Friday 5 August 2022

हतक: अलीगढ वाले मंटो की एक कहानी "प्यार के दो बोल के लिए तरसती बे-सहारा ”सौगंधी” की कहानी जो अपमान की पराकाष्ठा पर पहुंच कर आत्मज्ञान से दो-चार होती है।

दिन भर की थकी माँदी वो अभी अभी अपने बिस्तर पर लेटी थी और लेटते ही सो गई। म्युनिसिपल कमेटी का दारोगा सफ़ाई, जिसे वो सेठ जी के नाम से पुकारा करती थी। अभी अभी उस की हड्डियां पसलियां झिंझोड़ कर शराब के नशे में चूर, घर वापस गया था.... वो रात को यहीं पर ठहर जाता मगर उसे अपनी धर्म पत्नी का बहुत ख़याल था। जो उस से बेहद प्रेम करती थी।

 

वो रुपय जो उस ने अपनी जिस्मानी मशक़्क़त के बदले उस दारोगा से वसूल किए थे, उस की चुस्त और थूक भरी चोली के नीचे से ऊपर को उभरे हुए थे। कभी कभी सांस के उतार चढ़ाओ से चांदी के ये सिक्के खनखनाने लगते।

 

और उस की खनखनाहट उस के दिल की ग़ैर-आहंग धड़कनों में घुल मिल जाती। ऐसा मालूम होता कि इन सिक्कों की चांदी पिघल कर उस के दिल के ख़ून में टपक रही है!

 

उस का सीना अंदर से तप रहा था। ये गर्मी कुछ तो इस ब्रांडी के बाइस थी जिस का अद्धा दरोग़ा अपने साथ लाया था। और कुछ इसबियोड़ाका नतीजा थी जिस का सोडा ख़त्म होने पर दोनों ने पानी मिला कर पिया था।

 

वो सागवान के लंबे और चौड़े पलंग पर औंधे मुँह लेटी थी। उस की बाहें जो काँधों तक नंगी थीं, पतंग की उस काँप की तरह फैली हुई थीं जो ओस में भीग जाने के बाइस पतले काग़ज़ से जुदा हो जाये। 


दाएं बाज़ू की बग़ल में शिकन आलूद गोश्त उभरा हुआ था। जो बार बार मूंडने के बाइस नीली रंगत इख़्तियार कर गया था। जैसे नुची हुई मुर्ग़ी की खाल का एक टुकड़ा वहां पर रख दिया गया है।

 

कमरा बहुत छोटा था जिस में बेशुमार चीज़ें बेतर्तीबी के साथ बिखरी हुई थीं। तीन चार सूखे सड़े चप्पल पलंग के नीचे पड़े थे जिन के ऊपर मुँह रख कर एक ख़ारिश ज़दा कुत्ता सो रहा था।

 

और नींद में किसी ग़ैर मरई चीज़ को मुँह चिड़ा रहा था। उस कुत्ते के बाल जगह जगह से ख़ारिश के बाइस उड़े हुए थे। दूर से अगर कोई उस कुत्ते को देखता। तो समझता कि पैर पोंछने वाला पुराना टाट दोहरा करके ज़मीन पर रख्खा है।

 

इस तरफ़ छोटे से दीवार गीर पर सिंगार का सामान रखा था। गालों पर लगाने की सुर्ख़ी, होंटों की सुर्ख़ बत्ती, पाउडर, कंघी और लोहे के पिन जो वो ग़ालिबन अपने जूड़े में लगाया करती थी। पास ही एक लंबी खूंटी के साथ सबज़ तोते का पिंजरा लटक रहा था।

 

जो गर्दन को अपनी पीठ के बालों में छुपाए सो रहा था। पिंजरा कच्चे अमरूद के टुकड़ों और गले हुए सन्गतरे के छिलकों से भरा पड़ा था। इन बदबूदार टुकड़ों पर छोटे छोटे काले रंग के मच्छर या पतंग उड़ रहे थे।

 

पलंग के पास ही बेद की एक कुर्सी पड़ी थी। जिस की पुश्त सर टेकने के बाइस बेहद मैली होरही थी। उस कुर्सी के दाएं हाथ को एक ख़ूबसूरत तिपाई थी जिस पर हज़ मास्टर ज़वाइस का पोर्ट एबल ग्रामोफोन पड़ा था, उस ग्रामोफोन पर मंढे हुए काले कपड़े की बहुत बुरी हालत थी।

 

ज़ंग-आलूद सोईयां तिपाई के इलावा कमरे के हर कोने में बिखरी हुई थीं। इस तिपाई के ऐन ऊपर दीवार पर चार फ़्रेम लटक रहे थे। जिन में मुख़्तलिफ़ आदमियों की तस्वीरें जुड़ी थीं।

 

इन तस्वीरों से ज़रा हट कर यानी दरवाज़े में दाख़िल होते ही बाएं तरफ़ की दीवार के कोने में गणेश जी की शोख़ रंग की तस्वीर जो ताज़ा और सूखे हुए फूलों से लदी हुई थी। शायद ये तस्वीर कपड़े के किसी थान से उतार कर फ़्रेम में जड़ाई गई थी।

 

इस तस्वीर के साथ छोटे से दीवार गीर पर जो कि बेहद चिकना होरहा था, तेल की एक प्याली धरी थी। जो दिए को रोशन करने के लिए रखी गई थी। पास ही दिया पड़ा था। जिस की लौ हवा बंद होने के बाइस माथे के मानिंद सीधी खड़ी थी। उस दीवार गीर पर रूई की छोटी बड़ी मरोड़ियाँ भी पड़ी थीं।

 

जब वो बोहनी करती थी तो दूर से गणेश जी की इस मूर्ती से रुपय छुवा कर और फिर अपने माथे के साथ लगा कर उन्हें अपनी चोली में रख लिया करती थी। उस की छातियां चूँकि काफ़ी उभरी हुई थीं इस लिए वो जितने रुपय भी अपनी चोली में रखती महफ़ूज़ पड़े रहते थे।

 

अलबत्ता कभी कभी जब माधव पूने से छुट्टी लेकर आता तो उसे अपने कुछ रुपय पलंग के पाए के नीचे इस छोटे से गढ़े में छुपाना पड़ते थे। जो उस ने ख़ास इस काम की ग़रज़ से खोदा था। माधव से रुपय महफ़ूज़ रखने का ये तरीक़ा सौगंधी को राम लाल दलाल ने बताया था। उस ने जब ये सुना कि माधव पूने से आकर सौगंधी पर धावे बोलता है तो कहा था.... “इस साले को तू ने कब से यार बनाया है? ....... ये बड़ी अनोखी आशिक़ी माशूक़ी है।

  

एक पैसा अपनी जेब से निकालता नहीं और तेरे साथ मज़े उड़ाता रहता है, मज़े अलग रहे, तुझ से कुछ ले भी मरता है.... सौगंधी! मुझे कुछ दाल में काला नज़र आता है। इस साले में कुछ बात ज़रूर है। जो तुझे भा गया है.... सात साल.... से ये धंदा कर रहा हूँ। तुम छोकरियों की सारी कमज़ोरियां जानता हूँ।

 

ये कह कर राम लाल दलाल ने जो बंबई शहर के मुख़्तलिफ़ हिस्सों से दस रुपय से ले कर सौ रुपय तक वाली एक सौ बीस छोकरियों का धंदा करता था।सौगंधी को बताया.......साली अपना धन यूं ना बर्बाद कर....तेरे अंग पर से ये कपड़ा भी उतार कर ले जाएगा।

 

वो तेरी माँ का यार....... इस पलंग के पाए के नीचे छोटा सा गढ़ा खोद कर इस में सारे पैसे दबा दिया कर और जब वो यार आया करे तो उस से कहा कर.... तेरी जान की क़सम माधव, आज सुबह से एक धेले का मुँह नहीं देखा।

 

बाहर वाले से कह कर एक कप चाय और अफ़लातून बिस्कुट तो मंगा। भूक से मेरे पेट में चूहे दौड़ रहे हैं.... समझीं! बहुत नाज़ुक वक़्त आगया है मेरी जान.... इस साली कांग्रस ने शराब बंद करके बाज़ार बिलकुल मंदा कर दिया है।

Sadat Hasan Manto

पर तुझे तो कहीं कहीं से पीने को मिल ही जाती है, भगवान की क़सम, जब तेरे यहां कभी रात की ख़ाली की हुई बोतल देखता हूँ और दारू की बॉस सूँघता हूँ तो जी चाहता है तेरी जून में चला जाऊं।

 

सौगंधी को अपने जिस्म में सब से ज़्यादा अपना सीना पसंद था। एक बार जमुना ने उस से कहा था।नीचे से इन बंब के गोलों को बांध के रखा कर, अंगया पहनेगी तो इन की सख्ताई ठीक रहेगी।

 

सौगंधी ये सुन कर हंस दी।जमुना तू सब को अपने मरी का समझती है। दस रुपय में लोग तेरी बोटियां तोड़ कर चले जाते हैं। तू तो समझती है कि सब के साथ भी ऐसा ही होता होगा.... कोई मोवा लगाए तो ऐसी वैसी जगह हाथ.... अरे हाँ,

 

कल की बात तुझे सुनाऊं राम लाल रात के दो बजे एक पंजाबी को लाया। रात का तीस रुपय तय हुआ.... जब सोने लगे तो मैंने बत्ती बुझा दी.... अरे वो तो डरने लगा.... सुनती हो जमुना? तेरी क़सम

