें जी सकता था। ये अजीब सुख है और जिन सुखों को जी चुका हूँ उनका अपना अलग बोझ है। जिसे ढोते-ढोते जब भी थक जाता हूँ, तब अपना पुराना सूटकेस खोल लेता हूँ और थोड़ा हल्का महसूस करता हूँ। तितली...

 

तितली- खड़े क्या हो, पकड़ो धीरे।

शंभु- तितली सुनो! धीरे...

तितली- पापा! पापा!

 

शंभु- बस जाओ बेटा। मेरी हिम्मत नहीं है, बहुत थक गया बस।

तितली- आपके साथ खेलने में मज़ा नहीं आता। बाहर जाऊँ?

शंभु- बेटा, रात हो गई है, इतनी रात को बाहर नहीं निकलते।

तितली- रात कहाँ दिन है पापा। पापा, आप सच में बूढ़े हो गए हैं। बाहर जाऊँ?

 

शंभु- दोपहर है तो बाहर जाने की क्या ज़रूरत है, यहीं ठीक है ना।

 

तितली- (Hops catch) पापा फाउल। पापा आप सच में बूढ़े हो गए है बाहर जाऊँ?

 

शंभु- नहीं बेटा, बाहर धूप है। दोपहर में बाहर जाओगी तो काली हो जाओगी।

 

तितली- हाँ, काली हो जाऊँगी तो बंदरिया जैसी दिखने लगूँगी, फिर जंगल में किसी बंदर को पकड़कर लाना पड़ेगा, मुझसे शादी करने के लिए। यही ना तो ठीक है? तो ठीक है, मैं बंदर से शादी करने को तैयार हूँ। अब बताइए। आप बंदर को ढूँढने मेरे साथ चलेंगे या मैं अकेले जाऊँ? बोलिए बाहर जाऊँ?

 

शंभु- काले मुँह के बंदर तो दूर जंगलों में होते हैं, आसानी से नहीं मिलते।

तितली- और लाल मुँह के बंदर, वो...

 

शंभु- लाल मुँह के बंदर तो सात समुंदर पार के जंगलों में होते हैं (Blind man’s buff) उन्हें ढूँढना बहुत मुश्किल है। वैसे लाल मुँह के बंदर अपने आपको अंग्रेज़ समझते हैं, वो आसानी से तुमसे शादी करने को तैयार नहीं होंगे।

 

और अगर राज़ी हो भी गए तो वो दहेज़ में केले के बाग माँगेगे। बताओ बेटी, इस उम्र में मैं ज़मीन खरीदूँगा, केले के बाग लगाऊँगा, केले उगाऊँगा, तब तक तो तुम बूढ़ी हो गई होगी। और फिर एक काली-कलूटी बुढ़िया से बंदर तो क्या चूहे भी शादी करने को तैयार नहीं होंगे। (remove blind fole) बेटा तितली, बेटा क्या हुआ? अच्छा माफ़ कर दो। चूहे राज़ी हो जाएँगे, मैं मना लूँगा उनको। अच्छा?

तितली- नहीं पापा, कुछ लाल मुँह के बंदर, अपने गाँव में घुस आए हैं।

शंभु- अपने गाँव में?

तितली- हाँ पापा। एक बंदर का तो मैं नाम भी जानती हूँ।

शंभु- बेटा, बहुत हो गया मज़ाक!

तितली- मैं बताऊँ उसका नाम?

 

शंभु- मुझे नहीं सुनना नाम।

तितली- उसका नाम है...

शंभु- अच्छा तुम जाओ अभी।

तितली- बाहर जाऊँ? खेलने?

शंभु- हाँ चली जाओ।

तितली- मैं जा रही हूँ। (वापस आती है) वैसे उस बंदर का नाम शुभांकर है।


 सीन-5

(बलि गाना गाता है, वो अंदर शंभु को देखता रहता है, पलंग खिसकाता है। उसी वक़्त शंभु अंदर आता है।)

शंभु- एक काम करो। ऊपर ही चढ़ा दो इसको। अपना पलंग मेरे पलंग के ऊपर.. है ना।

 

बलि- शंभु जी आपको हमारी दोस्ती की कसम।

शंभु- दोस्त-वोस्त नहीं हैं हम लोग, समझे! वापस रखो।

बलि- चलिए आपकी मेरी... इतना। और बताइए कैसे हैं आप?

शंभु- उठो वापस, वहीं रखो।

 

बलि- अच्छा ठीक है बस इतना... इससे पीछे नहीं।

शंभु- मैंने कहा ना पीछॆ।

 

बलि- (बलि पलंग पकड़कर लेट जाता है) मैं मर जाऊँगा पर इसके पीछे नहीं जाऊँगा। मुझे घबराहट होती है और समाज में सबको समान अधिकार है ये भेदभाव नहीं चलेगा। कसम खाता हूँ, इसके आगे नहीं आऊँगा।

शंभु- तुमने बताया नहीं।

 

बलि- बताया ना पीछे घबराहट होती है।

शंभु- अरे नहीं, वो, तिवारी जी ड्राइवर से डॉक्टर कैसे बने?

बलि- आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया तो मैंने भी नहीं बताया।

शंभु- मैंने जवाब दिया था, आप सो गए थे।

बलि- अब रात भर सोने नहीं देगे तो क्या करूँगा?

शंभु- अभी नींद तो नहीं रही ना?

बलि- नहीं.

 

शंभु- तो... (इशारे से पूछता है।)

बलि- क्या?

शंभु- अरे वो ही!

बलि- वो ही क्या?

शंभु- अरे वो ही!

बलि- क्या वो ही भई?

 

शंभु- वो तिवारी जी ड्राइवर से डॉक्टर कैसे बने?

बलि- नहीं अभी नहीं। अभी मुझे ज़रा तैयार होना है। (बलि अंदर जाता है)

शंभु- तो तुमने जाने का फ़ैसला कर लिया है।

बलि- (अंदर से ही) नहीं, झीलमिल जी आने वाली है.. और वो मुझसे मिलने रही हैं।

 

शंभुवो रोज़ शाम को आती हैं।

बलि- लेकिन आज वो सिर्फ मुझसे मिलने रही हैं।

शंभुअरे पगलाओ मत.. एक बुढ़ा और था वो भी यहीं सोचता था.... फिर इंतज़ार करते करते टें बोल गया। (बली गुस्से में बाहर आता है सिर्फ कुर्ता पहनकर...)

 

बलि- अच्छा आप चुप रहिए... एकदम चुप.. मान लेने में क्या जाता है। यही कुछ सुख बचे हैं हम लोगों के पास... अगर ये भी नहीं रहे ना.. तो हम जैसे लोगों को आत्महत्या कर लेनी चाहिए।

 

शंभुवैसे वो तुम्हारी बच्ची की उम्र की है...

बलि- कैसा लग रहा हूँ मैं। (बलि एक पोज़ बनाकर खड़ा होता है.. उसके हाथ में एक गुलाब का फूल है।)

शंभु- ऎसे मिलोगे?

 

बलि- पैजामें का नाड़ा टूट गया है। जैसे ही आएगी मैं अंदर भाग जाऊंगा। कैसा लग रहा हूँ?

