Tuesday 19 April 2022

सात कुलचे: भविष्यवाणी ने बनाया निजाम हैदराबाद को बादशाह. सही निकली पीर की भविष्यवाणी. सात पीढ़ियों तक ही किया हैदराबाद साम्राज्य पर शासन

निजामों के इतिहास की बात करें तो निजाम-उल-मुल्क आसफजाह प्रथम हैदराबाद के पहले निज़ाम बने.

 

निजाम-उल-मुल्क आसफजाह प्रथम का वास्तविक नाम मीर कमरुद्दीन खान था, जिन्होंने मुग़ल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के बाद हैदराबाद को स्वत्रंत रियासत घोषित किया और आसफजाही राजवंश की स्थापना की.

 

ऐसे में हैदराबाद के पहले निज़ाम के बारे में जानना हमारे लिए दिलचस्प रहेगा कि किस तरह से ये मुग़ल बादशाहों के अधीन रहकर बड़े पद पर कार्यरत रहे और उसके बाद मुगलों के खिलाफ विद्रोह कर दिया.

 

तो आइए जानते हैं, मीर कमरुद्दीन खान के निज़ाम बनने और उनके सफ़र के बारे में 

मुग़ल बादशाह औरंगजेब के करीबी रहे!

मीर कमरुद्दीन 6 साल की उम्र में ही अपने पिता के साथ मुग़ल दरबार गए, तब औरंगजेब ने उनके पिता से कहा था कि "भाग्य का सितारा आपके बेटे के माथे पर चमकता है."

First Nizam of Hyderabad State- Mir Qamruddin Ali Khan

इन्होंने 16 साल की उम्र में ही अदोनी के किले पर सफलता हासिल की. जिससे बादशाह औरंगजेब ने खुश होकर इनको कई सारे पुरस्कारों से नवाज़ा और बाद में इन्हेंचिन किलीच खानका ख़िताब दिया.

इसके बाद इन्हें मुग़ल सम्राट ने पहले बीजापुर, फिर मालवा और बाद में दक्कन का शासन सौंप दिया.

बादशाह, औरंगजेब के कार्यकाल में अवध और दक्कन के सूबेदार के पदों को सभांलते हुए मुग़ल सल्तनत के वफादार रहे.

 

हालांकि, 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुग़ल सल्तनत कमज़ोर हो गई. लेकिन ये औरंगजेब के उत्तराधिकारी बादशाह फ़र्रुख़सियर के कार्यकाल में भी उनके अधीन अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहे.

 

वहीं, बादशाह फ़र्रुख़सियर ने इन्हेंनिज़ाम-उल-मुल्कके ख़िताब से नवाज़ा, लेकिन कुछ ही दिनों बाद सैय्यद बंधुओं ने मिलकर सुल्तान फ़र्रुख़सियर की हत्या कर दी.ऐसे में निज़ाम-उल-मुल्क ने इन सैय्यद बंधुओं से बदला लेने के लिए एक योजना बनाई.

 

इस योजना के अनुसार, निज़ाम-उल-मुल्क सैय्यद बंधुओं से सुल्तान की मौत का बदला लेने में कामयाब रहे और अपनी वफादारी का सबूत पेश किया.

 

सुल्तान फ़र्रुख़सियर की मौत के बाद मोहम्मद शाह ने मुग़ल सल्तनत का राज पाठ संभाला. इस दौरान ये दीवान रहे.

हालांकि, इनके कार्यकाल में मुग़ल सल्तनत की लापरवाही और अनुशासनहीनता का दौर शुरू हो चुका था और इनकी शासन व्यवस्थाव पूरी तरह से चरमरा गई थी.जिसको सुधारने के लिए निज़ाम ने काफी जतन किए, लेकिन उनकी सलाह को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता था.

 

ऐसे में निज़ाम-उल-मुल्क ने मुग़ल सल्तनत की मुखालिफत करना शुरू कर दिया. उन्होंने दक्कन में अहिस्ता-अहिस्ता अपनी पकड़ मजबूत बना ली.


इसके बाद निज़ाम ने 1722 में मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह कर दिया, जिसके बाद इन्होंने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की घोषणा कर दी और इसी के साथ सल्तनत के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया.