 

अंधेरा होते ही उस का सारा ठाठ किर किरा होगया... वो डर गया! मैंने कहा चलो चलो देर क्यों करते हो। तीन बजने वाले हैं, अब दिन चढ़ आएगा.... बोला.... रौशनी करो.... रौशनी करो.... मैंने कहा, ये रौशनी क्या हुआ.... बोला लाईट.... लाईट! .... उस की भींची हुई आवाज़ सुन कर मुझ से हंसी रुकी।

 

 भई मैं तो लाईट करूंगी!.......” और ये कह कर मैंने उस की गोश्त भरी रान की चुटकी ली.... तड़प कर उठ बैठा और लाईट ओन करदी मैंने झट से चादर ओढ़ ली, और कहा, तुझे शर्म नहीं आती मर्दवे! ....... वो पलंग पर आया तो मैं उठी और लपक कर लाईट बुझा दी... वो फिर घबराने लगा....तेरी क़सम बड़े मज़े में रात कटी,

 

कभी अंधेरा कभी उजाला, कभी उजाला, कभी अंधेरा.... ट्राम की खड़खड़ हुई तो पतलून--तलव्वुन पहन कर वो उठ भागा.... साले ने तीस रुपय सट्टे में जीते होंगे। जो यूं मुफ़्त दे गया.... जमुना तू बिलकुल अल्हड़ है। बड़े बड़े गुर याद हैं मुझे इन लोगों को ठीक करने के लिए!”

 

सौगंधी को वाक़ई बहुत से गुर याद थे जो उस ने अपनी एक दो सहेलियों को बताए भी थे। आम तौर पर वो ये गुर सब को बताया करती थी .... “अगर आदमी शरीफ़ हो, ज़्यादा बातें करने वाला हो तो उस से ख़ूब शरारतें करो, अन-गिनत बातें करो।

 

उसे छेड़ो सताओ, उस के गुदगुदी करो। उस से खेलो.... अगर दाढ़ी रखता हो तो उस में उंगलियों से कंघी करते करते दो चार बाल भी नोच लो पेट बड़ा हो तो थपथपाओ.... उस को इतनी मोहलत ही दो कि अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ कुछ करने पाए.... वो ख़ुश ख़ुश चला जाएगा और रक़म भी बची रहेगी .... ऐसे मर्द जो गुपचुप रहते हैं बड़े ख़तरनाक होते हैं बहन.... हड्डी पसली तोड़ देते हैं अगर इन का दाव चल जाये।

सौगंधी इतनी चालाक नहीं थी जितनी ख़ुद को ज़ाहिर करती थी। उस के गाहक बहुत कम थे ग़ायत दर्जा जज़्बाती लड़की थी। यही वजह है कि वो तमाम गुर जो उसे याद थे उस के दिमाग़ से फिसल कर उस के पेट में आजाते थे जिस पर एक बच्चा पैदा करने के बाइस कई लकीरें पड़ गई थीं .... इन लकीरों को पहली मर्तबा देख कर उसे ऐसा लगा था कि उस के ख़ारिश ज़दा कुत्ते ने अपने पंजे से ये निशान बना दिए हैं।

 

सौगंधी दिमाग़ में ज़्यादा रहती थी लेकिन जूंही कोई नर्म नाज़ुक बात.... कोई कोमल बोली.... उस से कहता तो झट पिघल कर वो अपने जिस्म के दूसरे हिस्सों में फैल जाती। गो मर्द और औरत के जिस्मानी मिलाप को उस का दिमाग़ बिलकुल फ़ुज़ूल समझता था।

 

मगर उस के जिस्म के बाक़ी आज़ा सब के सब इस के बहुत बुरी तरह क़ाइल थे! वो थकन चाहते थे.... ऐसी थकन जो उन्हें झिंझोड़ कर.... उसे मारकर सुलाने पर मजबूर करदे! ऐसी नींद जो थक कर चूर चूर हो जाने के बाद आए, कितनी मज़ेदार होती है....... वो बेहोशी जो मार खा कर बंद बंद ढीले हो जाने पर तारी होती है, कितना आनंद देती है!....

 

कभी ऐसा होता है कि तुम हो और कभी ऐसा मालूम होता है कि तुम नहीं और इस होने और होने के बीच में कभी कभी ऐसा भी महसूस होता है कि तुम हवा में बहुत ऊंची जगह लटकी हुई हो।ऊपर हवा, नीचे हवा, दाएं हवा, बाएं हवा, बस हवा ही हवा ! और फिर इस हवा में दम घुटना भी एक ख़ास मज़ा देता है।

 

बचपन में जब वो आंखमिचौली खेला करती थी, और अपनी माँ का बड़ा संदूक़ खोल कर उस में छुप जाया करती थी, तो नाकाफ़ी हवा में दम घुटने के साथ साथ पकड़े जाने के ख़ौफ़ से वो तेज़ धड़कन जो इस के दिल में पैदा होजाया करती थी कितना मज़ा दिया करती थी।

 

सौगंधी चाहती थी कि अपनी सारी ज़िंदगी किसी ऐसे ही संदूक़ में छुप कर गुज़ार दे। जिस के बाहर ढ़ूढ़ने वाले फिरते रहें। कभी कभी उस को ढूंढ निकालें ताकि वो कभी उन को ढ़ूढ़ने की कोशिश करे! ये ज़िंदगी जो वो पाँच बरस से गुज़ार रही थी आंखमिचौली ही तो थी!.... कभी वो किसी को ढूंढ लेती थी और कभी कोई उसे ढूंढ लेता था....

 

बस यूंही उस का जीवन बीत रहा था। वो ख़ुश थी इस लिए कि उस को ख़ुश रहना पड़ता था। हर रोज़ रात को कोई कोई मर्द उस के चौड़े सागवानी पलंग पर होता था और सौगंधी जिस को मर्दों के ठीक करने के लिए बेशुमार गुर याद थे।

 

इस बात का बार बार तहय्या करने पर भी कि वो उन मर्दों की कोई ऐसी वैसी बात नहीं मानेगी। और उन के साथ बड़े रूखेपन के साथ पेश आएगी। हमेशा अपने जज़्बात के धारे में बह जाया करती थी और फ़क़त एक प्यासी औरत रह जाया करती थी!

 

हर रोज़ रात को उस का पुराना या नया मुलाक़ाती उस से कहा करता था।सौगंधी मैं तुझ से प्रेम करता हूँ।और सौगंधी ये जानबूझ कर भी कि वो झूट बोलता है बस मोम हो जाती थी और ऐसा महसूस करती थी जैसे सचमुच उस से प्रेम किया जा रहा है.......प्रेम....... कितना सुंदर बोल है!

 

वो चाहती थी, उस को पिघला कर अपने सारे अंगों पर मल ले उस की मालिश करे ताकि ये सारे का सारा उस के मुसामों में रच जाये.... या फिर वो ख़ुद उस के अन्दर चली जाये।

 

सिमट सिमटा कर उस के अंदर दाख़िल हो जाये और ऊपर से ढकना बंद करदे। कभी कभी जब प्रेम किए जाने का जज़्बा उस के अंदर बहुत शिद्दत इख़्तियार कर लेता तो कई बार उस के जी में आता कि अपने पास पड़े हुए आदमी को गोद ही में लेकर थपथपाना शुरू करदे और लोरियां दे कर उसे गोद ही में सुला दे।

 

प्रेम कर सकने की अहलियत उस के अंदर इस क़दर ज़्यादा थी कि हर उस मर्द से जो उस के पास आता था। वो मोहब्बत कर सकती थी। और फिर उस को निबाह भी सकती थी। अब तक चार मर्दों से अपना प्रेम निबाह ही तो रही थी जिन की तस्वीरें इस के सामने दीवार पर लटक रही थीं।

 

हर वक़्त ये एहसास उस के दिल में मौजूद रहता था कि वो बहुत अच्छी है लेकिन ये अच्छा पन मर्दों में क्यों नहीं होता। ये बात उस की समझ में नहीं आती थी.... एक बार आईना देखते हुए बेइख़्तियार उस के मुँह से निकल गया था.... “सौगंधी.... तुझ से ज़माने ने अच्छा सुलूक नहीं किया!”

 

ये ज़माना यानी पाँच बरसों के दिन और उन की रातें, उस के जीवन के हर तार के साथ वाबस्ता थे। गो उस ज़माने से उस को ख़ुशी नसीब नहीं हुई थी जिस की ख़्वाहिश उस के दिल में मौजूद थी। ताहम वो चाहती थी कि यूंही उस के दिन बीतते चले जाएं, उसे कौन से महल खड़े करना थे जो रुपय पैसे का लालच करती।

 

दस रुपय उस का आम नर्ख़ था जिस में से ढाई रुपय राम लाल अपनी दलाली के काट लेता था। साढ़े सात रुपय उसे रोज़ मिल ही जाया करते थे जो उस की अकेली जान के लिए काफ़ी थे।

 

और माधव जब पूने से बाक़ौल राम लाल दलाल, सौगंधी पर धावे बोलने के लिए आता था तो वो दस पंद्रह रुपय ख़राज भी अदा करती थी! ये ख़राज सिर्फ़ इस बात का था कि सौगंधी को उस से कुछ वो होगया था।

 

राम लाल दलाल ठीक कहता था उस में ऐसी बात ज़रूर थी जो सौगंधी को बहुत भा गई थी। अब उस को छुपाना क्या! बता ही क्यों नहीं दें!.... सौगंधी से जब माधव की पहली मुलाक़ात हुई तो उस ने कहा था।तुझे लाज नहीं आती अपना भाव करते!