शंभु- छिछोरा.. अरे तुम्हारी बच्ची की उम्र की है वो।

 

बलि- बच्ची तो नहीं है ना.. आपको पता नहीं है जब मैं दिन में सो रहा था ना तो वो आपकी बच्ची जी मेरे सपने में आई थीं। पता है कैसी कैसी बातें कर रही थीं... मुझे तो बताने में भी शर्म आती है... और आप तो जानते हैं कि दोपहर का सपना सच्चा होता है।

 

शंभु- दोपहर का नहीं सुबह का.. सुबह का सपना सच्चा होता है।

बलि- अपने लिए तो जब जागो तभी सवेरा है.. यार आई नहीं अभी तक।

शंभु- (दरवाज़े की तरफ देखते हुए..) अरे झीलमिल बेटा कब आई।

 

(बलि डर के मारे अंदर भागता है... तभी शंभु को हंसी जाती है।) क्यों सिर्फ तुम ही मज़ाक कर सकते हो?

 

बलि- मैं पैजामा पहनकर आता हूँ तब बताता हूँ बुढ़ऊ तेरेको... अभी मर जाता तो (अंदर जाता है।)

 

शंभुअरे मर तो तू पैजामें में भी सकता है। पर एक बात सही कहीं... (अपने सेहमारे पास थोड़े बहुत सुख हैम... वरना हम जैसे लोगों की तो दुनियाँ में ज़रुरत क्या है? ( भीतर से बलि की आवाज़ आती है... ..) क्या हुआ?

 

बलि- पैजामा गंदा हो गया। (पैजामें पर पानी गिर जाता है। एक कपड़े से बलि उसे अपने पलंग पर बैठकर साफ करने लगता है।)

शंभु- अरे अरे... अरे...

बलि- खुश मत हो ... साफ हो रहा है।

 

शंभु- अरे... आप... (मानों कोई आया हो... बलि फिर डर जाता है..) अरे कोई नहीं है.. ऎसे ही कोई गुज़र रहा था... साफ करो तुम... (वक़्फा) वैसे टाईम तो ज़्यादा हो गया है,... मुझे लगता नहीं कि वो आएगीं।

बलि- कीड़े पड़े तुम्हारे मुँह में।

 

शंभु- भाई मैं तो लेट रहा हूँ... अगर वो नहीं आए तो light off करके सो जाना।

बलि- शंभु जी आप पहली नज़र के प्यार पर यक़ीन करते हैं?

शंभु- क्या?

 

बलि- मैं भी नहीं करता था, पर अब लगता है पहली नज़र का प्यार होता है। भई अब कोई मुझे पहली ही नज़र में पसंद कर ले, बस बात ख़त्म।

शंभु- पगलाओ मत सच में जाएगी।

 

बलि- अभी तक तो नहीं आई ना! बस ऐसे ही प्यार में दरार पड़नी शुरू हो जाती है।

शंभु- कल तुम उससे मिले, आज प्यार हुआ और अभी-अभी दरार भी पड़ गई।

 

बलि- अब सोचता हूँ, जो आसान काम है वही कर दूँ।

शंभु- क्या?

बलि- ना... ना कर दूँ उसको।

शंभु- हाँ करने का तो कोई मतलब नहीं है, बेहतर होगा ना कर दो। चलो थोड़ा प्रैक्टिस कर लो। देखो ऐसे झिलमिल जी आएँगी। (बलि हँसने लगता है) अरे मैं नहीं... मानो वो रही है... तो वो आई.. बलि जी.. कैसे हैं आप..?

 

बलि- ना!

शंभु- अरे ये तो एकदम फुस्स था। फिर आई...

बलि- ना!

शंभु- अरे ये तो एकदम राक्षसों जैसा हो गया। ठीक से प्रैक्टिस करो।

(गौतम की Entry)

 

बलि- ना!

गौतम- ना! (डर कर वापस चला जाता है)

बलि- अरे बुरा ना लग जाए। मैंने सुना है प्यार में लोगों ने आत्महत्या तक की है। तुम्हें क्या लगता है कहीं वो आत्महत्या तो नहीं कर लेगी।

शंभु- अगर वो तुमसे प्यार करती है, जैसा कि तुम्हें लगता है तो कुछ तो करेगी।

 

बलि- देखो अभी तक नहीं आई।

शंभु- कहीं सच में तो आत्महत्या नहीं कर ली उसने?

बलि- नहीं! प्यार में जो मरता है वो कायर होता है, पर जो प्यार करे और ज़िंदा भी रहे वो ही सच्चा प्रेमी होता है। कैसी कही?

शंभु- अच्छी कही, पर कैसे कही? मतलब निकली कहाँ से?

 

बलि- अरे वही, मेरे दोस्त डॉ0 हरिशंकर तिवारी के मुँह से सुना था। उन्हें एक बार प्यार हो गया था। वही मोहल्ले में एक गुलाब बाई नाम की औरत रहती थी, उसकी एक बच्ची भी थी और पति मर चुका था। उसे पैसों की ज़रूरत थी तो तिवारी जी ने उसे अपने घर बर्तन माँजने और कपड़े धोने का काम दे दिया था।

 

गुलाब बाई को कपड़े धोता देखते-देखते तिवारी जी को गुलाब बाई से प्यार हो गया। और गुलाब बाई, वो ग़ज़ब औरत थी उसे कोई गुलाब बाई कहे तो उसे अच्छा नहीं लगता था। वो अपने आपको आंटी कहलवाना ज़्यादा पसंद करती थी। तिवारी जी थोड़ी बहुत अंग्रेज़ी जानते थे, वो गुलाब बाई को Rose madam कहने लगे।

शंभु- रोज़! अच्छा गुलाब, Rose.

 

बलि- कुछ समय बाद तिवारी जी से नहीं रहा गया और समाज की परवाह किए बगैर बाई को उसकी बच्ची समेत अपने घर पर रख लिया। गुलाब बाई तो तिवारी जी से प्यार नहीं करती थी, इसलिए वो तिवारी जी को अपने पास तक फटकने नहीं देती थी।

 

बहुत बाद में तिवारी जी को इतनी इजाज़त मिल गई कि वो जब चाहे गुलाब बाई से अपने पैर दबवा लेते थे। और गुलाब बाई कभी-कभी नहाते वक़्त उनसे अपनी पीठ पर साबुन लगवा लेती थी।

 

इसीलिए तिवारी जी कहते थे जो प्यार करे और ज़िंदा भी रहे वो ही सच्चा प्रेमी होता है।

 

शंभु- और बच्ची?

बलि- कौन बच्ची.?

शंभु- अरे गुलाब की बच्ची, उसका क्या हुआ?

बलि- पता नहीं, वो स्कूल जाती थी।

शंभु- उसका नाम क्या था?

 

बलि- नाम तो तिवारी जी ने बताया नहीं। सब बच्ची-बच्ची कहकर बुलाते थे। अरे तुम्हारे चक्कर में मैं तो भूल ही गया था। अरे मुझे तैयार होना था।

शंभु- अरे मैं सोच रहा था उस बच्ची का क्या हुआ होगा! कैसे उसका बचपन बीता होगा! कैसे बड़ी हुई होगी!

 

(बलि के कुल्ला करने की आवाज़ आती है)

शंभु- आज तो इसको ठीक ही कर देता हूँ। (शंभु, बलि का पलंग वापिस कोने में कर देता है और चुप चाप आकर अपने पलंग पर सो जाता है जैसे कुछ हुआ ही ना हो... बलि उंगली से दांत माजता हुआ आता है और पलंग को कोने में देखकर ... गुस्सा हो जाता है... शंभु के बहुत पास आकर उससे पूछता है।)

 

बलि- ये क्या है?

शंभु- छी! क्या है?

बलि- ये नास का मंजन है। पलंग क्यों सरकाया?