मराठों की तरफ बढ़ाया दोस्ती का हाथ

सल्तनत से बगावत करने    मुगल बादशाह ने दक्कन के सूबेदार मुबारिज खान को निज़ाम से लड़ने भेजा.ऐसे में निज़ाम ने अपनी सेना को इकठ्ठा किया और मुबारिज खान के साथ युद्ध करने शूकर खेड़ा के मैदान में पहुंच गए. 1724 के इस शूकर खेड़ा युद्ध में निज़ाम मराठों की मदद से मुबारिज खान को परास्त करने में कामयाब रहे.

 

बताया जाता है कि इस युद्ध में निज़ाम ने बड़ी बहादुरी और चालाकी के साथ मुबारिज खान से लोहा लिया. उसका सिर कलम कर मुगल सल्तनत को भेज दिया.तब जाकर दिल्ली सल्तनत को इनकी ताकत का एहसास हुआ.

Aurangzeb

हालांकि, इन्होंने दिल्ली सल्तनत से नाता नहीं तोड़ा और मुग़ल शासन को समय-समय पर सहयोग देते रहे.

 1738 में, नादिर शाह ने अफगानिस्तान और पंजाब के माध्यम से दिल्ली की ओर बढ़ना शुरू कर दिया

निजाम उल-मुल्क ने अपने सैनिकों को करनाल भेजा , जहां मुगल सम्राट मोहम्मद शाह की सेना फारसी सेना को वापस करने के लिए एकत्र हुई थी। लेकिन संयुक्त सेना फारसी घुड़सवार सेना और उसके बेहतर हथियार और रणनीति के लिए तोप का चारा थी। नादिर शाह ने मुहम्मद शाह और निज़ाम की संयुक्त सेनाओं को हराया।

 

नादिर शाह ने दिल्ली में प्रवेश किया और वहां अपने सैनिकों को तैनात किया। दिल्ली के कुछ स्थानीय लोगों ने झगड़ा किया और उसके सैनिकों पर हमला कर दिया। इस पर नादिर शाह क्रोधित हो उठे, उन्होंने म्यान से अपनी तलवार निकाली और नगर को लूटने और लूटने का आदेश दिया। मुहम्मद शाह दिल्ली को तबाह होने से नहीं रोक पाए।

 

जब नादिर शाह ने दिल्ली में नरसंहार का आदेश दिया, तो तो असहाय मुगल सम्राट मोहम्मद शाह और ही उनके किसी मंत्री में नादिर शाह से बात करने और युद्धविराम के लिए बातचीत करने का साहस था।

 

केवल आसफ जाह ही आगे आए और अपनी जान जोखिम में डालकर नादिर शाह के पास गए और उनसे शहर के खूनखराबे को खत्म करने के लिए कहा . किंवदंती है कि आसफ जाह ने नादेर शाह से कहा

 

"तुमने शहर के हजारों लोगों की जान ले ली है, यदि आप अभी भी रक्तपात जारी रखना चाहते हैं, तो उन मृतकों को वापस जीवित करें और फिर उन्हें मार डालें, क्योंकि मारे जाने के लिए कोई नहीं बचा है।"

 

इन शब्दों का नादिर शाह पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा - उसने तुरंत अपनी तलवार उसकी म्यान के अंदर रख दी, नरसंहार को समाप्त कर दिया और फारस लौट आया

इस युद्ध के बाद ही मुगल बादशाह मोहम्मद शाह ने निज़ाम कोआसफजाका ख़िताब दिया और कई तोहफों से भी नवाज़ा.

इसके बाद इन्होंने हैदराबाद के आसफजाही राजवंश के पहले निज़ाम के तौर पर अपना कार्य भार संभाला.निज़ाम-उल-मुल्क ने सबसे पहले राजधानी औरंगाबाद को बदलकर हैदराबाद कर दिया और दक्कन प्रांत के सभी सूबों पर अपना अधिकार जमाना शुरू कर दिया.

 

बताया जाता है कि 1742 में ब्रिटिशों ने निज़ाम-उल-मुल्क को मुग़ल उत्तराधिकारी राज्य मद्रास का नेतृत्व करने का प्रस्ताव रखा, तो इन्होंने उनके अधीन शासन करने से इंकार कर दिया.