 

जानती है तू मेरे साथ किस चीज़ का सौदा कर रही है ....... और मैं तेरे पास क्यों आया हूँ?....... छी छी छी ....... दस रुपय और जैसा कि तो कहती है ढाई रुपय दलाल के, बाक़ी रहे साढ़े सात, रहे ना साढ़े सात?....... अब इन साढ़े सात रूपों पर तू मुझे ऐसी चीज़ देने का वचन देती है जो तू दे ही नहीं सकती और मैं ऐसी चीज़ लेने आया।

 

जो मैं ले ही नहीं सकता .... मुझे औरत चाहिए पर तुझे क्या उस वक़्त उसी घड़ी मर्द चाहिए?....... मुझे तो कोई औरत भी भा जाएगी पर क्या मैं सतझे जचता हूँ!....... तेरा मेरा नाता ही किया है कुछ भी नहीं.... बस ये दस रुपय, जिन में से ढाई रुपय दलाल में चले जाऐंगे और बाक़ी इधर उधर बिखर जाऐंगे, तेरे और मेरे बीच में बज रहे हैं.... तो भी इन का बजना सुन रही है और मैं भी।

 

तेरा मन कुछ और सोचता है मेरा मन कुछ और....क्यों ना कोई ऐसी बात करें कि तुझे मेरी ज़रूरत हो और मुझे तेरी.... पूने में हवालदार हूँ, महीने में एक बार आया करूंगा। तीन चार दिन के लिए.... ये धंदा छोड़.... मैं तुझे ख़र्च दे दिया करूंगा.... क्या भाड़ा है इस खोली का....?”

 

माधव ने और भी बहुत कुछ कहा था जिस का असर सौगंधी पर इस क़दर ज़्यादा हुआ था कि वो चंद लम्हात के लिए ख़ुद को हवालदारनी समझने लगी थी। बातें करने के बाद माधव ने उस के कमरे की बिखरी हुई चीज़ें करीने से रखी थीं और नंगी तस्वीरें जो सौगंधी ने अपने सिरहाने लटका रखी थीं, बिना पूछे गच्छे फाड़ दी थीं।

 

और कहा था.... “सौगंधी भई मैं ऐसी तस्वीरें यहां नहीं रखने दूंगा.... और पानी का ये घड़ा .... देखना कितना मेला है और ये.... ये चीथड़े.... ये चन्दीयाँ.... उफ़ कितनी बुरी बॉस आती है, उठा के बाहर फेंक इन को.... और तू ने अपने बालों का सत्यानास कर रखा है.... और.... और....

 

तीन घंटे की बातचीत के बाद सौगंधी और माधव आपस में घुल मिल गए थे और सौगंधी को तो ऐसा महसूस हुआ था कि बरसों से हवालदार को जानती है, उस वक़्त तक किसी ने भी कमरे में बदबूदार चीथड़ों, मैले घड़े और नंगी तस्वीरों की मौजूदगी का ख़याल नहीं किया था और कभी किसी ने उस को ये महसूस करने का मौक़ा दिया था कि उस का एक घर है जिस में घरेलू पन आसकता है।

 

लोग आते थे और बिस्तर तक ग़लाज़त को महसूस किए बग़ैर चले जाते थे। कोई सौगंधी से ये नहीं कहता था।देख तो आज तेरी नाक कितनी लाल हो रही है कहीं ज़ुकाम हो जाये तुझे.... ठहर में तेरे वास्ते दवा लाता हूँ।माधव कितना अच्छा था उस की हर बात बावन तौला और पाओ रत्ती की थी। क्या खरी खरी सुनाई थीं उस ने सौगंधी को....... उसे महसूस होने लगा कि उसे माधव की ज़रूरत है। चुनांचे इन दोनों का संबंध हो गया।

 

महीने में एक बार माधव पूने से आता था और वापस जाते हुए हमेशा सौगंधी से कहा करता था।देख सौगंधी! अगर तू ने फिर से अपना धंदा शुरू किया। तो बस तेरी मेरी टूट जाएगी.... अगर तू ने एक बार भी किसी मर्द को अपने यहां ठहराया तो चुटिया से पकड़ कर बाहर निकाल दूंगा....... देख इस महीने का ख़र्च मैं तुझे पूना पहुंचते ही मनी आर्डर कर दूँगा....... हाँ क्या भाड़ा है इस खोली का...... ”

 

माधव ने कभी पूना से ख़र्च भेजा था और सौगंधी ने अपना धंदा बंद किया था। दोनों अच्छी तरह जानते थे कि क्या होरहा है। सौगंधी ने कभी माधव से ये कहा था कितू ये क्या टरटर किया करता है, एक फूटी कौड़ी भी दी है कभी तू ने?”

 

और माधव ने कभी सौगंधी से पूछा था।ये माल तेरे पास कहाँ से आता है जब कि मैं तुझे कुछ देता ही नहीं.......” दोनों झूटे थे। दोनों एक मुलम्मा की हुई ज़िंदगी बसर कर रहे थे....... लेकिन सौगंधी ख़ुश थी जिस को असल सोना मिले वो मुलम्मा किए हुए गहनों ही पर राज़ी हो जाया करता है।

 

इस वक़्त सौगंधी थकी माँदी सो रही थी। बिजली का क़ुमक़ुमा जिसे औफ़ करना वो भूल गई थी उस के सर के ऊपर लटक रहा था। उस की तेज़ रौशनी उस की मंदी हुई आँखों के सामने टकरा रही थी। मगर वो गहरी नींद सो रही थी।

 

दरवाज़े पर दस्तक हुई.... रात के दो बजे ये कौन आया था? सौगंधी के ख़्वाब आलूद कानों में दस्तक भुनभुनाहट बन कर पहुंची। दरवाज़ा जब ज़ोर से खटखटाया गया तो चौंक कर उठ बैठी.... दो मिली जुली शराबों और दाँतों के रेखों में फंसे हुए मछली के रेज़ों ने उस के मुँह के अंदर ऐसा लुआब पैदा कर दिया था जो बेहद कसैला और लेसदार था।

 

धोती के पल्लू से उस ने ये बदबूदार लुआब साफ़ किया और आँखें मलने लगी। पलंग पर वो अकेली थी। झुक कर इस ने पलंग के नीचे देखा तो उस का कुत्ता सूखे हुए चप्पलों पर मुँह रखे सो रहा था और नींद में किसी ग़ैर मरई चीज़ को मुँह चिड़ रहा था और तोता पीठ के बालों में सर दिए सोरहा था।

 

दरवाज़े पर दस्तक हुई। सौगंधी बिस्तर पर से उठी। सर दर्द के मारे फटा जा रहा था। घड़े से पानी का एक डोंगा निकाल कर इस ने कुल्ली की। और दूसरा डोंगा गटा गट पी कर उस ने दरवाज़े का पट थोड़ा सा खोला और कहा।राम लाल?”

 

राम लाल जो बाहर दस्तक देते हुए थक गया था। भुन्ना कर कहने लगा।तुझे साँप सूंघ गया था या क्या होगया था। एक क्लाक(घंटे) से बाहर खड़ा दरवाज़ा खटखटा रहा हूँ कहाँ मर गई थी?....... ” फिर आवाज़ दबा कर उस ने हौले से कहा।अंदर कोई है तो नहीं?”

 

जब सौगंधी ने कहा।नहीं....... ” तो राम लाल की आवाज़ फिर ऊंची होगई।तू दरवाज़ा क्यों नहीं खोलती?.... भई हद होगई है क्या नींद पाई है। यूं एक एक छोकरी उतारने में दो दो घंटे सर खपाना पड़े तो मैं अपना धंदा कर चुका.... अब तू मेरा मुँह क्या देखती है।

 

झटपट ये धोती उतार कर वह फूलों वाली साड़ी पहन, पावडर वावडर लगा और चल मेरे साथ.... बाहर मोटर में एक सेठ बैठे तेरा इंतिज़ार कर रहे हैं.... चल चल एक दम जल्दी कर।

 

सौगंधी आराम--कुर्सी पर बैठ गई और राम लाल आईने के सामने अपने बालों में कंघी करने लगा।सौगंधी ने तिपाई की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाया और बाम की शीशी उठा कर इस का ढकना खोलते हुए कहा।राम लाल आज मेरा जी अच्छा नहीं।

 

राम लाल ने कंघी दीवार गीर पर रख दी और मुड़ कर कहा।तो पहले ही कह दिया होता।सौगंधी ने माथे और कनपटियों पर बाम से छूते हुए ग़लत-फ़हमी दूर करदी।

 

वो बात नहीं राम लाल!.... ऐसे ही मेरा जी अच्छा नहीं.... बहुत पी गई।राम लाल के मुँह में पानी भर आया।थोड़ी बची हो तो ला.... ज़रा हम भी मुँह का मज़ा ठीक कर लें।

 

सौगंधी ने बाम की शीशी तिपाई पर रख दी और कहा।बचाई होती तो ये मूवा सर में दर्द ही क्यों होता.... देख राम लाल! वो जो बाहर मोटर में बैठा है उसे अंदर ही ले आओ।

 

राम लाल ने जवाब दिया।नहीं भई वो अंदर नहीं सकते। जैंटलमैन आदमी हैं। वो तो मोटर को गली के बाहर खड़ी करते हुए घबराते थे.... तू कपड़े वपड़े पहन ले और ज़रा गली के नुक्कड़ तक चल.... सब ठीक हो जाएगा।