शंभु- वैसे भी तुम्हारी जगह वो ही थी।

बलि- सुनो यहाँ तानाशाही नहीं चलेगी।

 

शंभु- तुम पहले थूक के आओ, मैं ऐसे बात नहीं कर सकता।

बलि- देखो मैंने कसम खाई थी, इसके आगे नहीं आऊँगा।

शंभु- पहले थूक के आइए। (शंभु को उठाने के चक्कर में बलि अपने गंदे हाथ शंभु को लगा देता है.. शंभु चिढ़ जाता है और उसे धक्का दे देता है... बलि नीचे गिर पड़ता है।)

 

बलि- बुढ़ापे में सठिया गया है। एक कनटे का हाथ मारूँगा तो यहीं मर जाएगा।

शंभु- क्या? क्या बोल रहा है?

 

बलि- मज़ाक नहीं कर रहा हूँ। मुझे सच में घर के कोनों से घबराहट होती है। मुझे जानवरों जैसा लगता है। यहाँ बीच में, मैं बीच में रहना चाहता हूँ। अब कोई हिलाकर बता दे। अरे बूढ़ा गया तो क्या कोने में फेंक दोगे?

शंभु- उठो! उठो यहाँ से... अपनी जग पर जाओ (उठाने की कोशिश करता है पर बलि टस से मस नहीं होता।)

 

बलि- मैं नहीं जाऊँगा।

शंभु- गौतम! गौतम.. (गौतम अंदर आता है।) इससे कहो यहाँ से उठ जाए।

गौतम- चलिए, उठिए।

बलि- हट..! (गौतम डर जाता है।)

शंभु- ये ऐसे नहीं मानेगा गौतम।

(दोनों बलि को उठाकर उसके पलंग तक ले जाते हैं, बलि वापस ज़मीन पर बैठ जाता है।)

 

गौतम- आइए, आइए।

(दोनों फिर से बलि को उठाकर उसके पलंग तक ले जाते हैं। वो वापस नीचे बैठ जाता है।)

गौतम- आइए, आइए।

 

शंभु- अरे क्या आइए आइए! पड़े रहने दो इसे यहींमैं समझ गया। मैं समझ गया तुम यहाँ क्यूँ आए हो? क्यों तुम्हें कोनों से नफ़रत है? तुम एक ऐसे बूढे थे, जो अपने ही घर पर बोझ थे। तुम्हारे घरवाले तुम्हें घर के कोनों में ठूँसकर रखते थे जानवरों की तरह। किसी भी जानवर की तरह नहीं, बल्कि कुत्ते की तरह। अगर घर में कुत्ते की तरह रहते थे तो यहाँ शेर बनने की कोशिश मत करो। मत बनो शेर... कुत्ते हो.. कुत्ते ही रहो।

 

(बलि चुपचाप उठता है और अपने पलंग पर जाता है। शंभु को बुरा लगता है कि उसने शायद कुछ ज़्यादा बोल दिया।)

 

शंभु- गौतम, पानी दो उसे। (गौतम एक गिलास पानी बलि को देता है.. बलि नहीं लेता। बलि उठकर सीधा शंभु के सामने खड़ा हो जाता है।)

बलि- तुम यहाँ क्यों आए हो? मैं जानता हूँ, तुम्हारी तो एक बेटी है ना?

शंभु- बलि चुप!

 

बलि- क्या हुआ? वो बदचलन थी? उसके बहुत से यार थे?

शंभु- बलि!

बलि- या फिर वो तुम्हें अपना बाप भी नहीं मानती थी?

शंभु- बलि! (चिल्लाता है।)

(Black Out)

 

(शंभु पर स्पाट।)

शंभु- मेरी बेटी तितली! बच्चे कब बड़े हो जाते हैं, आपको पता ही नहीं लगता और जैसे-जैसे वो बड़े हो जाते हैं, उनके साथ अपेक्षाएँ भी बड़ी हो जाती हैं। बाद में बच्चे चले जाते हैं और अपेक्षाएँ रह जाती हैं, जिन्हें हम कभी दीवार पर टाँग देते हैं तो कभी मेज पर रख देते हैं

(Black Out) (Fade in)

 

(बलि पर स्पाट)

बलि- मैं कभी-कभी सोचता हूँ, मुझमें और गाय में कितना फ़र्क़ है। खासकर उस गाय में जिसने दूध देना बंद कर दिया है। बुढ़ापा गाय हो जाने जैसा है। गाय जो कुछ भी खा लेती है, बिना किसी को परेशान किए ज़िंदा रहती है। आपको गायों से और बूढ़ों से बहुत परेशानी नहीं होती। बेचारी गाय और बेचारा बूढ़ा। घर में इंसानों के बीच जानवर जैसा महसूस होता था तो मैंने तय कि जब गाय जैसा ही जीना है, तो गायों के बीच में ही रहो। तो मैं यहाँ गया।

 

(झिलमिल पर स्पाट)

झिलमिल- मुझे बूढ़े और बच्चे अच्छे लगते हैं। यहाँ इतने सालों काम करने के बाद मुझे एक बात पता चली है। जैसे बच्चों को माँ-बाप की ज़रूरत होती है, वैसे ही बूढ़ों को भी माँ-बाप की ज़रूरत होती है। बूढ़ों के माँ-बाप, जिनसे वो बात कर सकें, जिन्हे सुन सकें या जिन्हें वो कभी-कभार छू सकें।


 (गौतम पर स्पाट)

गौतम- मैने कभी यहाँ भूत नहीं देखा है, पर इन बूढ़ों को भूत दिखते हैं क्योंकि मैं जब भी किसी बूढ़े के कमरे में जाता हूँ, वो हमेशा किसी ना किसी से बात कर रहे होते हैं, जबकि कमरे में कोई नहीं होता है। सच में, कसम से इन्हें भूत दिखते हैं।


सीन- 6

(Music)

(क्लासिकल म्युज़िक चल रहा है... शंभु कुछ हिसाब कर रहा है... हिसाब पक्का करके वो बलि को आवाज़ लगाता है... संगीत धीमा करता है और फिर आवाज़ लगाता है।)

 

शंभु- बलि जी! बलि जी!

बलि- क्या है? आपके कपड़े धो रहा हूँ।

शंभु- झाड़ू कौन लगाएगा?

 

बलि- आपका नौकर हूँ, कपड़े धोने के बाद लगाऊँगा।

शंभु- पहले झाड़ू लगाओ, मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ।

बलि- आप मुझसे बात करना चाहते हैं इसलिए मैं पहले झाड़ू लगाऊँ? जाओ नहीं लगाता।

 

शंभु- ठीक है मत लगाओ। आज शाम को झिलमिल जी आएँगी तो मैं उन्हें बता दूँगा कि बुड्ढा फ्रॉड है।

बलि- अच्छा ठीक है लगाता हूँ।

 

शंभु- मैंने हिसाब लगाया है। हमें छह महीने हो गए साथ रहते हुए। इस बीच हम 12 बार लड़े। इसमें से 8 बार ग़लती तुम्हारी थी, दो बार गौतम की और एक बार हम यूँ ही मज़ाक में लड़ लिए थे और अंतिम बार तो सिर्फ़ तुम्हारी ग़लती थी।

 

बलि- अरे बुड़ऊ! तू तो दूध का धुला है !

शंभु- कुछ कहा तुमने?

 

शंभु- इतने बूढ़े होके शर्म आनी चाहिए कि आप एक सीधे-सीधे आदमी को ब्लैकमेल कर रहे हैं। मैंने आपको अपना समझकर एक राज बताया और आप... सबको बता दूँगा कि धमकी देकर अपने सारे काम मुझसे करवा रहे हो। छी! शर्म आनी चाहिए आपको।

 

(बलि झाड़ू लगाता है, शंभु काग़ज़ नीचे फेंकने को होता है, बलि रोक देता है।)

शंभु- अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे। अब बताओ कि तिवारी जी ड्राइवर से डॉक्टर कैसे बने?