 

निज़ाम-उल-मुल्क आसफजाह प्रथम ने 1748 में बुरहानपुर रियासत में अंतिम सांस ली, जिसके बाद इन्हें औरंगाबाद के निकट खुलदाबाद में सुपुर्द--खाक कर दिया गया.

 

सात कुलचे:भविष्यवाणी ने बनाया निजाम हैदराबाद को बादशाह

दिल्ली दरबार की गंदी राजनीति से दुखी आसफ जाह इस नियुक्ति से काफी खुश था. आसफ जाह अपने अध्यात्मिक गुरु सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औरंगाबादी से मिलने गया.

 

पीर हजरत निजामुद्दीन ने आसफ जाह को खाने पर बुलाया, यहीं से ये कहानी आगे बढ़ती है. पीर ने आसफ जाह को एक पीले कपड़े में बंधा कुल्हड़ भेंट किया. जिसमें कुलचे थे. उस समय आसफ को भूख लगी हुई थी. उसने सात कुलचे खाए.

 

इसके बाद हजरत निजामुद्दीन ने उसे आशीर्वाद दिया. साथ ही भविष्यवाणी की कि एक दिन वो राजा बनेगा. साथ ही उसका वंश सात पीढ़ियों तक शासन करेगा.

 

सही निकली पीर की भविष्यवाणी

पीर की भविष्यवाणी जल्द ही सही निकली. दरअसल उस दौरान मुगल साम्राज्य काफी नाजुक दौर से गुजर रहा था. 1707 . में औरंगजेब का निधन हो गया था.

हैदराबाद साम्राज्य की स्थापना की

कमुरुद्दीन आसफ जाह ने खुद को दिल्ली की अधीनता से मुक्त करके 1724 . में हैदराबाद सल्तनत की नींव रखी. इस अवसर पर गुरु सूफी संत निजामुद्दीन को सम्मान देने के लिए उसने कुलचा अपना राज प्रतीक बनाया. जिस पीले कपड़े में पीर ने कुलचा दिया था, उसी रंग का आधिकारिक झंडा बनाया गया.

सात कुलचे:सात पीढ़ियों तक ही किया शासन

पीर की बात सही निकली. निजाम आजफ जाह वंश की सात पीढ़ियां ही हैदराबाद पर शासन कर पाईं


हैदराबाद के अंतिम सातवें निजाम सर उस्मान अली खान को अपनी रियासत का विलय नहीं चाहने के बाद भी भारतीय संघ के साथ करना पड़ा था. भारत के सैन्य आपरेशन के बाद निजाम ने हैदराबाद को भारत में मिलाने के पत्र पर हस्ताक्षर किए थे.

last-7Th Nizam of Hyderabad State-Sir Mir Osman Ali Khan
 

आसफ जाही शासक साहित्य, कला, वास्तुकला, संस्कृति, जवाहरात संग्रह और उत्तम भोजन के बड़े संरक्षक थे. निजाम ने हैदराबाद पर 17 सितम्बर 1948 तक शासन किया.

 

सबसे समृद्ध और बड़ी रियासत थी हैदराबाद

गौरतलब है कि भारत में विलय से पहले तक हैदराबाद सभी रियासतों का सबसे बड़ी और सबसे समृद्ध रियासत थी. 1941 की जनगणना के अनुसार हैदराबाद रियासत की कुल आबादी लगभग 16.34 मिलियन यानि 1.6 करोड़ के आसपास थी. इसका क्षेत्रफल 223,000 वर्ग किमी था.

The End

 











Saturday 16 April 2022

मारीना और ऊले की प्रेम कहानी:--दोनों चीन के महान दीवार के विपरीत छोरों से अलग-अलग चलना शुरू करने वाले थे. दीवार के बीचोबीच पहुँचने पर एक चीनी मंदिर में शादी होनी थी.

1976 में उनकी हुई उनकी पहली मुलाक़ात प्यार में तब्दील हुई. ऊले ने मारीना के भीतर किसी दूसरे संसार से आई मायाविनी को पाया. मारीना उसकी बेपरवाह आवारगी पर कुर्बान हुई.

