Thursday 21 April 2022

Hyderabad: Sheher-e-Ishq (City of Love): अमर प्रेम कथा : जब बंजारन को दिल दे बैठा दक्कन का शहजादा: love Story of Quli Qutub and Bhagmati

आज हम आपके लिए लेकर आये हैं मुहम्मद कुली कुतुब शाह और भागमती की अमर प्रेम कहानी़ जब प्यार करनेवाले दो अलग-अलग वर्गों और धर्मों से आते हों तो सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि आज से सवा चार सौ साल पहले के उस जमाने में उनका प्यार कितना मुश्किल रहा होगा.

 

लेकिन इनसे पार पाते हुए शहजादे कुली कुतुब ने न सिर्फ भागमती से शादी रचायी, बल्कि उनके नाम पर एक शहर भी बसाया, जिसे आज हैदराबाद के नाम से जाना जाता है.

Prince QULI Qutub Shah and Bhagmati

दक्कन में बहमनी साम्राज्य के विघटन के बाद पांच राज्य अस्तित्व में आये़ उनमें से कुतुब शाही वंश ने गोलकुंडा साम्राज्य स्थापित किया. 1508 से 1687 ईस्वी तक दक्कन में कुतुबशाही शासन का काल रहा. इस वंश के पांचवें शासक मुहम्मद कुतुब कुली शाह ने 1591 में गोलकुंडा से पांच मील पूर्व में मुसी नदी के किनारे हैदराबाद शहर की स्थापना की़

 

650 वर्ग किलोमीटर में फैले इस शहर को देश का छठा बड़ा ऐतिहासिक शहर होने का गौरव हासिल है.

लेकिन इसकी पृष्ठभूमि में एक प्रेम कहानी है, कुली कुतुब शाह और भागमती की एेतिहासिक प्रेम कहानी, दरअसल, जब शहजादे मुहम्मद कुली कुतुब शाह नौजवान थे, तब उन्होंने एक गांव से गुजरते हुए नदी के दूसरे किनारे पर एक बेहद रूपवान स्त्री को देखा.

Musi Nadi-Hyderabad

उस नदी का नाम मुसी था और शहजादे को मोहित कर देनेवाली उस रूपवान स्त्री का नाम भागमती था़ पहली नजर में दोनों को एक-दूसरे से प्रेम हो गया और मुसी नदी के किनारे उनके मिलने-जुलने का सिलसिला चल पड़ा.

 

शहजादे के ऊपर भागमती का ऐसा जादू चला कि वे हर परेशानी सह कर बस उनसे विवाह को लेकर बेचैन हो गये. भागमती शहजादे मुहम्मद कुली कुतुब शाह की तरह न तो किसी राजपरिवार से ताल्लुक रखती थी और न ही वह मुसलमान थी.

 

वह एक नाचने-गानेवाली बंजारन की बेटी थीं. शाह के परिवार को बागमती स्वीकार नहीं थी, लेकिन शहजादे मुहम्मद कुली कुतुब शाह की जिद के आगे परिवारवालों की एक न चली और उन्होंने अंतत: शहजादे को भागमती से शादी की इजाजत दे दी.

 

इस शादी के बाद युवराज कुली कुतुब शाह ने मुसी नदी के पार छिछलम गांव की रहनेवाली भागमती के गांव और उसके आसपास के क्षेत्र का नाम भाग्यनगर रख दिया़

Marriage Procession of Quli Qutub Shah and Rani Bhagmati

उस वक्त के तत्कालीन चलन के अनुरूप इसलाम धर्म स्वीकार कर लेने के बाद भागमती का नाम हैदर महल रखा गया़ हैदर महल के नाम पर ही भाग्यनगर का नाम भी ‘हैदराबाद रखा गया़ हैदराबाद की शान और पर्याय क रूप में चारमीनार इस शहर का बड़ा आकर्षण है.

48.7 मीटर की चार मीनारों वाला यह तोरण, शहर के बीचोंबीच स्थित है़ मुहम्मद कुली ने अपनी बेगम के गांव की जगह इसका निर्माण 1591 में शुरू किया और इन चारों मीनारों को पूरा बनाने में लगभग 21 वर्ष लगे़ बताया जाता है कि चारमीनार को इस क्षेत्र में प्लेग महामारी के अंत की यादगार के तौर पर बनवाया गया था़

 

गौरतलब है कि मोहम्मद कुली कुतुब शाह अपने समय के जाने-माने शायर भी रहे़ उन्हें उर्दू और फारसी भाषाओं में नज्मों, गजलों और कव्वाली की बेहतरीन रचना के लिए जाना जाता है़

उनकी बेगम हैदर महल, यानी भागमती उनकी रचनाओं की प्रेरणा रहीं. बहरहाल, सम्राट अकबर के समकालीन मोहम्मद कुली कुतुब शाह (1565 से 1611 ई) दक्खिनी हिंदी पहले ऐसे कवि भी माने जाते हैं, जिन्होंने भारतीय जीवन में गहरे पैठकर कविताएं रचीं.