 

बलि- अभी मैं काम कर रहा हूँ। काम करते वक़्त मैं ज़्यादा बात नहीं करता।

शंभु- ठीक है तो काम करो। (शंभु कचरा ज़मीन पर फेंक देता है।)

 

लेकिन मुझे यक़ीन नहीं होता कि कोई आदमी ऐसा कैसे कर सकता है।

बलि- क्यों नहीं कर सकता?

शंभु- पर तुमने क्यों किया?

 

बलि- क्योंकि जब आप अपने ही घर अपने परिवार अपने के लोगों के बीच आराम से रह रहे हो और अचानक एक दिन आपको पता लगे कि असल में आपको कोई पसंद ही नहीं करता है, आपसे कोई बात ही नहीं करना चाहता है... मैं आपको क्यों बता रहा हूँ, आप क्या समझोगे ये बात? जब मैं शाम को घूमने के बाद घर में वापस आता था तो मुझे घर में ताला लगा मिलता, ठीक है।

 

मैं घंटों घर के बाहर इंतज़ार करता तो एक दिन मैंने मेरे बेटे से कहा- बेटा मैं घंटों बाहर बैठा रहता हूँ, अच्छा नहीं लगता, मुझे एक डुप्लीकेट चाबी बनवा दो। तो वो कहने लगा नहीं, उसमें चोरी का ख़तरा बढ़ जाता है। तो मैंने चुपके से डुप्लीकेट चाबी बनवा ली तो उन्होंने घर में दो ताले लगवा लिए।

 

मैंन दोनों की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली। तो उन्होंने मुझे पैसे देना ही बंद कर दिया। ये घटनाएँ खाने से लेकर मैं अपने कमरे में पंखा देर तक चालू रखता हूँ तक पहुँच गईं। बताइए, जब आपको पता हो कि आपको आपने ही घर में कोई देखना नहीं चाहता, सुनना नहीं चाहता, तब आप अपने ही घर में डरावना भूत बन जाते हैं। और उस भूत की दिक़्क़त है कि वो दिखता है, दिन में भी और रात में भी, तब बताइए शंभु जी, तब आप क्या करेंगें?

 

शंभु- लेकिन तुमने ये क्यों किया?

बलि- क्योंकि और कोई मुझे जानता ही नहीं जो मुझे अपने घर में रख ले, तो सोचा चलो किसी अच्छे old age home में अपना बाक़ी जीवन बिता दूँगा। पता है शंभु जी, क़रीब पाँच old age home वालों ने मुझे रिजेक्ट कर दिया। कहने लगे मैं उनके हिसाब से पूरा बूढ़ा नहीं हूँ।

 

पूरा बूढ़ा... ये होता है पूरा बूढ़ा (शंभु की तरफ इशारा करके) इसलिए मैंने अपनी age बढ़वाई। आयु प्रमाण पत्र बनवाने में मुझे कितनी दिक़्क़त आई, पता है आपको? और आप हैं कि सही age बता दूँगा की धमकी देकर अपने सारे काम मुझसे करवा रहे हैं।

 

शंभु- पर कोई आदमी बूढ़ा होना चाहता है, ये बात आजीब नहीं है?

बलि- उड़ा लो मज़ाक! लगा दी झाड़ू, जा रहा हूँ।

शंभु- पोछा कौन लगाएगा?

 

बलि- कितना मज़ा रहा है आपको? लगाता हूँ।

शंभु- तुम एक बात बताओ। तुम कहानियों पर यक़ीन करते हो? परी की कहानियों पर?

 

बलि- यक़ीन ही तो मैं सभी पर करता हूँ। उसी का अंजाम भुगत रहा हूँ।

शंभु- अच्छा ठीक है पोछा मत लगाओ।

बलि- मैं तो लगाऊँगा... अब लगाऊँगा..

शंभु- अच्छा ठीक है लगाओ।

 

बलि- नहीं नहीं... क्या आप कह रहे थे नहीं लगाओ?

शंभु- मैं तो कह रहा था मत लगाओ। लेकिन अगर तुम लगाना चाहते हो तो कोई बात नहीं। लगाओ..

बलि- अच्छा ठीक है।

 

शंभु- इधर बैठो! (बलि, शंभु के कंधे पर सर रखने लगता है) ठीक है, अब ये चिपको-विपको मत। बताओ तुम परिकथा पर यक़ीन करते हो?

 

बलि- मैं तो सिर्फ़ कथा पर यक़ीन करता हूँ। कथा--हरिशंकर तिवारी! उसके अलावा मैंने कोई कथा सुनी ही नहीं।

 

शंभु- मैं भी कभी परिकथा पर यक़ीन नहीं करता था पर एक परी की कहानी थी, जिसे मेरी बेटी सुना करती थी। जब उसे नींद नहीं आती थी तो वो उस परी की कहानी को सुनते हुए सोती थी। पहले उसकी माँ उसे सुनाती थी, फिर उसके चले जाने के बाद मैं उसे सुनाने लगा और बाद में जब मुझे नींद नहीं आती थी तो तितली उसे पढ़कर मुझे सुनाती थी।

 

और मैं सो जाता था। परिकथा, मैं पहले सोचता था कि हमें परिकथा की ज़रूरत क्यों पड़ती है? क्या जो जीवन हम जी रहे हैं वो इतना कठिन ओर असहनीय है कि हमें ऐसी कहानी की ज़रूरत पड़े जो सिर्फ़ कोरी कल्पना है? असल में ऐसा कुछ नहीं होता। जानवर कभी इंसान से बाते नहीं करते। आम जीवन में कोई चमत्कार नहीं होता।

 

कोई परी अचानक एक दिन आकर सब कुछ ठीक नहीं कर देती, पर फिर भी हमने परिकथाओं को उनके पूरे झूठ के साथ स्वीकार कर लिया है क्योंकि बलि जी, इसमें जिया जा सकने वाला सुख होता है, जिसे उस कहानी के साथ उस वक़्त हम जी लेते हैं, और ये आदत है। बुरी आदत जो मुझे लगी हुई है।

 

और अजीब बात ये है कि मुझे पूरी परिकथा याद है पर मैं उसे ख़ुद को सुनाकर सो नहीं सकता। इसके लिए हमेशा कोई अपना चाहिए होता है। जिसे आप छू सकें, जो आपके सर पर हाथ रख सके। पर अब ऐसा कोई नहीं है। हाँ, पर एक परी है- तितली, जिससे मैं थोड़ी बातें कर लेता हूँ। और सो जाता हूँ।

 

बलि- आपकी बेटी तितली अब कहाँ है?

शंभु- मैंने कहा ना वो परी बन चुकी है।

बलि- परी मतलब? (बलि, शंभु के पलंग पर लेट कर फल खा रहा होता है।)

 

शंभु- परी मतलब, पहले इसका मतलब बताओ?

बलि- अरे वो आप कहानी सुना रहे थे!

शंभु- ओर तुम पसर गए, चलो पोछा लगाओ।

बलि- अरे अभी आप कर रहे थे, पोछा मत लगाओ।

शंभु- अब कह रहा हूँ लगाओ।

 

बलि- बुढ़ऊ, एक दिन ना तेरी चंपी कर दूँगा। ( शंभु बिस्तर पर सो जाता है। गौतम भीतर से निकलता है उसके हाथ गीले है.. धीरे से बलि से कहता है।) गौतम- बलि जी, कपड़े धुल गए। अब जाऊँ?

 

बलि- आहाँ... अरे गौतम आजा आजा, कहाँ से घूम के रहा है, चल मैं थक गया हूँ। ये ले पोछा लगा दे।

गौतम- पर अभी तो मैंने कपड़े धोए। और...