 

साढ़े सात रुपय का सौदा था। सौगंधी इस हालत में जब कि उस के सर में शिद्दत से दर्द हो रहा था। कभी क़बूल करती मगर उसे रूपों की सख़्त ज़रूरत थी। उस की साथ वाली खोली में एक मद्रासी औरत रहती थी जिस का ख़ाविंद मोटर के नीचे आकर मर गया था।

 

उस औरत को अपनी जवान लड़की समेत वतन जाना था। लेकिन उस के पास चूँकि किराया ही नहीं था इस लिए वो कसमपुर्सी की हालत में पड़ी थी। सौगंधी ने कल ही उस को ढारस दी थी और उस से कहा था।बहन तू चिंता कर। मेरा मर्द पूने से आने ही वाला है मैं उस से कुछ रुपय ले कर तेरे जाने का बंद--बस्त कर दूँगी।

 

माधव पूना से आने वाला था। मगर रूपों का बंद--बस्त तो सौगंधी ही को करना था। चुनांचे वो उठी और जल्दी जल्दी कपड़े तबदील करने लगी। पाँच मिनटों में उस ने धोती उतार कर फूलों वाली साड़ी पहनी और गालों पर सुर्ख़ पोडर लगा कर तैय्यार होगई। घड़े के ठंडे पानी का एक और डोंगा पिया और राम लाल के साथ हो ली।

 

गली जो कि छोटे शहरों के बाज़ार से भी कुछ बड़ी थी। बिलकुल ख़ामोश थी गैस के वो लैम्प जो खंबों पर जड़े थे पहले की निसबत बहुत धुँदली रौशनी दे रहे थे। ज़ंग के बाइस उन के शीशों को गदला कर दिया गया था। इस अंधी रौशनी में गली के आख़िरी सिरे पर एक मोटर नज़र रही थी।

 

कमज़ोर रौशनी में इसे स्याह रंग की मोटर का साया सा नज़र आया और रात के पिछले पहर की भेदों भरी ख़ामोशी.... सौगंधी को ऐसा लगा कि उसके सर का दर्द फ़िज़ा पर भी छा गया है। एक कसैला पन उसे हुआ के अंदर भी महसूस होता था जैसे ब्रांडी और बेवड़ा की बॉस से वो बोझल हो रही है।

 

आगे बढ़ कर राम लाल ने मोटर के अंदर बैठते हुए आदमियों से कुछ कहा। इतने में जब सौगंधी मोटर के पास पहुंच गई तो राम लाल ने एक तरफ़ हट कर कहा।लीजिए वो गई।

 

बड़ी अच्छी छोकरी है थोड़े ही दिन हुए हैं इसे धंदा शुरू किए।फिर सौगंधी से मुख़ातब हो कर कहा।सौगंधी, इधर आओ सेठ जी बुलाते हैं।

 

सौगंधी साड़ी का एक किनारा अपनी उंगली पर लपेटती हुई आगे बढ़ी और मोटर के दरवाज़े के पास खड़ी होगई। सेठ साहिब ने बैट्री इस के चेहरे के पास रौशन की। एक लम्हे के लिए इस रौशनी ने सौगंधी की ख़ुमारआलूद आँखों में चकाचोंद पैदा की। बटन दबाने की आवाज़ पैदा हुई और बुझ गई। साथ ही सेठ के मुँह सेऊंहनिकला। फिर एक मोटर का इंजन फड़फड़ाया और कार यह जा वो जा.......

 

सौगंधी कुछ सोचने भी पाई थी कि मोटर चल दी। उस की आँखों में अभी तक बैट्री की तेज़ रौशनी घुसी हुई थी। वो ठीक तरह से सेठ का चेहरा भी तो देख सकी थी। ये आख़िर हुआ किया था। इस ऊंह का क्या मतलब था। जो अभी तक इस के कानों में भिनभिना रही थी। किया? ....... किया?

 

राम लाल दलाल की आवाज़ सुनाई दी।पसंद नहीं क्या तुझे। दो घंटे मुफ़्त में ही बर्बाद किए।

 

ये सुन कर सौगंधी की टांगों में, उस की बाँहों में, उस के हाथों में एक ज़बरदस्त हरकत का इरादा पैदा हुआ। कहाँ थी वो मोटर .... कहाँ था वो सेठ.... तो ऊंह का मतलब ये था कि उस ने मुझे पसंद नहीं किया....उस की....

 

गाली इस के पेट के अंदर उठी और ज़बान की नोक पर आकर रुक गई। वो आख़िर गाली किसे देती, मोटर तो जा चुकी थी। उस की दुम की सुर्ख़ बत्ती इस के सामने बाज़ार के अंधियारे में डूब रही थी। और सौगंधी को ऐसा महसूस होरहा था कि ये लाल लाल अंगारा ऊंह है जो उस के सीने में बर्मे की तरह उतरा चला जा रहा है। उस के जी में आया के ज़ोर से पुकारे। सेठ। ज़रा मोटर रोकना अपनी.... बस एक मिनट के लिए।

 

वो सुनसान बाज़ार में खड़ी थी। फूलों वाली साड़ी जो वो ख़ास ख़ास मौक़ों पर पहना करती थी रात के पिछले पहर की हल्की हल्की हवा से लहरा रही थी। ये साड़ी और उस की रेशमी सरसराहट सौगंधी को कितनी बुरी मालूम होती थी। वो चाहती थी कि इस साड़ी के चीथड़े उड़ा दे। क्योंकि साड़ी हवा में लहरा लहरा कर ऊंह ऊंह कर रही थी।

 

गालों पर उस ने पावडर लगाया था और होंटों पर सुर्ख़ी। जब उसे ख़याल आया कि ये सिंगार उस ने अपने आप को पसंद कराने के वास्ते किया था तो शर्म के मारे उसे पसीना आगया। ये शर्मिंदगी दूर करने के लिए उस ने कुछ सोचा....मैंने इस मूये को दिखाने के लिए थोड़ी अपने आप को सजाया था।

 

ये तो मेरी आदत है.... मेरी क्या सब की यही आदत है.... पर....पर.... ये रात के दो बजे और राम लाल दलाल और....ये बाज़ार.... और वो मोटर और बैट्री की चमक....... ये सोचते ही रौशनी के धब्बे उस की हद्द--निगाह तक फ़िज़ा में इधर उधर तैरने लगे और मोटर के इंजन की फड़फड़ाहट उसे हवा के हर झोंके में सुनाई देने लगी।

 

इस के माथे पर बाम का लेप जो सिंगार करने के दौरान में बिलकुल हल्का होगया था। पसीना आने के बाइस उस के मुसामों में दाख़िल होने लगा। और सौगंधी को अपना माथा किसी और का माथा मालूम हुआ। जब हवा का एक झोंका उस के अर्क़ आलूद माथे के पास से गुज़रा तो उसे ऐसा लगा कि सर्द सर्द टीन का टुकड़ा काट कर उस के माथे के साथ चस्पाँ कर दिया गया है।

 

सर में दर्द वैसे का वैसा मौजूद था मगर ख़यालात की भीड़ भाड़ और उन के शोर ने इस दर्द को अपने नीचे दबा रखा था। सौगंधी ने कई बार इस दर्द को अपने ख़यालात के नीचे से निकाल कर ऊपर लाना चाहा मगर नाकाम रही।

 

वो चाहती थी कि किसी किसी तरह उस का अंग अंग दुखने लगे, उस के सर में दर्द हो, उस की टांगों में दर्द हो, इस के पेट में दर्द हो, उस की बाँहों में दर्द हो। ऐसा दर्द कि वो सिर्फ़ दर्द ही का ख़याल करे और सब कुछ भूल जाये। ये सोचते सोचते उस के दिल में कुछ हुआ.... क्या ये दर्द था?.... एक लम्हे के लिए उस का दिल सिकुड़ा और फिर फैल गया.... ये किया था?.... लानत! ये तो वही ऊंह थी जो उस के दिल के अंदर कभी सिकुड़ती थी और कभी फैलती थी।

 

घर की तरफ़ सौगंधी के क़दम उठे ही थे कि रुक गए और वो ठहर कर सोचने लगी, राम लाल दलाल का ख़याल है कि उसे मेरी शक्ल पसंद नहीं आई.... शक्ल का तो उस ने ज़िक्र नहीं किया। उस ने तो ये कहा था सौगंधी तुझे पसंद नहीं क्या! उसे....... उसे....... सिर्फ़ मेरी शक्ल ही पसंद नहीं आई तो क्या हुआ?....... मुझे भी तो कई आदमियों की शक्ल पसंद नहीं आती.......