Rani Bhagmati

इनके काव्य में व्यापक जनजीवन का चित्रण है़ इनकी कविताओं का लगभग 1800 पन्नों का एक वृहत संग्रह ‘कलियात कुली कुतुब शाह के नाम से प्रकाशित हुआ है. इसमें एक ओर सूफी संतों के रहस्यात्मक पारलौकिक प्रेम का चित्रण है, तो दूसरी ओर इहलौकिक प्रेम का सतरंगी रंग इनकी भावभूमि में है.

Qutub Shahi Tombs-Hyderabad

कुतुबशाही काल के महानतम कवि मुल्ला वजही गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन थे़

इन्होंने अपनी कृति कुतुबमुश्तरी (1600 ई) में कुतुब (बादशाह कुतुबशाह) और मुश्तरी (भागमती) की प्रेमगाथा लिखी है, जिसमें जगह-जगह पर प्रेम, विरह और ज्ञान को परिभाषित किया गया है - ‘नको छांड़ साहब की खिदमत तू कर/ के खिदमत ते होत है प्यार नफर.

Char Minar-Hyderabad

 उल्लेखनीय है कि वजही ने 1635 ई में सबरस नाम से एक महान गद्य-ग्रंथ की रचना की थी, जिसमें सूफी साधना के गूढ़ विचार प्रतीकों के रूप में साहित्यिक समरसता के साथ प्रस्तुत किये गये हैं.

The End

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Tuesday 19 April 2022

सात कुलचे: भविष्यवाणी ने बनाया निजाम हैदराबाद को बादशाह. सही निकली पीर की भविष्यवाणी. सात पीढ़ियों तक ही किया हैदराबाद साम्राज्य पर शासन

निजामों के इतिहास की बात करें तो निजाम-उल-मुल्क आसफजाह प्रथम हैदराबाद के पहले निज़ाम बने.

 

निजाम-उल-मुल्क आसफजाह प्रथम का वास्तविक नाम मीर कमरुद्दीन खान था, जिन्होंने मुग़ल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के बाद हैदराबाद को स्वत्रंत रियासत घोषित किया और आसफजाही राजवंश की स्थापना की.

 

ऐसे में हैदराबाद के पहले निज़ाम के बारे में जानना हमारे लिए दिलचस्प रहेगा कि किस तरह से ये मुग़ल बादशाहों के अधीन रहकर बड़े पद पर कार्यरत रहे और उसके बाद मुगलों के खिलाफ विद्रोह कर दिया.

 

तो आइए जानते हैं, मीर कमरुद्दीन खान के निज़ाम बनने और उनके सफ़र के बारे में 

मुग़ल बादशाह औरंगजेब के करीबी रहे!

मीर कमरुद्दीन 6 साल की उम्र में ही अपने पिता के साथ मुग़ल दरबार गए, तब औरंगजेब ने उनके पिता से कहा था कि "भाग्य का सितारा आपके बेटे के माथे पर चमकता है."

First Nizam of Hyderabad State- Mir Qamruddin Ali Khan

इन्होंने 16 साल की उम्र में ही अदोनी के किले पर सफलता हासिल की. जिससे बादशाह औरंगजेब ने खुश होकर इनको कई सारे पुरस्कारों से नवाज़ा और बाद में इन्हेंचिन किलीच खानका ख़िताब दिया.

इसके बाद इन्हें मुग़ल सम्राट ने पहले बीजापुर, फिर मालवा और बाद में दक्कन का शासन सौंप दिया.

बादशाह, औरंगजेब के कार्यकाल में अवध और दक्कन के सूबेदार के पदों को सभांलते हुए मुग़ल सल्तनत के वफादार रहे.

 

हालांकि, 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुग़ल सल्तनत कमज़ोर हो गई. लेकिन ये औरंगजेब के उत्तराधिकारी बादशाह फ़र्रुख़सियर के कार्यकाल में भी उनके अधीन अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहे.

 

वहीं, बादशाह फ़र्रुख़सियर ने इन्हेंनिज़ाम-उल-मुल्कके ख़िताब से नवाज़ा, लेकिन कुछ ही दिनों बाद सैय्यद बंधुओं ने मिलकर सुल्तान फ़र्रुख़सियर की हत्या कर दी.ऐसे में निज़ाम-उल-मुल्क ने इन सैय्यद बंधुओं से बदला लेने के लिए एक योजना बनाई.