Ulay and Marina Abramovic on great wall of China

एक दूसरे के लिए बने थे मारीना और ऊले. दोनों कलाकार थे. मारीना सर्बिया की थी ऊले जर्मनी का. ऊले तीन साल बड़ा था’. अगले बारह साल तक दोनों ने आधुनिक कला के क्षेत्र में बड़े और ऐतिहासिक प्रयोग किये.

 

दोनों परफ़ॉर्मेंस आर्टिस्ट थे और मिल कर काम करते थे और खुद को दो सिरों वाला एक शरीर बताया करते थे.

 

बरसों तक अपनी वैन में उन्होंने समूचे यूरोप भ्रमण किया और गाँव-गाँव जाकर अपनी कला का प्रदर्शन किया.

Marina Abramovic and Ulay

उनकी कला दर्शकों के सम्मुख इंसानी बर्दाश्त की हद को परखने का माध्यम हुआ करती थी. हकबकाए दर्शकों की प्रतिक्रिया भी इस कला को एक अलग आयाम दिया करती थी.

 

एक बार वे घंटों तक खिंचे हुए धनुष-बाण को थामे ऐसी मुद्रा में स्थिर खड़े रहे जिसमें दोनों की एक ज़रा सी चूक से तीर मारीना के दिल के आर-पार हो सकता था. एक और दफा उन्होंने अपने बालों को आपस में बांधा और सत्रह घंटे खड़े रहे.

 

उनके इस सम्बन्ध और उनकी जोखिम भरी कला को समूची दुनिया बहुत लाड़ दिया. संसार भर के आलोचक उनके हर नए प्रदर्शन की बेचैन प्रतीक्षा किया करते थे.

 

पहली मुलाक़ात के समय मारीना शादीशुदा थी. ऊले से मिलने के बाद उसने तलाक ले लिया था. सात साल साथ रहने के बाद उन्होंने अंततः शादी के बंधन में बंधने का निर्णय किया.

 

1983 में लिए गए इस निर्णय के साथ एक अनूठी बात जुड़ी हुई थी. दोनों प्रेमी चीन के महान दीवार के विपरीत छोरों से अलग-अलग चलना शुरू करने वाले थे. दीवार के बीचोबीच पहुँचने पर एक चीनी मंदिर में शादी होनी थी. इस काम में तकरीबन तीन माह का समय लगना था.

 

इस अतिमानवीय प्रोजेक्ट में उन्होंने प्रेमियों के साथ-साथ परफ़ॉर्मर और दर्शक दोनों का किरदार भी निभाना था. दुनिया भर के अखबारों ने इस ख़बर को छापा.

Marina Abramovic on Great Wall of China

 चीनी अधिकारियों की समझ में नहीं आया कि उनकी प्राचीन दीवार पर चलना आर्ट प्रोजेक्ट कैसे हो सकता है. उन्हें वीजा दिए जाने में इतने अड़ंगे लगे कि एक बार दोनों ने आजिज़ आकर अपने इरादे को छोड़ देने का निर्णय लेने की सोची. पांच साल बाद किसी तरह चीनी सरकार ने उनकी बात मान ली और अनेक शर्तों के साथ 30 मार्च 1988 को यात्रा शुरू हुई.

 

महान दीवार को चीन में सोया हुआ ड्रैगन कहा जाता है. हर रोज़ करीब बीस किलोमीटर चलने के बाद दोनों कभी दीवार में बन गए किसी छेद या किसी गुफा या नज़दीकी गाँव की झोपड़ी में सो जाते थे. कई बार उन्हें खुले आसमान के नीचे सोना पड़ता था.

 

गाँवों में सोने का अवसर मिलता तो वे उस गाँव के सबसे बूढ़े व्यक्ति से मिलते और कोई कहानी सुनाने को कहते. ये कहानियां अक्सर उसी सोये हुए ड्रैगन के बारे में हुआ करती थीं. रास्ता बहुत मुश्किल और दुर्गम था – दोनों कई बार जान से हाथ धोते-धोते बचे. एक बाद मारीना को दो किलोमीटर लम्बे एक ऐसे हिस्से से गुज़रना पड़ा जो मानव-अस्थियों से ढंका हुआ था.