 

वो जो अमावस की रात को आया था। कितनी बुरी सूरत थी उस की.... किया मैंने नाक भौं नहीं चढ़ाई थी? जब वो मेरे साथ सोने लगा था तो मुझे घिन नहीं आई थी?.... क्या मुझे उबकाई आते आते नहीं रुक गई थी?.... ठीक है, पर सौगंधी....... तू ने उसे धुतकारा नहीं था।

 

तू ने उस को ठुकराया नहीं था ....... उस मोटर वाले सेठ ने तो तेरे मुँह पर थूका है.... ऊंह....... इस ऊंह का और मतलब ही क्या है?....... यही कि इस छछूंदर के सर में चम्बेली का तेल....... ऊंह....... ये मुँह और मसूर की दाल....... अरे राम लाल तू ये छिपकली कहाँ से पकड़ करले आया है....... इस लौंडिया की इतनी तारीफ़ कर रहा है तू....... दस रुपये और ये औरत....... ख़च्चर क्या बुरी है।

 

सौगंधी सोच रही थी और उस के पैर के अंगूठे से लेकर सर की चोटी तक गर्म लहरें दौड़ रही थीं। उस को कभी अपने आप पर ग़ुस्सा आता था, कभी राम लाल दलाल पर जिस ने रात के दो बजे उसे बे-आराम किया। लेकिन फ़ौरन ही दोनों को बेक़सूर पा कर वो सेठ का ख़याल करती थी।

 

इस ख़याल के आते ही उस की आँखें, उस के कान, उस की बाँहें, उस की टांगें, उस का सब कुछ मुड़ता था कि उस सेठ को कहीं देख पाए.... उस के अंदर ख़्वाहिश बड़ी शिद्दत से पैदा होरही थी कि जो कुछ हो चुका है एक बार फिर हो.......सिर्फ़ एक बार....... वो हौले हौले मोटर की तरफ़ बढ़े।

 

मोटर के अंदर से एक हाथ बैट्री निकाले और इस के चेहरे पर रौशनी फेंके। ऊंह की आवाज़ आए और वो....... सौगंधी अंधा धुंद अपने दोनों पंजों से उस का मुँह नोचना शुरू करदे। वहशी बिल्ली की तरह झपटे और....... और अपनी उंगलियों के सारे नाख़ुन जो उस ने मौजूदा फ़ैशन के मुताबिक़ बढ़ा रखे थे।

 

उस सेठ के गालों में गाड़ दे....... बालों से पकड़ कर उसे बाहर घसीट ले और धड़ा धड़ मुक्के मारना शुरू करदे और जब थक जाये....... जब थक जाये तो रोना शुरू कर दे।

 

रोने का ख़याल सौगंधी को सिर्फ़ इस लिए आया कि उस की आँखों में ग़ुस्से और बेबसी की शिद्दत के बाइस तीन चार बड़े बड़े आँसू बन रहे थे। इका ईकी सौगंधी ने अपनी आँखों से सवाल किया। तुम रोती क्यों हो? तुम्हें क्या हुआ है कि टपकने लगी हो?....... आँखों से क्या हुआ सवाल चंद लम्हात तक इन आँसूओं में तैरता रहा जो अब पलकों पर काँप रहे थे। सौगंधी इन आँसूओं में से देर तक उस ख़ला को घूरती रही जिधर सेठ की मोटर गई थी।

 

फड़फड़फड़....... ये आवाज़ कहाँ से आई? सौगंधी ने चौंक कर इधर उधर देखा लेकिन किसी को पाया.... अरे ये तो उस का दिल फड़फड़ाया था। वो समझी थी मोटर का इंजन बोला है.... उस का दिल.... ये क्या होगया था उस के दिल को!

आज ही रोग लग गया था उसे.... अच्छा भला चलता चलता एक जगह रुक कर धड़ धड़ क्यों करता था.... बिलकुल उसे घिसे हुए रिकार्ड की तरह जो सोई के नीचे एक जगह आके रुक जाता है। रात कटी गिन गिन तारे कहता कहता तारे तारे की रट लगा देता था।

 

सौगंधी बदसूरत तो नहीं थी। ये ख़याल आते ही वो तमाम अक्स एक एक करके उस की आँखों के सामने आने लगे। जो इन पाँच बरसों के दौरान में वो आईने में देख चुकी थी। इस में शक नहीं कि उस का रंग रूप अब वो नहीं रहा था।

 

जो आज से पाँच साल पहले था जब कि वो तमाम फ़िक़्रों से आज़ाद अपने माँ बाप के साथ रहा करती थी। लेकिन वो बदसूरत तो नहीं होगई थी। उस की शक्ल--सूरत उन आम औरतों की सी थी जिन की तरफ़ मर्द गुज़रते गुज़रते घूर के देख लिया करते हैं।

 

इस में वो तमाम खूबियां मौजूद थीं जो सौगंधी के ख़याल में हर मर्द उस औरत में ज़रूरी समझता है जिस के साथ उसे एक दो रातें बसर करना होती हैं। वो जवान थी, उस के आज़ा मुतनासिब थे। कभी कभी नहाते वक़्त जब उस की निगाहें अपनी रानों पर पड़ती थीं। तो वो ख़ुद उन की गोलाई और गुदगुदाहट को पसंद क्या करती थी। वो ख़ुशख़ल्क़ थी।

 

इन पाँच बरसों के दौरान में शायद ही कोई आदमी उस से नाख़ुश हो कर गया हो....... बड़ी मिलनसार थी, बड़ी रहमदिल थी। पिछले दिनों जब क्रिसमस में वो कोल पेठा में रहा करती थी, एक नौजवान लड़का उस के पास आया था। सुबह उठ कर जब उस ने दूसरे कमरे में जा कर खूंटी से कोट उतारा तो बटवा ग़ायब पाया।

 

सौगंधी का नौकर ये बटवा ले उड़ा था। बेचारा बहुत परेशान हुआ। छुट्टियां गुज़ारने के लिए हैदराबाद से बंबई आया था। अब उस के पास वापस जाने के लिए दाम थे। सौगंधी ने तरस खा कर उसे उस के दस रुपय वापस दे दिए थे.... मुझ में क्या बुराई है? सौगंधी ने ये सवाल हर उस चीज़ से किया जो उस की आँखों के सामने थी।

 

गैस के अंधे लैम्प, लोहे के खंबे, फुटपाथ के चौकोर पत्थर और सड़क की उखड़ी हुई बजरी.... इन सब चीज़ों की तरफ़ उस ने बारी बारी देखा, फिर आसमान की तरफ़ निगाहें उठाईं। जो उस के ऊपर झुका हुआ था। मगर सौगंधी को कोई जवाब मिला।

जवाब उस के अंदर मौजूद था। वो जानती थी कि वो बुरी नहीं अच्छी है, पर वो चाहती थी कि कोई उस की ताईद करे.... कोई.... कोई.... इस वक़्त उस के काँधों पर हाथ रख कर सिर्फ़ इतना कह दे।सौगंधी! कौन कहता है, तू बुरी है, जो तुझे बुरा कहे वो आप बुरा है” ....... नहीं ये कहने की कोई ज़रूरत नहीं थी। किसी का इतना कह देना काफ़ी था।सौगंधी तू बहुत अच्छी है!”

 

वो सोचने लगी कि वो क्यों चाहती है कोई उस की तारीफ़ करे। इस से पहले उसे इस बात की इतनी शिद्दत से ज़रूरत महसूस हुई थी। आज क्यों वो बेजान चीज़ों को भी ऐसी नज़रों से देखती है जैसे उन पर अपने अच्छे होने का एहसास तारी करना चाहती है, उस के जिस्म का ज़र्रा ज़र्रा क्यों माँ बन रहा है.......

 

वो माँ बन कर धरती की हर शैय को अपनी गोद में लेने के लिए क्यों तैय्यार हो रही थी? ....... उस का जी क्यों चाहता था कि सामने वाले गैस के आहनी खंबे के साथ चिमट जाये और उस के सर्द लोहे पर अपने गाल रख दे ....... अपने गर्मगर्म गाल और उस की सारी सर्दी चूस ले।

 

थोड़ी देर के लिए उसे ऐसा महसूस हुआ कि गैस के अंधे लैम्प, लोहे के खंबे, फुटपाथ के चौकोर पत्थर और हर वो शैय जो रात के सन्नाटे में उस के आस पास थी। हमदर्दी की नज़रों से उसे देख रही है और उस के ऊपर झुका हुआ आसमान भी जो मटियाले रंग की ऐसी मोटी चादर मालूम होता था जिस में बेशुमार सूराख़ हो रहे हैं

 

उस की बातें समझता था और सौगंधी को भी ऐसा लगता था कि वो तारों का टिमटिमाना समझती है.... लेकिन उस के अंदर क्या गड़बड़ थी?....... वो क्यों अपने अंदर उस मौसम की फ़िज़ा महसूस करती थी जो बारिश से पहले देखने में आया करता है....... उस का जी चाहता था कि उस के जिस्म का हर मुसाम खुल जाये। और जो कुछ उस के अंदर उबल रहा है उन के रस्ते बाहर निकल जाये। पर ये कैसे हो....... कैसे हो?

 

सौगंधी गली के नुक्कड़ पर ख़त डालने वाले लाल भबके के पास खड़ी थी....... हवा के तेज़ झोंके से उस भबके की आहनी ज़बान जो उस के खुले हुए मुँह में लटकती रहती है, लड़खड़ाई तो सौगंधी की निगाहें यक--यक उस की तरफ़ उठीं जिधर मोटर गई थी मगर उसे कुछ नज़र आया .... उसे कितनी ज़बरदस्त आरज़ू थी कि मोटर फिर एक बार आए और.... और.... आए.... बलासे.... मैं अपनी जान क्यों बेकार हलकान करूं।

 

घर चलते हैं और आराम से लंबी तान कर सोते हैं। इन झगड़ों में रखा ही किया है। मुफ़्त की दर्द सरी ही तो है.... चल सौगंधी घर चल.... ठंडे पानी का एक डोंगा पी और थोड़ा सा बाम मल कर सो जा.... फस्ट क्लास नींद आएगी और सब ठीक हो जाएगा ....... सेठ और उस की मोटर की ऐसी तैसी.......