बलि- शंभु जी बहुत नाराज़ हैं.. उन्हें उठाऊँ...

 

गौतम- नहीं, लगाता हूँ।

बलि- शंभु जी!

गौतम- अरे लगा तो रहा हूँ।

 

बलि- (शंभु के बगल में आकर बैठता है।) शंभु जी थक गया। कपड़े धोकर, पोछा लगाकर। वैसे शंभु जी, मैं और झिलमिल जी कल पकौड़े खाने गए थे। बड़ा मज़ा आया। कह रही थीं आज वो मुझे कुछ अच्छी ख़बर सुनाने वाली हैं... मुझे। आज हम फिर पकौड़े खाने जा रहे हैं। वैसे तो मुझे पता था, पर इतनी जल्दी सब कुछ हो जाएगा ये पता नहीं था।

 

शंभु- क्या-क्या कहा?

बलि- लीजिए मैं अपने जीवन की इतनी महत्त्वपूर्ण घटना सुना रहा हूँ और आप हैं कि क्या-क्या कर रहे हैं।

शंभु- नहीं, मैं सोच रहा था।

बलि- क्या?

 

शंभु- मैं सोच रहा था, वो गुलाब बाई...

बलि- छी छी गुलाब बाई!

शंभु- अरे! मैं गुलाब बाई की बच्ची के बारे में सोच रहा था।

बलि- पता नहीं, मैं भी कहाँ उलझ गया। मुझे तैयार होना है।

 

शंभु- तुम भी एकदम अजीब आदमी हो। तुम्हें क्या कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है? गुलाब बाई, उसकी बेटी, तिवारी जी... तुम्हें इनमें से किसी की भी याद नहीं आती? अपने परिवार वालों की बात तो छोड़ ही दो। उनका तो तुम कभी ज़िक्र भी नहीं करते। पर तुम्हारे हरिशंकर तिवारी...

बलि- डॉ. हरिशंकर तिवारी।

 

शंभु- हाँ डॉ. हरिशंकर तिवारी। तुम्हें कभी उनसे मिलने की इच्छा नहीं होती?

बलि- अरे मिलूँगा कैसे? वो मर गए ना!

शंभु- मर गए! कैसे?

 

बलि- पता नहीं! मैंने तो गाँव छोड़ दिया था ना, उसी समय उनकी मृत्यु हो गई थी। जब बहुत समय बाद मैं वापस गया तो कोई बता रहा था कि तिवारी एक दिन सुबह-सुबह रोड क्रॉस कर रहे थे। तभी एक बिल्ली ने उनका रास्ता काट दिया।

 

गौतम- बिल्ली... वो तो अशुभ होता है.. फिर..

बलि- हाँ... तिवारी जी तो बीच सड़क पर रुक गए और इंतज़ार करने लगे कि जब तक कोई दूसरा सड़क क्रॉस कर ले तब तक वो रोड क्रॉस नहीं करेंगे। वो वहीं खड़े रहे।

 

गौतम- फिर।

बलि- फिर क्या वो इंतज़ार करते रहे।

गौतम- मतलब कोई आया नहीं?

बलि- गाँव में सुबह लोग कम ही निकलते हैं ना।

गौतम- फिर?

बलि- फिर एक ट्रक निकला।

गौतम- तो वो कुचल कर मर गए.. देखा बिल्ली..

बलि- नहीं...  ट्रक एकदम बगल से निकला और तिवारी जी की साँस रुक गई।

 

गौतम- अरे बाबा रे...

शंभु- हाँ... हाँ...

गौतम- हाँ डर लगे तो गाना गाओ, भूख लगे तो खाना खाओ।

बलि- अरे भई तुझे क्या हुआ?

 

गौतम- मरे हुए लोगों की ज़्यादा बात नहीं करते, वरना वो जाते हैं। जैसे चुड़ैल का तीन बार नाम लो तो जाती है ना!

बलि- किसका?

गौतम- चुड़ैल का।

 

शंभु- किसकी बात कर रहा है?

गौतम- अरे वो होती है ना चुड़ैल...

बलि- शंभु-शंभु-शंभु... ले लिया तीन बार नाम ले लिया।

 

बलि- अब चुड़ैल आएगी... हूहू मैं चुड़ैल हूँ।

गौतम- अरे बाप रे! डर लगे तो गाना गाओ, भूख लगे तो खाना खाओ। अब तो पूजा करनी होगी, नींबू काटना पड़ेगा। (गौतम चला जाता है)

 

शंभु- अरे ये चुड़ैल का नींबू-पानी मुझे ना पिला दे, सच में मुझे आश्चर्य होता है कि सच में क्या तुम्हें किसी की याद नहीं आती!

 

बलि- हाँ याद आया... मुझे कभी-कभी अपनी चवन्नी की याद आती है।

शंभु- देखो मेरे सामने लड़कियों की बातें मत करो।

 

बलि- नहीं मैं वो अठन्नी-चवन्नी वाली चवन्नी की बात कर रहा हूँ। क्या हुआ कि जब मैं छोटा था ना, तो मेरे पिताजी ने मुझे चवन्नी दी थी और कहा- जा जैसे चाहे खर्च करना है, कर। शंभु जी, उस वक़्त चवन्नी का मिलना! मैं उसे लिए कई दिनों तक घूमता रहा। प्लान बनाता रहा, सपने देखता रहा कि कहाँ किसी बड़ी जगह खर्च करूँगा, पर कुछ समझ में नहीं आया।

 

तो मैंने सोचा अभी मैं बहुत छोटा हूँ। जब बड़ा हो जाऊँगा तो बड़ी जगह खर्च करूँगा इसे। तो मैंने उस चवन्नी को अपने घर की एक टूटी दीवार में छिपा दिया। कभी-कभी उसे निकालकर देख लेता था कि ठीक-ठाक रखी है। कुछ समय बाद पिताजी ने पूरे घर का प्लास्टर करवा दिया। चवन्नी अंदर दब गई, पर मैंने किसी को कुछ नहीं बताया। क्योंकि मुझे पता था, मैं जब चाहूँ वो चवन्नी निकाल सकता हूँ।

 

बल्कि अब तो चवन्नी ज़्यादा सुरक्षित थी। फिर मैं बड़ा हो गया, पिता जी मर गए और सारे घर की ज़िम्मेदारी मुझ पर आई। पर मैंने उस चवन्नी को नहीं निकाला। अभी भी वो चवन्नी उसी दीवार में पड़ी हुई है। मैं जब चाहूँ उसे निकाल सकता हूँ पर मैंने नहीं निकाला। उसी चवन्नी की कभी-कभी याद जाती है।

 

शंभु- अरे झिलमिल जी आइए-आइए।

बलि- (बलि नकल करते हुए) अरे झिलमिल जी आइए-आइए।

शंभु- देखिए-देखिए।

बलि- देखिए-देखिए। हँ...

 

झिलमिल- अरे बलि जी, हम जब पकौड़े खाने जाते हैं तब आप ये बात मुझे नहीं बताते।

बलि- अरे आप कब आईं?

झिलमिल- अभी, जब आप वो चवन्नी वाली बात सुना रहे थे। शंभु जी कैसे हैं?

शंभु- ठीक हूँ।

झिलमिल- आपकी दवाई लाई थी।

शंभु- वो तो है मेरे पास।

झिलमिल- अच्छा, वो दवाई खाई आपने?

शंभु- पर अभी तो किसी दवाई का समय नहीं है। क्या बात है? कुछ कहना चाहती हो, कहो?

 

झिलमिल- शंभु जी, असल में...