 

आखिरकार करीब दो-दो हजार किलोमीटर पैदल चल चुकने के बाद मिंग साम्राज्य के समय में बनाए गए मंदिरों के एक परिसर में दोनों की मुलाक़ात हुई. दोनों ने एक दूसरे को गले से लगाया. ऊले ने कहा वह अनन्त काल तक वैसे ही चलता रहना चाहता है. मारीना जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहती थी. फिर वह रोने लगी.

 

मीडिया की चहलपहल के अलावा वहां शादी की पूरी तैयारियां भी थीं. दोनों ने एक प्रेस कांफ्रेंस की जिसके बाद वे बगैर शादी किए अलग-अलग रास्तों से एम्स्टर्डम को रवाना हो गए. उनकी अगली मुलाक़ात 22 सालों बाद हुई.

 

दरअसल चीनी दीवार की यात्रा शुरू होने में हुए पांच साल के विलम्ब के दौरान दोनों के जीवन पूरी तरह बदल चुके थे.

 

दोनों के अलग-अलग प्रेम सम्बन्ध बन गए थे. उनके काम को दुनिया में नाम और पैसा मिल रहा था – मारीना को नया जीवन चाहिए था ऊले पुराने तरीक़े से आवारगी करने का हिमायती था.

 

दोनों जानते थे कि उनका सम्बन्ध समाप्त हो चुका था लेकिन उन्होंने फैसला किया कि यात्रा हर हाल में की जाएगी चाहे उसका उद्देश्य सदा के लिए एक दूसरे का हो जाने के बजाय बिछड़ जाना क्यों न हो.

 

इस दास्तान का अगला मोड़ बाईस साल बाद देखने को मिला.

न्यूयॉर्क के म्यूजियम ऑफ़ मॉडर्न आर्ट में मारीना का शो – ‘द आर्टिस्ट इज प्रेजेंट – चल रहा था. मारीना हर दिन आठ घंटे एक मेज के सामने कुर्सी डाले बैठी रहती थी.

 

लोग उसके सामने आकर बैठते और जब तक संभव हो उससे नजरें मिलाये रहते. मारीना की आँखें बगैर किसी भावना के उन्हें देखती रहतीं. दोनों के बीच दो मीटर का फासला हुआ करता. एक दूसरे को छूने की मनाही थी. यह शो करीब चार माह तक चला और मारीना ने साढ़े सात सौ घंटे इस तरह बिताए.

 

हर बार नए दर्शक के बैठने से पहले मारीना आँखें मूंद लेती थी. वह ऐसे ही बैठी थी जब उसके शो के बारे में सुन कर कहीं से ऊले भी वहां पहुंचा और मारीना के सामने बैठ गया.

Mariana and Ulay sit opposite each other in 2010

मारीना अब्रामोविच आँखें खोलती है. 22 साल बाद सामने बैठे फ्रैंक उव लेसीपेन उर्फ़ ऊले को देखती है. उसकी आँखों में एक हरकत होती है, वह हलके से मुस्कराती है और उसके कोरों पर एक आंसू अटक कर रह जाता है. एक-डेढ़ मिनट के उस दृश्य को शब्दों में बयान करने नामुमकिन है

THE great Artist Ulay was born 30 November 1943 In Germany

फिर वह अपना ही बनाया नियम तोड़ती है और आगे की तरफ झुक कर ऊले के हाथ थाम लेती है. 2020 में ऊले के मरने तक मारीना उसके साथ रही.

 

बिना आंसू बहाए इस पल को देखना असंभव है। अपनी कठिन यात्रा और लंबे समय तक अलग रहने के बाद, वे आखिरकार फिर से मिल जाते हैं। एक नया अजगर जाग गया है। आत्मीयता फिर से जागृत हो जाती है।

Mariana Abramovic was born 30 November 1946 in Belgrade-Serbia

जबकि उनका अलगाव एक विकल्प था, हमारा - अभी के लिए - एक आवश्यकता बनी हुई है। समय के साथ, शारीरिक अंतरंगता हम सभी के पास वापस जाएगी। और इसके साथ, शायद, हम सभी के लिए एक नया अजगर जगाने का अवसर।

The End

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