 

ये सोचते हुए सौगंधी का बोझ हल्का होगया। जैसे वो किसी ठंडे तालाब से नहा धो कर बाहर निकली है। जिस तरह पूजा करने के बाद इस का जिस्म हल्का हो जाता था, इसी तरह अब भी हल्का होगया था। घर की तरफ़ चलने लगी तो ख़यालात का बोझ होने के बाइस उस के क़दम कई बार लड़खड़ाए।

 

अपने मकान के पास पहुंची तो एक टीस के साथ फिर तमाम वाक़िया उस के दिल में उठा और दर्द की तरह उस के रोएँ रोएँ पर छा गया ....... क़दम फिर बोझल होगए और वो इस बात को शिद्दत के साथ महसूस करने लगी कि घर से बुला कर, बाहर बाज़ार में मुँह पर रौशनी का चांटा मार कर एक आदमी ने उस की अभी अभी हतक की है।

 

ये ख़याल आया तो उस ने अपनी पसलियों पर किसी के सख़्त अंगूठे महसूस किए जैसे कोई उसे भेड़ बकरी की तरह दबा दबा कर देख रहा है कि आया गोश्त भी है या बाल ही बाल हैं....... उस सेठ ने....... परमात्मा करे....... सौगंधी ने चाहा कि उस को बद-दुआ दे, मगर सोचा, बद-दुआ देने से क्या बनेगा।

 

मज़ा तो जब था कि वो सामने होता और वो इस के वजूद के हर ज़र्रे पर लानतें लिख देती.... उस के मुँह पर कुछ ऐसे अल्फ़ाज़ कहती कि ज़िंदगी भर बेचैन रहता.... कपड़े फाड़ कर उस के सामने नंगी हो जाती और कहती।यही लेने आया था ना तू?....... ले दाम दिए बिना ले जा इसे....... ये जो कुछ मैं हूँ, जो कुछ मेरे अंदर छुपा हुआ है वो तू क्या, तेरा बाप भी नहीं ख़रीद सकता.... ”

 

इंतिक़ाम के नए नए तरीक़े सौगंधी के ज़हेन में आरहे थे। अगर उस सेठ से एक बार.... सिर्फ़ एक बार.... उस की मुडभीड़ हो जाये तो ये करे। नहीं ये नहीं। ये करे....... यूं उस से इंतिक़ाम ले, नहीं यूं नहीं....... लेकिन जब सौगंधी सोचती कि सेठ से उस का दुबारा मिलना मुहाल है तो वो उसे एक छोटी सी गाली देने ही पर ख़ुद को राज़ी कर लेती.... बस सिर्फ़ एक छोटी सी गाली, जो उस की नाक पर चिपकू मक्खी की तरह बैठ जाये और हमेशा वहीं जमी रहे।

 

इसी उधेड़ बुन में वो दूसरी मंज़िल पर अपनी खोली के पास पहुंच गई। चोली में से चाबी निकाल कर ताला खोलने के लिए हाथ बढ़ाया तो चाबी हवा ही में घूम कर रह गई! कंडे में ताला नहीं था। सौगंधी ने किवाड़ अंदर की तरफ़ दबाये तो हल्की सी चिड़चिड़ाहट पैदा हुई। अंदर से कुंडी खोली गई और दरवाज़े ने जमाई ली, सौगंधी अंदर दाख़िल हो गई।

 

माधव मोंछों में हंसा और दरवाज़ा बंद करके सौगंधी से कहने लगा।आज तू ने मेरा कहा मान ही लिया.... सुबह की सैर तंदरुस्ती के लिए बड़ी अच्छी होती है। हर रोज़ इस तरह सुबह उठ कर घूमने जाया करेगी तो तेरी सारी सुस्ती दूर हो जाएगी और वो तेरी कमर का दर्द भी ग़ायब हो जाएगा, जिस की बाबत तू आए दिन शिकायत क्या करती है....... विक्टोरिया गार्डन तक हो आई होगी तू?........... क्यों?”

 

सौगंधी ने कोई जवाब दिया और माधव ने जवाब की ख़्वाहिश ज़ाहिर की। दरअसल जब माधव बात किया करता था तो उस का मतलब ये नहीं होता था कि सौगंधी ज़रूर उस में हिस्सा ले और सौगंधी जब कोई बात क्या करती थी ये ज़रूरी नहीं होता था कि माधव उस में हिस्सा ले....... चूँकि कोई बात करना होती थी। इस लिए वो कह दिया करते थे।

 

माधव बेद की कुर्सी पर बैठ गया। जिस की पुश्त पर इस के तेल से चपड़े हुए सर ने मेल का एक बहुत बड़ा धब्बा बना रखा था। और टांग पर टांग रख कर अपनी मूंछों पर उंगलियां फेरने लगा।

 

सौगंधी पलंग पर बैठ गई। और माधव से कहने लगी।मैं आज तेरा इंतिज़ार कर रही थी।

माधव बड़ा सिटपिटाया।इंतिज़ार?....... तुझे कैसे मालूम हुआ कि मैं आज आने वाला हूँ। 

सौगंधी के भिंचे हुए लब खुले। उन पर एक पीली मुस्कुराहट नुमूदार हुई।मैंने रात तुझे सपने में देखा था.... उठी तो कोई भी था। सूजी ने कहा, चलो कहीं बाहर घूम आएं.... और.... ”

 

माधव ख़ुश होकर बोला।और मैं आगया....... भई बड़े लोगों की बातें बड़ी पक्की होती हैं। किसी ने ठीक कहा है, दिल को दिल से राह होती है.... तू ने ये सपना कब देखा था?”

सौगंधी ने जवाब दिया।चार बजे के क़रीब।

माधव कुर्सी से उठ कर सौगंधी के पास बैठ गया।और मैं ने तुझे ठीक दो बजे सपने में देखा....... जैसे तू फूलों वाली साड़ी....... अरे बिलकुल यही साड़ी पहने मेरे पास खड़ी है तेरे हाथों में....... क्या था तेरे हाथों में!....... हाँ तेरे हाथों में रूपों से भरी हुई थैली थी। तू ने ये थैली मेरी झोली में रख दी। और कहा। माधव तू चिंता क्यों करता है?.... ले ये थैली.... अरे तेरे मेरे रुपय क्या दो हैं?.......सौगंधी तेरी जान की क़सम फ़ौरन उठा और टिकट कटा कर इधर का रुख़ किया.... क्या सुनाऊं बड़ी परेशानी है!.......

 

बैठे बिठाए एक केस हो गया है अब बीस तीस रुपय हों तो....... इन्सपैक्टर की मुट्ठी गर्म करके छुटकारा मिले....... थक तो नहीं गई तू? लेट जा मेरी तरफ़ पैर करके लेट जा। सौगंधी लेट गई। दोनों बाँहों का तकिया बना कर वो उन पर सर रख कर लेट गई।

 

और इस लहजे में जो उस का अपना नहीं था, माधव से कहने लगी।माधव ये किस मोए ने तुझ पर केस किया है?....... बेल वेल का डर हो तो मुझ से कह दे बीस तीस किया सौ पच्चास भी ऐसे मौक़ों पर पुलिस के हाथ में थमा दिए जाएं तो फ़ायदा अपना ही है....... जान बची लाखों पाए.... बस बस अब जाने दे।

 

थकन कुछ ज़्यादा नहीं है.... मुट्ठी चापी छोड़ और मुझे सारी बात सुना.... केस का नाम सुनते ही मेरा दिल धक धक करने लगा है....... वापस कब जाएगा तू?”

 

माधव को सौगंधी के मुँह से शराब की बॉस आई तो उस ने ये मौक़ा अच्छा समझा और झट से कहा।दोपहर की गाड़ी से वापस जाना पड़ेगा.... अगर शाम तक सब इन्सपैक्टर को सौ पच्चास थमाए तो.... ज़्यादा देने की ज़रूरत नहीं। मैं समझता हूँ पच्चास में काम चल जाएगा।

 

पच्चास!” ये कह कर सौगंधी बड़े आराम से उठी और उन चार तस्वीरों के पास आहिस्ता आहिस्ता गई। जो दीवार पर लटक रही थीं। बाएं तरफ़ से तीसरे फ़्रेम में माधव की तस्वीर थी।

 

बड़े बड़े फूलों वाले पर्दे के आगे कुर्सी पर वो दोनों रानों पर अपने हाथ रखे बैठा था। एक हाथ में गुलाब का फूल था। पास ही तिपाई पर दो मोटी मोटी किताबें धरी थीं। तस्वीर उतरवाते वक़्त तस्वीर उतरवाने का ख़याल माधव पर इस क़दर ग़ालिब था कि उस की हर शैय तस्वीर से बाहर निकल निकल कर पुकार रही थी।हमारा फ़ोटो उतरेगा। हमारा फ़ोटो उतरेगा!”

 

कैमरे की तरफ़ माधव आँखें फाड़ फाड़ कर देख रहा था और ऐसा मालूम होता था कि फ़ोटो उतरवाते वक़्त उसे बहुत तकलीफ़ हो रही थी।

 

सौगंधी खिखला कर हंस पड़ी....... उस की हंसी कुछ ऐसी तीखी और नोकीली थी कि माधव के सूईयां सी चुभीं। पलंग पर से उठ कर वह सौगंधी के पास गया। किस की तस्वीर देख कर तू इस क़दर ज़ोर से हंसी है?”