 

इस योजना के अनुसार, निज़ाम-उल-मुल्क सैय्यद बंधुओं से सुल्तान की मौत का बदला लेने में कामयाब रहे और अपनी वफादारी का सबूत पेश किया.

 

सुल्तान फ़र्रुख़सियर की मौत के बाद मोहम्मद शाह ने मुग़ल सल्तनत का राज पाठ संभाला. इस दौरान ये दीवान रहे.

हालांकि, इनके कार्यकाल में मुग़ल सल्तनत की लापरवाही और अनुशासनहीनता का दौर शुरू हो चुका था और इनकी शासन व्यवस्थाव पूरी तरह से चरमरा गई थी.जिसको सुधारने के लिए निज़ाम ने काफी जतन किए, लेकिन उनकी सलाह को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता था.

 

ऐसे में निज़ाम-उल-मुल्क ने मुग़ल सल्तनत की मुखालिफत करना शुरू कर दिया. उन्होंने दक्कन में अहिस्ता-अहिस्ता अपनी पकड़ मजबूत बना ली.


इसके बाद निज़ाम ने 1722 में मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह कर दिया, जिसके बाद इन्होंने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की घोषणा कर दी और इसी के साथ सल्तनत के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया.

मराठों की तरफ बढ़ाया दोस्ती का हाथ

सल्तनत से बगावत करने    मुगल बादशाह ने दक्कन के सूबेदार मुबारिज खान को निज़ाम से लड़ने भेजा.ऐसे में निज़ाम ने अपनी सेना को इकठ्ठा किया और मुबारिज खान के साथ युद्ध करने शूकर खेड़ा के मैदान में पहुंच गए. 1724 के इस शूकर खेड़ा युद्ध में निज़ाम मराठों की मदद से मुबारिज खान को परास्त करने में कामयाब रहे.

 

बताया जाता है कि इस युद्ध में निज़ाम ने बड़ी बहादुरी और चालाकी के साथ मुबारिज खान से लोहा लिया. उसका सिर कलम कर मुगल सल्तनत को भेज दिया.तब जाकर दिल्ली सल्तनत को इनकी ताकत का एहसास हुआ.

Aurangzeb

हालांकि, इन्होंने दिल्ली सल्तनत से नाता नहीं तोड़ा और मुग़ल शासन को समय-समय पर सहयोग देते रहे.

 1738 में, नादिर शाह ने अफगानिस्तान और पंजाब के माध्यम से दिल्ली की ओर बढ़ना शुरू कर दिया

निजाम उल-मुल्क ने अपने सैनिकों को करनाल भेजा , जहां मुगल सम्राट मोहम्मद शाह की सेना फारसी सेना को वापस करने के लिए एकत्र हुई थी। लेकिन संयुक्त सेना फारसी घुड़सवार सेना और उसके बेहतर हथियार और रणनीति के लिए तोप का चारा थी। नादिर शाह ने मुहम्मद शाह और निज़ाम की संयुक्त सेनाओं को हराया।

 

नादिर शाह ने दिल्ली में प्रवेश किया और वहां अपने सैनिकों को तैनात किया। दिल्ली के कुछ स्थानीय लोगों ने झगड़ा किया और उसके सैनिकों पर हमला कर दिया। इस पर नादिर शाह क्रोधित हो उठे, उन्होंने म्यान से अपनी तलवार निकाली और नगर को लूटने और लूटने का आदेश दिया। मुहम्मद शाह दिल्ली को तबाह होने से नहीं रोक पाए।

 

जब नादिर शाह ने दिल्ली में नरसंहार का आदेश दिया, तो तो असहाय मुगल सम्राट मोहम्मद शाह और ही उनके किसी मंत्री में नादिर शाह से बात करने और युद्धविराम के लिए बातचीत करने का साहस था।

 

केवल आसफ जाह ही आगे आए और अपनी जान जोखिम में डालकर नादिर शाह के पास गए और उनसे शहर के खूनखराबे को खत्म करने के लिए कहा . किंवदंती है कि आसफ जाह ने नादेर शाह से कहा

 

"तुमने शहर के हजारों लोगों की जान ले ली है, यदि आप अभी भी रक्तपात जारी रखना चाहते हैं, तो उन मृतकों को वापस जीवित करें और फिर उन्हें मार डालें, क्योंकि मारे जाने के लिए कोई नहीं बचा है।"

 

इन शब्दों का नादिर शाह पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा - उसने तुरंत अपनी तलवार उसकी म्यान के अंदर रख दी, नरसंहार को समाप्त कर दिया और फारस लौट आया

इस युद्ध के बाद ही मुगल बादशाह मोहम्मद शाह ने निज़ाम कोआसफजाका ख़िताब दिया और कई तोहफों से भी नवाज़ा.