बलि- एक मिनट... झिलमिल जी, पहले हम पकौड़े खाने चलें, फिर शंभु जी तो यहीं हैं। आप उसके बाद बात कर लेना।

 

झिलमिल- बलि जी, मुझे कुछ ज़रूरी बात करनी है।

बलि- आपने ही कहा था कि आप कुछ अच्छी ख़बर सुनाने वाली हैं आज। इसलिए मैंने सोचा, चलो ठीक है।

 

झिलमिल- अच्छा वो तो ठीक है, पहले अच्छी ख़बर सुना देती हूँ।

बलि- यहाँ, शंभु जी के सामने?

झिलमिल- हाँ ! क्यों? असल में बात ये है कि...

बलि- ठहरिए, मैं पीछे खड़े होकर सुनता हूँ। मुझे शर्म आती है। थोड़ा तेज़ बोलना।

 

झिलमिल- बात ये है कि सब कुछ तय हो गया है और अगले महीने मैं शादी कर रही हूँ। (बलि भीतर चला जाता है।)

शंभु- देखिए ख़ुशी के मारे अंदर चला गया। ये तो बहुत अच्छी ख़बर है, मिठाई होनी चाहिए।

 

झिलमिल- मिठाई मैं लाई नहीं हूँ, पर शंभु जी...

शंभु- कोई बात नहीं, लीजिए मुँह मीठा कीजिए... (डिब्बे से चॉकलेट निकालता है।) क्या बात है?

झिलमिल- मुझसे एक ग़लती हो गई है।

शंभु- ग़लती तो सब करते हैं।

 

झिलमिल- पर ये ग़लती मैंने जान-बूझकर की है।

शंभु- देखिए, हम बूढ़े लोग बरगद की तरह होते हैं। कोई भी आकर अपने मन की बात उनसे कह सकता है।

 

झिलमिल- और अगर बात बरगद के बारे में ही हो तो?

शंभु- मतलब?

झिलमिल- मैंने शुभांकर को आपसे मिलने की इजाज़त दे दी है। वो अगले हफ्ते आपसे मिलने रहा है।

शंभु- देखिए झिलमिल जी...

 

झिलमिल- नहीं, आप अभी मत बोलिए। पहले मेरी बात सुनिए, फिर आपको जितना डाँटना हो डाँट लीजिएगा। वहाँ उसका फोन आता है। यहाँ आप मुझे डाँट देते हैं। मैं आप दोनों के बीच फँस गई हूँ। और मुझे नहीं लगता है कि मैंने कुछ ग़लत किया है, वो out of india जा रहा है, हमेशा के लिए। और एक बार आपसे मिलना चाहता है। उसका हक़ बनता है। वो दो साल से इसकी कोशिश कर रहा है। सो मैने हाँ कर दिया। बताइए, ग़लत किया? बोलिए?

 

शंभु- आह! (शंभु को दिल का दौरा पड़ता है..)

झिलमिल- शंभु जी! शंभु जी!


 सीन- 7

(बलि अखबार पढ़ रहा है.. और शंभु अपने पलंग पर सो रहा है।)

बलि- शंभु जी! शंभु जी! इतनी देर तक तो आप सोते नहीं हैं। उठिए भई, शंभु जी शंभु जी शंभु जी... (बलि घबराकर शंभु के पास जाता है, उसे लगता है शंभु जी मर गए।)

 

शंभु- ज़िंदा हूँ, ज़िंदा हूँ। ऐसे चिल्लाओगे तो शायद मर जाऊँ।

बलि- नहीं, मुझे लगा आप निकल लिए।

 

शंभु- पानी देना।

बलि- कल शुभांकर आने वाला है। कौन है ये?

शंभु- मैंने कभी उसे देखा नहीं। मैं मिला भी नहीं हूँ उससे।

बलि- फिर आप डरते क्यों हैं? वैसे झिलमिल जी ने मना किया था कि आपसे उसके बारे में बात करूँ, पर अब तो हम दोस्त हैं। हैं कि नहीं?

शंभु- हाँ।

 

बलि- बस फिर क्या है, देखो मेरे पास एक प्लान है! हम दोनों दरवाज़े के पीछे छुपे रहेंगे और जैसे ही वो अंदर आएगा, मैं उससे पूछूँगा- आप कौन? जैसे ही वो बोलेगा शुभांकर, आप पीछे से उसके ऊपर कंबल डाल देना... पर शुभांकर बोलने का मौक़ा उसे देना, वरना बेकार में गौतम फिर से पिट जाएगा। इधर आपने कंबल डाला, उधर उसकी कंबल कुटाई शुरू। कंबल कुटाई जानते हैं ना आप?

 

शंभु- मुझे नहीं लगता कि मैं तब तक रुक पाऊँगा।

बलि- क्यों आप पहले ही शुरू हो जाएँगे?

 

शंभु- नहीं, मेरी बात सुनो। मैं नहीं जानता ये शुभांकर कौन है। मेरी बेटी तितली, बस उसी के मुँह से सुना था मैंने उसके बारे में। ये दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। ये बात मुझे बहुत देर बाद पता लगी, जब तितली ने कहा कि वो उससे शादी करना चाहती है। मैं और मेरी बेटी इतने सुखी थे।

 

ये कौन गया? कब गया? कैसे तितली अचानक मुझे छोड़कर जाना चाहती है। उस वक़्त एकदम से मैं ये सब बर्दाश्त नहीं कर पाया और मैंने तितली को मना कर दिया। वो मेरी ज़ि जानती थी। पर ये मेरी ज़ि नहीं थी। मैं उसे वक़्त ये सब एकदम से सहन नहीं कर पाया, शायद मैं शुभांकर से मिलता... पर उसने मुझे दूसरा मौक़ा नहीं दिया।

 

कुछ समय बाद वो उसके साथ चली गई। उन्होंने शादी कर ली और वो कहीं घूमने चले गए। मैं अकेला रह गया। सोचा जब तितली वापस आएगी तो थोड़ा ग़ुस्सा होऊँगा... थोड़ा नहीं बहुत ग़ुस्सा होऊँगा पर फिर मान जाऊँगा। फिर एक दिन खबर आई कि शुभांकर और तितली जिस कार में थे, उस कार का accident हो गया है जिसमें शुभांकर बच गया और तितली... तितली, मेरी फूल सी बच्ची मर गई।

 

मैं अकेला रह गया। तितली की माला टँगी हुई फोटो को देखने की हिम्मत मैं नहीं जुटा पाया। और सब कुछ छोड़कर मैं यहाँ गया। मुझे शुभांकर से कोई लेना-देना नहीं है, पर उसने एक झटके में मुझसे मेरा सबकुछ छीन लिया।

 

क्यों वो मेरे पीछे पड़ा है? मुझे नहीं मिलना है उससे! मेरी बेटी, मुझसे प्यार करती थी, अभी भी करती है। वो मेरे पास है मेरी बेटी, मुझसे मिलने को आती है। हम घंटों एक-दूसरे से बातें करते हैं और शुभांकर ये सुख भी मुझसे छीनना चाहता है।

 

बलि- नहीं आएगा वो। आप उसके बारे में मत सोचिए। पानी पीजिए। आपने दवाई खाई? कौन सी दवाई है? मैं झिलमिल जी से पूछ के आता हूँ।

शंभु- अच्छा बहाना है, झिलमिल जी से मिलने का।

 

बलि- अरे नहीं शंभु जी, उसकी शादी होने वाली है। इतना बुरा नहीं हूँ मैं।

शंभु- सुनो, कम से कम वही बता दो।

 

बलि- क्या?