 

सौगंधी ने बाएं हाथ की पहली तस्वीर की तरफ़ इशारा किया जो म्युनिसिपल के दारोग़ा--सफ़ाई की थी। उस की....... मुंशी पाल्टी के दारोगा की.... ज़रा देख तो इस का थोबड़ा....... कहता था, एक रानी मुझ पर आशिक़ होगई थी....... ऊंह! ये मुँह और मसूर की दाल। ये कह कर सौगंधी ने फ़्रेम को इस ज़ोर से खींचा कि दीवार में से कील भी पलस्तर समेत उखड़ आई!

 

माधव की हैरत अभी दूर हुई थी कि सौगंधी ने फ़्रेम को खिड़की से बाहर फेंक दिया। दो मंज़िलों से फ्रे़म नीचे ज़मीन पर गिरा और कांच टूटने की झनकार सुनाई दी। सौगंधी ने इस झनकार के साथ कहा।रानी भंगन कचरा उठाने आएगी। तू मेरे इस राजा को भी साथ ले जाएगी।

 

एक बार फिर उसी नोकीली और तीखी हंसी की फ़ुवार सौगंधी के होंटों से गिरना शुरू हुई जैसे वो उन पर चाक़ू या छुरी की धार तेज़ कर रही है।माधव बड़ी मुश्किल से मुस्कुराया। फिर हंसा।ही ही ही.... ”

 

सौगंधी ने दूसरा फ़्रेम भी नोच लिया और खिड़की से बाहर फेंक दिया।इस साले का यहां क्या मतलब है?....... भोंडी शक्ल का कोई आदमी यहां नहीं रहेगा....... क्यों माधव?”

माधव फिर बड़ी मुश्किल से मुस्कुराया और फिर हंसा।ही ही ही।

 

एक हाथ से सौगंधी ने पगड़ी वाले की तस्वीर उतारी और दूसरा हाथ उस फ़्रेम की तरफ़ बढ़ाया जिस में माधव का फ़ोटो जुड़ा था। माधव अपनी जगह पर सिमट गया, जैसे हाथ उस की तरफ़ बढ़ रहा है। एक सैकिण्ड में फ़्रेम कील समेत सौगंधी के हाथ में था।

 

ज़ोर का क़हक़हा लगा कर उस ने ऊंह की और दोनों फ़्रेम एक साथ खिड़की में से बाहर फेंक दिए। दो मंज़िलों से जब फ़्रेम ज़मीन पर गिरे तो कांच टूटने की आवाज़ आई। तो माधव को ऐसा मालूम हुआ कि उस के अंदर कोई चीज़ टूट गई है। बड़ी मुश्किल से उस ने हंस कर कहा।अच्छा किया?....... मुझे भी ये फ़ोटो पसंद नहीं था।

 

आहिस्ता आहिस्ता सौगंधी माधव के पास आई और कहने लगी।तुझे ये फ़ोटो पसंद नहीं था। पर मैं पूछती हूँ तुझ में ऐसी कौन सी चीज़ है जो किसी को पसंद आसकती है....... तेरी पकौड़ा ऐसी नाक।

 

ये तेरा बालों भरा माथा। ये तेरे सूजे हुए नथुने। ये तेरे बढ़े हुए कान, ये तेरे मुँह की बॉस, ये तेरे बदन का मेल?....... तुझे अपना फ़ोटो पसंद नहीं था, ऊंह....... पसंद क्यों होता, तेरे ऐब जो छुपा रखे थे इस ने....... आजकल ज़माना ही ऐसा है जो ऐब छुपाए वही बुरा....... ”

 

माधव पीछे हटता गया। आख़िर जब वो दीवार के साथ लग गया तो उस ने अपनी आवाज़ में ज़ोर पैदा करके कहा।देख सौगंधी, मुझे ऐसा दिखाई देता है कि तू ने फिर से अपना धंदा शुरू कर दिया है.... अब मैं तुझ से आख़िरी बार कहता हूँ....... ”

 

सौगंधी ने इस से आगे माधव के लहजे में कहना शुरू किया।अगर तू ने फिर से धंदा शुरू किया तो बस तेरी मेरी टूट जाएगी। अगर तू ने फिर किसी को अपने यहां बुलाया तो चुटिया से पकड़ कर तुझे बाहर निकाल दूंगा....... इस महीने का ख़र्च मैं तुझे पूना से ही मनी आर्डर कर दूँगा....... हाँ क्या भाड़ा है इस खोली का?”

 

माधव चकरा गया।

सौगंधी ने कहना शुरू किया।मैं बताती हूँ....... पंद्रह रुपया भाड़ा है इस खोली का....... और दस रुपया भाड़ा है मेरा....... और जैसा तुझे मालूम है। ढाई रुपय दलाल के। बाक़ी रहे साढ़े सात। है साढ़े सात? इन साढ़े सात रूपियों में मैं ने ऐसी चीज़ देने का वचन दिया था जो मैं दे ही नहीं सकती थी।

 

और तू ऐसी चीज़ लेने आया था। जो तू ले ही नहीं सकता था....... तेरा मेरा नाता ही किया था। कुछ भी नहीं। बस ये दस रुपय तेरे और मेरे बीच में बज रहे थे, सौ हम दोनों ने मिल कर ऐसी बात की कि तुझे मेरी ज़रूरत और मुझे तेरी....... पहले तेरे और मेरे बीच में दस रुपय बजते थे, आज पच्चास बज रहे हैं। तू भी इन का बजना सुन रहा है और मैं भी इन का बजना सन रही हूँ....... ये तूने अपने बालों का क्या सत्यानास कर रखा है?”

 

ये कह कर सौगंधी ने माधव की टोपी उंगली से एक तरफ़ उड़ा दी। ये हरकत माधव को बहुत नागवार गुज़री। उस ने बड़े कड़े लहजे में कहा।सौगंधी!”

 

सौगंधी ने माधव की जेब से रूमाल निकाल कर सूँघा और ज़मीन पर फेंक दिया।ये चीथड़े, ये चन्दीयाँ....... उफ़ कितनी बुरी बॉस आती है, उठा के बाहर फेंक उन को....... ”

माधव चिल्लाया।सौगंधी।

 

सौगंधी ने तेज़ लहजे में कहा।सौगंधी के बच्चे तू आया किस लिए है यहां?....... तेरी माँ रहती है इस जगह जो तुझे पच्चास रुपय देगी? या तू कोई ऐसा बड़ा गबरू जवान है जो मैं तुझ पर आशिक़ होगई हूँ....... कुत्ते, कमीने, मुझ पर रोब गांठता है? मैं तेरी दबैल हूँ क्या... भिक मंगे तू अपने आप को समझ क्या बैठा है... मैं कहती हूँ तू है कौन... चौर या गठ कतरा... इस वक़्त तू मेरे मकान में करने क्या आया है? बुलाऊं पुलिस को....... पूने में तुझ पर केस हो हो। यहां तो तुझ पर एक केस खड़ा कर दूँ....... ”

 

माधव सहम गया। दबे हुए लहजे में वो सिर्फ़ इस क़दर कह सका।सौगंधी, तुझे क्या हो गया है?”

 

मेरी माँ का सर....... तू होता कौन है मुझ से ऐसे सवाल करने वाला....... भाग यहां से, वर्ना....... ” सौगंधी की बुलंद आवाज़ सुन कर इस का ख़ारिश ज़दा कुत्ता जो सूखे हुए चप्पलों पर मुँह रखे सौ रहा था। हड़बड़ा कर उठ बैठा और माधव की तरफ़ मुँह उठा कर भोंकना शुरू कर दिया। कुत्ते के भौंकने के साथ ही सौगंधी ज़ोर से हँसने लगी।

 

माधव डर गया। गिरी हुई टोपी उठाने के लिए वो झुका तो सौगंधी की गरज सुनाई दी।ख़बरदार....... पड़ी रहने दे वहीं ....... तू जा, तेरे पूना पहुंचते ही में इस को मनी आर्डर कर दूँगी। ये कह कर वो और ज़ोर से हंसी और हंसते हंसते कुर्सी पर बैठ गई।

 

उस के ख़ारिश ज़दा कुत्ते ने भौंक भौंक कर माधव को कमरे से बाहर निकाल दिया। सीढ़ीयां उतार कर जब कुत्ता अपनी टिंड मुन्ड दुम हिलाता सौगंधी के पास आया और उस के क़दमों के पास बैठ कर कान फड़फड़ाने लगा। तो सौगंधी चौंकि....... उस ने अपने चारों तरफ़ एक हौलनाक सन्नाटा देखा....... ऐसा सन्नाटा जो उस ने पहले कभी देखा था।

 

उसे ऐसा लगा कि हर शैय ख़ाली है....... जैसे मुसाफ़िरों से लदी हुई रेलगाड़ी सब स्टेशनों पर मुसाफ़िर उतार कर अब लोहे के शैड में बिलकुल अकेली खड़ी है....... ये ख़ला जो अचानक सौगंधी के अंदर पैदा होगया था।

 

उसे बहुत तकलीफ़ दे रहा था। उस ने काफ़ी देर तक इस ख़ला को भरने की कोशिश की। मगर बे-सूद, वो एक ही वक़्त में बे-शुमार ख़यालात अपने दिमाग़ में ठोंसती थी मगर बिलकुल छलनी का सा हिसाब था। इधर दिमाग़ को पुर करती थी। उधर वो ख़ाली हो जाता था।

 

बहुत देर तक वो बेद की कुर्सी पर बैठी रही। सोच बिचार के बाद भी जब उस को अपना दिल पर्चाने का कोई तरीक़ा मिला तो इस ने अपने ख़ारिश ज़दा कुत्ते को गोद में उठाया और सागवान के चौड़े पलंग पर उसे पहलू में लिटा कर सो गई।

The End

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Photos are from Pinterest with thanks.