इसके बाद इन्होंने हैदराबाद के आसफजाही राजवंश के पहले निज़ाम के तौर पर अपना कार्य भार संभाला.निज़ाम-उल-मुल्क ने सबसे पहले राजधानी औरंगाबाद को बदलकर हैदराबाद कर दिया और दक्कन प्रांत के सभी सूबों पर अपना अधिकार जमाना शुरू कर दिया.

 

बताया जाता है कि 1742 में ब्रिटिशों ने निज़ाम-उल-मुल्क को मुग़ल उत्तराधिकारी राज्य मद्रास का नेतृत्व करने का प्रस्ताव रखा, तो इन्होंने उनके अधीन शासन करने से इंकार कर दिया.

 

निज़ाम-उल-मुल्क आसफजाह प्रथम ने 1748 में बुरहानपुर रियासत में अंतिम सांस ली, जिसके बाद इन्हें औरंगाबाद के निकट खुलदाबाद में सुपुर्द--खाक कर दिया गया.

 

सात कुलचे:भविष्यवाणी ने बनाया निजाम हैदराबाद को बादशाह

दिल्ली दरबार की गंदी राजनीति से दुखी आसफ जाह इस नियुक्ति से काफी खुश था. आसफ जाह अपने अध्यात्मिक गुरु सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औरंगाबादी से मिलने गया.

 

पीर हजरत निजामुद्दीन ने आसफ जाह को खाने पर बुलाया, यहीं से ये कहानी आगे बढ़ती है. पीर ने आसफ जाह को एक पीले कपड़े में बंधा कुल्हड़ भेंट किया. जिसमें कुलचे थे. उस समय आसफ को भूख लगी हुई थी. उसने सात कुलचे खाए.

 

इसके बाद हजरत निजामुद्दीन ने उसे आशीर्वाद दिया. साथ ही भविष्यवाणी की कि एक दिन वो राजा बनेगा. साथ ही उसका वंश सात पीढ़ियों तक शासन करेगा.

 

सही निकली पीर की भविष्यवाणी

पीर की भविष्यवाणी जल्द ही सही निकली. दरअसल उस दौरान मुगल साम्राज्य काफी नाजुक दौर से गुजर रहा था. 1707 . में औरंगजेब का निधन हो गया था.

हैदराबाद साम्राज्य की स्थापना की

कमुरुद्दीन आसफ जाह ने खुद को दिल्ली की अधीनता से मुक्त करके 1724 . में हैदराबाद सल्तनत की नींव रखी. इस अवसर पर गुरु सूफी संत निजामुद्दीन को सम्मान देने के लिए उसने कुलचा अपना राज प्रतीक बनाया. जिस पीले कपड़े में पीर ने कुलचा दिया था, उसी रंग का आधिकारिक झंडा बनाया गया.

सात कुलचे:सात पीढ़ियों तक ही किया शासन

पीर की बात सही निकली. निजाम आजफ जाह वंश की सात पीढ़ियां ही हैदराबाद पर शासन कर पाईं


हैदराबाद के अंतिम सातवें निजाम सर उस्मान अली खान को अपनी रियासत का विलय नहीं चाहने के बाद भी भारतीय संघ के साथ करना पड़ा था. भारत के सैन्य आपरेशन के बाद निजाम ने हैदराबाद को भारत में मिलाने के पत्र पर हस्ताक्षर किए थे.

last-7Th Nizam of Hyderabad State-Sir Mir Osman Ali Khan
 

आसफ जाही शासक साहित्य, कला, वास्तुकला, संस्कृति, जवाहरात संग्रह और उत्तम भोजन के बड़े संरक्षक थे. निजाम ने हैदराबाद पर 17 सितम्बर 1948 तक शासन किया.

 

सबसे समृद्ध और बड़ी रियासत थी हैदराबाद

गौरतलब है कि भारत में विलय से पहले तक हैदराबाद सभी रियासतों का सबसे बड़ी और सबसे समृद्ध रियासत थी. 1941 की जनगणना के अनुसार हैदराबाद रियासत की कुल आबादी लगभग 16.34 मिलियन यानि 1.6 करोड़ के आसपास थी. इसका क्षेत्रफल 223,000 वर्ग किमी था.

The End