शंभु- अरे वही।

बलि- वही क्या?

 

शंभु- तिवारी जी ड्राइवर से डॉक्टर कैसे बने?

बलि- हाँ, आप अभी तक वहीं अटके हुए हैं! नहीं वो मैं आपको तब बताऊँगा जब आप एकदम ठीक हो जाएँगे।

शंभु- अच्छा चलो तिवारी जी के बारे में ही कुछ बताओ, कम से कम कुछ हँस लूँ।

 

बलि- तिवारी जी! तिवारी की एक इच्छा थी। उसके बारे में बताता हूँ। हरिशंकर तिवारी जी असल में...

शंभु- डॉ. हरिशंकर तिवारी बोल, वरना वो नाराज़ हो जाएँगे।

 

बलि- अरे हाँ, माफ़ कीजिएगा! तिवारी जी आपके नाम के आगे डॉ. लगाना भूल गया। तिवारी जी असल में प्रसिद्ध होना चाहते थे। जो वो हुए नहीं। तो वो ऐसी चीज़ को देखना चाहते थे जो प्रसिद्ध हो। तो उन्होंने तय किया कि वो ताजमहल देखने जाएँगे। नज़दीक से उसे छूएँगे। क्यों वो इतना प्रसिद्ध है? क्यों उसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं? जबकि उन्हें देखने कोई नहीं आता?

 

शंभु- क्यों आप तो थे?

बलि- अरे मैं बहुत छोटा था उस वक़्त। मुझे तो वो कोई गिनती में भी नहीं रखते थे। तो उन्होंने तय किया कि वो पहले शिरडी जाएँगे। मन्नत माँगेंगे कि वो ताजमहल देखना चाहते हैं और अगर मन्नत पूरी हुई और उन्होंने ताजमहल देख लिया तो वापस शिरडी जाकर भगवान को धन्यवाद देंगे।

शंभु- अरे अजीब है! दो बार शिरडी जाएँगे, उससे अच्छा एक बार ताजमहल देख लें।

 

बलि- वही तो! मैंने उनसे कहा तो वो कहने लगे, अगर मैं सीधे आगरा चला गया और ताजमहल देख लिया तो किसको बताऊँगा कि मैंने ताजमहल देख लिया? इसलिए वापस शिरडी जाकर भगवान को बोलूँगा कि भगवान! ताजमहल देखा, अच्छा लगा।

 

शंभु- तो उन्होंने ताजमहल देखा?

बलि- जब तक मैं था तब तक वो शिरडी जाने के पैसे ही जमा कर रहे थे।

शंभु- अब मैं सोना चाहता हूँ।

बलि- लाइट ऑफ कर दूँ?

शंभु- तुम्हारे साथ तो कैसे भी सोने की आदत पड़ गई है। बलि जी, एक चाय मिलेगी?

 

बलि- हाँ क्यों नहीं? (बलि अंदर जाता है, तितली की आवाज़ आती है.. वो एक शेडो में हमें दिखती है... सपने सी.. सुंदर... )

 

तितली- मैंने एक परी से कहा कि मुझे एक ऐसी परीकथा सुनाओ जिसे सुनकर मेरी बेटी को अपनी परी मिल जाए। वो परी हँसने लगी और उसने कहा ठीक है, मैं एक ऐसी परी की कहानी सुनाती हूँ, जो एक दिन ग़ायब हो गई थी।

 

(बलि चाय लेकर आता है। शंभु मर चुका है)

बलि- शंभु जी, चाय... शंभु जी, चाय... शंभु जी?

(Black Out) तितली की परछाई पीछे दिखाई दे रही है।

 

सीन- 8

झिलमिल- आज शाम को शुभांकर रहा है। अच्छा ही है, कम से कम शंभु जी का सारा सामान उसको दे देंगे। उसी का हक़ बनता है।

 

बलि- इस बात पर मैं आपसे लड़ सकता हूँ। उनका सूटकेस तो मैं ही रखूँगा। बाक़ी सामान आप उसे दे सकती हैं।

 

झिलमिल- उसे यहाँ आकर कितना बुरा लगेगा। काश! एक दिन पहले जाता, उसका कोई नंबर भी नहीं है कि उसे इन्फ़ॉर्म कर सकूँ।

बलि- अच्छा ही है, पता नहीं शंभु जी उसे देखकर उसका क्या करते और उनके बीच में मैं अपना क्या करता!

झिलमिल- आपसे एक फेवर चाहिए।

 

बलि- कहने की ज़रूरत नहीं है। आपकी शादी में पूरा काम करूँगा।

झिलमिल- अरे नहीं, आज शाम को सब लोग रहे हैं। अच्छा ही है, मैं ऐसे शुभांकर से मिलना नहीं चाहती थी। आप संभाल लेंगे?

बलि- आप रहें या ना रहें, संभालना तो मुझे ही पड़ेगा। आप जाइए।

झिलमिल- कोई तकलीफ़ हो तो गौतम को भिजवाकर मुझे बुलवा लीजिएगा। अच्छा नमस्ते!


बलि- झिलमिल जी आपसे एक बात कहनी थी। जब बहुत समय बाद मैं तिवारी जी से मिला तो देखा उनके घर के सामने भीड़ लगी थी। पता किया तो पता चला कि वो घर पर ही पढ़ाई करके हौम्योपैथिक के डॉक्टर हो गए हैं। और गाँव के लोगों का फ्री इलाज करते हैं। फ्री के डॉक्टर।

 

झिलमिल- जी।

बलि- अरे, ड्राइवर से डॉक्टर! वो शंभु जी और मेरी बात थी, उन्हें बता नहीं पाया। बस बताना था, ठीक है...

(झिलमिल जाती हैबलि शंभु के बेड के पास आकर खड़ा हो जाता है।)

 

सीन- 9

(शुभांकर खाली कमरे में प्रवेश करता है.. पूरा कमरा देखता है.... तभी  बलि उसे पीछे से डरा देता है।)

बलि- बौं! क्यों डर गया?

शुभांकर- ओह! आप?

बलि- तुम? मुझे लगा गौतम है।

शुभांकर- मैं शुभांकर।

बलि- शुभांकर! तुम जल्दी गए।

 

शुभांकर- मैं जल्दी गया। मैं तो और भी जल्दी आना चाहता था।

बलि- आओ बैठो... (बलि अंदर जाता है... शुभांकर शंभु के पलंग पर जाकर बैठ जाता है... बलि भीतर से पूछता है।) चाय, चाय पिओगे?

शुभांकर- नहीं, कुछ नहीं। (शुभांकर तितली की फोटो देखता है.. बलि पानी लेकर प्रवेश करता है।)

बलि- तितली है।

 

शुभांकर- मेरी बीवी है।

बलि- अच्छा, अभी भी है? मुझे लगा तुमने दूसरी शादी कर ली होगी। भई दो साल काफ़ी वक़्त होता है।

(वक़्फा...)

 

बलि- कब जाओगे?

शुभांकर- यहाँ से? बस...

बलि- नहीं, मतलब तुम्हारी फ़्लाइट कब है?

शुभांकर- आज रात में।

 

बलि- और घर में बाक़ी सब कैसे हैं?

शुभांकर- घर में कोई नहीं है, मैं अकेला हूँ।

बलि- कुछ खाओगे?

 

शुभांकर- नहीं।

बलि- यहाँ कुछ नहीं है, बाहर से मँगाना पड़ेगा।

शुभांकर- मुझे कुछ नहीं चाहिए। कुछ भी नहीं।

बलि- ये कुछ चीज़ें हैं, इन्हें तुम रख लो।

 

शुभांकर- ये सब आप मुझे क्यों दे रहे हैं?