 

 

























































 









Friday 29 July 2022

Rumi’s 'Union With God':- Mystic Crazy Love Quotes of Rumi, As Explained By Kamaljeet Grewal

Rumi was born Jalal ud-Din Mohammad Rumi (1207 –1273), in present-day Afghanistan to Persian-speaking parents. Although he had many different names, his best-known moniker, "Rumi," means "from Rum" (or Rome), a region in the Byzantine Empire at the time.


A Muslim poet, theologian, Islamic scholar, and jurist, Rumi's influence knew no bounds during his lifetime. Today, his legacy lives on throughout the world.

 

Rumi: Was a superstar of his time, his poems were POP music of that time. Admired loved and cherished in the East ever since and in the West and globally since the 1990s. Thirteenth Century mystic Rumi’s love poems has taken the world by storm.

 

Rumi -The great Sufi Poet of mystic Love, of the 13th century has composed his mystic poems and prose works in Persian.

 

Rumi was the most famous personality in the region and his fame and unique mystic poetic style full of Romance had already spread 3,000 miles away to India during his lifetime.

 

It's impossible today to imagine how popular poetry of Love with a mix of mystic was at the time of Rumi. It was the pop music of its time. Rumi is sometimes called the Master of Mystic Love because the Sufi path strives for ecstatic ego and annihilation in the fires of Divine Love. 


His Sufi poems and works have the real essence of union with Beloved God, " the primal - The God", the concept of tauhid (Indivisible Oneness of God).

 

In his poems he added mystical references, direct emotional expressions, issues involving maturity and growth of the soul and even anecdotes about daily life.

 

Rumi's explanation of love is one of his best-known quotes:-- “This is love: to fly toward a secret sky, to cause a hundred veils to fall each moment. First to let go of life. Finally, to take a step without feet.”

Whirling Darvish

His thoughts about life are also widely known, including "Life is a balance of holding on and letting go."

 

During his career, Rumi wrote several influential works that are available for reading.

 

One of the most popular was "The Masani," considered by some to be the Persian Quran equivalent. He's also known for The Divan, another of his main poetry collections. (For Rumi translations, consider reading "The Essential Rumi," "The Illuminated Rumi," and "The Soul of Rumi.")

 

His writings formed the basis of classical Iranian and Afghan music, and his philosophy provides an excellent introduction to Sufism, a "mystical Islamic belief and practice in which Muslims seek to find the truth of divine love and knowledge through direct personal experience of God."

 

Use these quotes to inspire yourself in all aspects of your life, especially in the pursuit of unconditional love and happiness.

  

Translation is an art but to explain the poem in simple words, expressing what the poet wants to convey is a science.

 

It is difficult to follow in depth the message and spirit of Rumi's poems, based only on translations.

 

Kamaljeet Grewal has filled this gap by explaining the real 

spirit of Rumi’s poem by her explanations.

kamaljeet Grewal

Today I have taken the, Motivation and inspirations by a multi talented Kamaljeet Grewal, on my blog. She is from Kolkata. Widely travelled such as, Canada, Australia, Russia, South Africa, most of Europe, Japan and many other countries.

 

Her travels have broadened her horizons, added to her wisdom. Today she stands with an understanding that we all are all citizens of one World, with diverse backgrounds, history and culture.

 

This wisdom has made her an expert interpreter of the works of Rumi, Hafiz, Tagore and many spiritual texts. Though she is not a Sufi scholar, and she has elaborated Rumi's poems in graceful words that hit the hearts of its readers.

 

She motivates with her thoughts and explanations of Spiritual Masters of the old Golden Period. She is on hot seat of a group “OSIS” on face book, where she replies the question asked by member friends.

 

Though she is not a Sufi scholar, and she has elaborated Rumi's poems in graceful words that hit the hearts of its readers.

 

1- All that you think is rain is not...

Behind the veil angels sometimes weep. (Rumi)

 

Beautiful lines of Rumi...

Every living being...and those on a higher plane, like angels...are yearning to meet the Beloved.

Angels are messengers of God and go about delivering miracles as directed by God ...yet they also yearn to reach God...

Rumi uses symbolism when he likens the rain water to tears of angels...Shed in their yearning to be with God.....

Every being. Whether celestial..divine or mortal is yearning for union with God!

 

2- Wander with drunks

if you want to know

what they have been hiding.

They will open

the purse - mouth

and spend the lavishness. (Rumi)

 

These are beautiful inspiring lines of Rumi.

...

By 'drunks' Rumi means those beings who are drunk by the divine name of God ...These blessed beings never make a show of this precious possession.

They remain intoxicated in this state...feeling one with God.

But if another seeker wishes to join them ..they welcome him ...and then keep nothing hidden from a true seeker.

The new seeker is welcomed and with an open heart shown the beauty of God's name that they have acquired...thus initiating the new seeker.

 

3- Because of your Love

I have become the giver of Light! (Rumi)

 

His Love, fills me with a Divine Light, which enlightens and brightens the ambience around, spreading positivity and touching souls around with Love and Light!

Beautiful quote by Rumi.

 

His Love , fills me with a Divine Light , which enlightens and brightens the ambience around, spreading positivity and touching souls around with Love and Light !

 

4-When all your desires are distilled

You will cast just two votes...

...To Love more and be happy. (Rumi)

 

When the youth is spent. And one gives up running in the rat race ...when amassing wealth and hoarding is no more an attraction ...desires are filtered and distilled....they become crystal clear!

One wants to unclutter life!

And one clearly becomes sure of what he wants from life and what he wants to give it too!

The answer is..

LOVE

To give Love in abundance as one has realised that only in giving Love..lies happiness..

Rumi puts the essence of life in a nutshell!

 

5-Fall in Love

in such a way

that it frees you

from any connecting. (Rumi)

 

Beautiful lines of Rumi...

Paradoxical??

Well, not really if we look at the deeper elements of Rumi thoughts.

We look for Love that binds ...Yet Rumi feels that Love frees one from all connections..

How?

Love never blooms in possession, in fact it chains the free flow of Love.

Love blossoms when it is left free ...It is nurtured by trust and faith ....which again springs up from a freedom  of thoughts ...and one can think like Rumi ....

 6-Take sips of this pure wine

.......being poured.

Do not mind that ..

you have been given ...

an unwashed cup. (Rumi)

 

Beautiful lines of Rumi.....

If pure wine is being served in the name of the Beloved. ...just enjoy it ...do not break the continuity of the intoxication by looking at the unwashed glass...

An unwashed glass also becomes pure when the wine of His name is being served.

By the 'unwashed cup', Rumi means,  leave behind the mundane jobs of this world and focus on reaching the Beloved .......

 

7-You were so kind to us last night

that I felt your hand scratching

behind my ears until dawn.

You are a clever pickpocket,

but I have stolen more than you. (Rumi)

 

In these beautiful lines of the seeker Rumi ...one sees the seeker robbing his gain from the Beloved God ..

At night,  the seeker feels one with God's presence in his prayers.....He feels the presence of God closely ..so much so that a feeling of being touched by God is felt .

The following morning, the seeker seems to feel victorious over God as he says, that God maybe feeling that by going away from His seeker He is robbing him of His close presence. But the seeker feels that he has gained the pleasure of the Beloved’s presence, and that is a treasure he  has got ...so instead of God robbing him ..He has robbed God.

These are very joyous thoughts which all seekers will enjoy with God smiling and showering His blessings from above... 


8--If someday the moon calls you by your name. ...

Don’t get surprised,

because every night I tell her about you. (Rumi)

 

It is believed that the spoken words have an aura and wings. ..and can reach the one being addressed to...

You have been in my thoughts, despite being far in miles..

In your physical absence, the moon is my true friend with whom I talk about you every night ...It listens with endless patience, calmly absorbing my Love for you ..

My repetition of your name. ..has set in its memory ...I feel you may hear the moon calling you by your name on my behalf, some night ....

(Rumi believed in the presence of God in all its creation.He often spoke to God through the various forms of Nature, sending his messages of Love)

 

9--Oh Lord,

What kind of fountain

Is the Fountain Of Love

Of which I tasted a drop

And wept a river.(Rumi)

 

As always, Rumi proclaims that the path of  Love is the only one that leads to the abode of God ...

Once this Divine Love is tasted ...a novel chain of events follow.....one experiences tears of joy which are unexplainable...tears roll down from the eyes.

unstoppable and untamed ....this flow is followed by a unique feeling of solace, which may have never be experienced before..

 

10--When I'm sad. ..

Your Love comes to me,

with a thousand smiles. (Rumi)

 

The reasons of my sadness can be various ...Yet when I think of your Love..all sorrows and cares seem to melt away..your smiles are therapeutic and gracious which light up your face. The radiance of which dims all my anguish and agony..

All my tribulations seem to get buried in the magical flood of your assuring smiles

The End

Disclaimer–Blogger has prepared this short write over love quotes  of "Master RUMI" with help of materials and images available on net. Images on this blog are posted to make the text interesting. The materials and images are the copy right of original writers. The copyright of these materials are with the respective owners. Blogger is thankful to original writers.