बलि- मैं क्या करूँगा इनका... और एक सूटकेस है।

शुभांकर- हाँ सूटकेस।

बलि- वो मैं आपको नहीं दूँगा, वो मेरा है।

 

शुभांकर- हाँ, तितली ने बताया था मुझे, पापा का सूटकेस...

बलि- उसके बारे में आप बात मत करिए, वो मैं आपको नहीं दूँगा।

शुभांकर- नहीं चाहिए, वो आपका ही है।

बलि- तब ठीक है। (शुभांकर घड़ी देखता है।)

शुभांकर- बस थोड़ी देर में निकलूँगा।

 

बलि- थोड़ी देर है तो मैं चाय पी लूँ?

शुभांकर- हाँ, आप, आप चाय पी लीजिए।

बलि- ठीक है। देखो मुझसे ये बर्दाश्त नहीं हो रहा है। मैं तुम्हें बता दूँ कि...

शुभांकर- मैं भी आपको बताना चाहता हूँ।

 

बलि- बोलो...

शुभांकर- मैं, मैं निकलता हूँ। अच्छा नमस्ते! (शुभांकर निकलता है पर दरवाज़े पर जाकर रुक जाता है।)

बलि- ठीक है, क्या हुआ?

 

शुभांकर- मैं आपको एक बात बता दूँ कि मैं तितली को बहुत प्यार करता हूँ। ये दो साल मैंने कैसे बिताए हैं, मैं ही जानता हूँ। मैं हर जगह हज़ारों बार जा चुका हूँ, जहाँ हम मिला करते थे। पिछले दो सालों से मैं वही-वही बार-बार वैसा का वैसा जी रहा हूँ। मैं बहुत तकलीफ़ में जिया हूँ। और कोई भी नहीं था, जिससे मैं ये सब बता सकता। आज आप... (पलटता है।) शंभुजी आप एक बारशंभु जी आप एक बार मुझसे मिल लेते। मैं बस आपके साथ रोना चाहता था.. शंभु जी..

 

बलि- बैठो बैठो। मैं तुमसे एक बात कह दूं कि.. मैं...

शुभांकर- मैंने आपको इतने सारे लैटर लिखे। आपने एक का भी जवाब नहीं दिया। आपने वो लैटर पढ़े ही नहीं। क्यों? एक लैटर... एक लैटर खोलकर तो देखते, वो सारे लैटर मैंने आपको तितली बनकर लिखे थे। इतना जानता था मैं आपकी बेटी को, आप एक लैटर भी पढ़ते तो मुझसे ज़रूर मिलने आते। मुझे पता है आप मुझसे क्यों नहीं मिलना चाहते थे, पर मुझे माफ़ कर दीजिए और तितली ने कहा था वो आपको मना लेगी। हम लोग रोज़ आपको मनाने के नए-नए तरीक़े खोजते थे। एक दिन तो...

 

बलि- बेटा, मुझे ख़ुद नहीं पता मैं तुमसे क्यों नहीं मिल पाया। तितली का जाना मैं शायद बर्दाश्त नहीं कर पाया इसलिए सब कुछ छोड़कर यहाँ गया। और तुम्हारे लैटर, मुझसे मत पूछो क्यों नहीं पढ़े। मैं बदल गया हूँ। अजीब हो गया हूँ। मुझे माफ़ कर दो।

 

शुभांकर- नहीं, मैं माफ़ी चाहता हूँ। मैं शायद ज़्यादा बोल गया।

बलि- नहीं नहीं, अच्छा किया जो तुमने सब बोल दिया।

शुभांकर- अच्छा, मुझे देर हो रही है, मैं जाता हूँ।

बलि- ठीक है।

 

शुभांकर- मैंने आपसे आपका सब कुछ छीन लिया, मैं जानता हूँ। मुझे लगा सबकुछ ठीक हो जाएगा, पर कुछ भी ठीक नहीं हुआ।

बलि- अब सब ठीक हो गया है। मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया। तुम भी मुझे माफ़ कर देना।

 

शुभांकर- अरे हाँ! जिसके लिए मैं आपसे मिलना चाहता था, वो तो आपको देना ही भूल गया। ये, ये तितली आपको देना चाहती थी।

 

बलि- क्या है?

शुभांकर- जिसके लिए मैं आपसे मिलना चाहता था। (एक कैसेट निकालकर देता है। बलि उसे ले लेता है।)

बलि- ठीक है।

शुभांकर- सुन लीजिए।

बलि- अभी?

 

शुभांकर- हाँ! (बलि कैसेट टेपरिकार्ड में लगाता है और प्ले बटन दबाता है। तितली की आवाज़ आती है।)

 

तितली- हैलो पापा! मुझे पता है आप मुझसे नाराज़ होंगे। मैं आऊँगी और झट से आपको मना लूँगी। पर मुझे पता है आपको नींद तो आती नहीं है। तो जब तक आप नाराज़ हैं ये परी की कहानी सुनकर सोना। ठीक है? एक परी थी...

 

(बलि बीच में ही रोक देता है।)

बलि- मैं बाद में सुन लूँगा, ठीक है।

शुभांकर- मैंने इसकी एक कॉपी अपने पास रख ली है। अगर आपको एतराज़ ना हो तो?

बलि- ये सबकुछ तुम्हारा है।

शुभांकर- चलता हूँ।

(शुभांकर जाता है)

बलि- (शंभु के बिस्तर के पास आकर) शंभु! तुम्हें शुभांकर से एक बार मिल लेना चाहिए था। खैर मैं उससे मिल लिया।

(गौतम आता है)

 

गौतम- बलि जी, मैंने वो उसे रिक्शा दिला दिया। अभी गया वो...

बलि- कौन?

गौतम- शुभांकर, शुभांकर ही था ना वो?

बलि- हाँ, तुम्हें कैसे पता?

 

गौतम- अरे जब वो रहा था ना तो बाहर मिला मुझे। मुझसे पूछा- शंभु जी कहाँ हैं? मैंने पूछा- आप कौन तो उसने बताया शुभांकर। मैंने कहा तुमने आने में देर कर दी, शंभु जी तो मर चुके हैं।

बलि- तुमने बता दिया था उसे?

गौतम- हाँ, और उसने तो मुझे पैसे भी दिये... पता नहीं अजीब...

बलि- गौतम तुम अभी जाओ यहाँ से!

 

(गौतम निकलता है... बलि टेप का बटन दबाता है, परिकथा शुरू हो जाती है। बलि परिकथा सुनते हुए शंभु के बेड पर लेट जाता है।)

 

तितली- (रिकार्डेड आवाज़) मुझे एक ऐसी परिकथा सुनाओ, जिसे सुनकर मेरी बेटी को अपनी परी मिल जाए। वो परी हँसने लगी और उसने कहा- ठीक है। मैं एक ऐसी परी की कहानी सुनाती हूँ जो एक दिन ग़ायब हो गई थी और फिर कभी नहीं मिली। वो बहुत ख़ूबसूरत परी थी। जिस दिन वो ग़ायब हो गई थी, परी देश में सभी परेशान हो उठे।

 

कैसे गई, कहाँ गई, क्योंकि ऐसे ही कोई परी ग़ायब नहीं होती। उसे ढूँढने का काम मुझे सौंपा गया, क्योंकि हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। मैं धरती पर उस आदमी की तलाश करने लगी, जिनकी वो परी थी। बहुत समय बाद वो मिला पर परी उसके पास नहीं थी। जानते हो क्या हुआ था... उस आदमी ने एक बार किसी से कह दिया था कि मैं परियों में विश्वास नहीं करता और उसकी परी मर गई थी।

        The End             

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