Saturday 1 April 2023

दास्ताने अवध-अंग्रेज रेजीडेंट ने तोप के गोले दाग़ कर रफ़ीउद्दीन हैदर उफ़ मुन्नाजान(अवैध बादशाह) को तख़्ते अवध से हटाया।

इतिहास में कुछ कहानियां अनकही रह जाती हैं। अपने अंजाम तक पहुंचने से पहले ही वे या तो किताबों के पन्नों में दफन हो जाती हैं या यूं गुम हो जाती हैं कि उनके बारे में किसी को जानकारी नहीं मिल पाती है।


अवध के द्वितीय बादशाह नसीरुद्दीन हैदर के हरम में तमाम बेगमें थी, लेकिन उनमें से किसी की गोद हरी नहीं हो सकी थी, इसलिए तख्ते सल्तनत के अगले वारिस के लिए बादशाह' से ज़्यादा बेचैनी उनकी माँ बादशाह बेगम को थी जो अंग्रेज़ों की कट्टर दुश्मत थीं

 

इन्होंने स्थिति को देखते हुए अगले वारिस की कुछ ऐसी योजना बनाई जो अवध के इतिहास में अपने ढंग की अनोखी मिसाल है। कहा जाता है, बादशाह बेगम की एक बाँदी जिसका नाम सुखचेन था, कुछ दिनों तक नसीरुद्दीत हैदर की खिदमत में रही और जब उसका पाँव भारी हो गया तो मलिकए आलिया ने उस कनीज़ को अपने संरक्षण में ले लिया क्योंकि'वो जानती थीं कि छतर मंजिल इलाक़े की कोई बेगम इस शिकस्त को सहन नहीं कर सकेगी।

सन् १८२० के सितम्बर महीने की चार तारीख़ को सुखचेन बाँदी ने मिर्जा रफ़ीउद्दीन हैदर को जन्म दिया

उसके बाद ही सुखचेन का मतंबा बढ़ा दिया गया और उसे अफ़ज़ल महल कहा जाने लगा।

इनका एक नाम भोहम्मद मेंहदी डर भी था और इनकी दादी बादशाह बेगम साहिबा इन्हें प्यार से मुन्नाजान कहकर पुकारती थीं।

 

वैसे तो बादशाह बेगम का इतना दबदबा था कि उन्होने दरबार से लेकर सारे शहर से इस बात की मंजूरी करा ली थी कि मुन्नाजात बादशाहे दोयम अवध की ही सनन्तान है। परन्तु अग्रेज़ रेजीडेंट और सल्तनत के कुछ दुश्मन जैसे तवाब आग्रामीर इत्यादि, इस तथ्य का हमेशा विरोध करते रहे। इस सिलसिले मे सबसे बड़ी भूल बादशाह नसीरुद्दीन हैदर की तरफ़ से ही हुई।

 

जिस जमाने में द्वितीय नवाब रोशनुद्दौलाकी प्रधान बेगम मलिका जमानी उनके दिलो दिमाग़ पर छाई हुईं थीं, उन्हीं दिनों उन्होने इसके पूर्व पति से हुए बेटे कॉवाजाह को अपना बेटा घोषित कर दिया था। मलिका जमानी के ही अनुरोध पर उन्होंने मुन्नाजान को अपनी औलाद मानने से इनकार कर दिया था।

 

मलिका जमानी ने ये चाल इसलिए खेली थी जिससे कैंवाजाह का भविष्य सुरक्षित हो सके जबकि ये सर्वेविदित था कि कैवाजाह से बादशाह के खून का कोई लगाव नही है।

इस प्रकार कॉवाजाह का भविष्य तो बन ही नहीं सकता था। हाँ, इस दाँव-पेच में मुन्नाजान की तकदीर ज़रूर फूट गयी।

 

जुलाई, १८३७ की रात बादशाह ने जहर पीकर अपनी आँखें मूँद ली। इस बात की ख़बर जब उनकी माँ बादशाह बेगम साहिबा को मिली तो वो तझुते सल्तनत को आबाद करने की ग़रज़ से सवारी पलटन के साथ अपने निवास स्थान अल्मास बाग़ से लाल बारादरी की तरफ़ चल पड़ी

गाजीउद्दीन हैदर और नसीरउद्दीन दोनों ने मुन्नाजान को अपने शाही नस्ल से होने को नहीं माना था

 

मुन्नाजान को गाजीउद्दीन हैदर की बेगम ने हमेशा अपना पोता और सल्तनत का सच्चा वारिस बनाकर पेश किया

 

उन्होंने अंग्रेज बहादुर और नवाब रोशनुद्दौला के तमाम विरोध के 'बावजूद मुन्नाजान को पाये हुकूमत पर 'बिठाकर ही दम लिया। जिस रात नसीरुद्दीन हैदर का इंतेक़ाल हुआ उसी की सुबह पौ फदते-फठते मुन्ताजान की ताजपोशी हो चुकी थी।

 

अवध के इतिहास में यह एक अजीबोग़रीब तारीख थी। ताजपोशी के इस हंगामे ने रेजीडेंट जनरल लू साहब, नवाब रोशनुद्दौला वजीरे ख़ास भौर दरबारी वकील गूलाम यहिया खाँ के होश उड़ा रखे थे

 

बहरहाल मुन्नाजान को तझुत से उतार देने की कोशिश में वो सब एक हो गये, इधर बेगम के तीरंदाज़ पासियों की फ़ौज और राजपूत सिपाही ऊधम मचा रहे थे तो कैप्टेन मैगनेस साहब ने मड़ियाँव छावनी से अपनी री पलटन बुला ली और वारादरी पर हमला कर दिया।

 

इसी कारण से अंग्रेज सरकार ने नवाब सआदत अली खां के बेटे नसीरउद्दौला सुहम्मद अली खां की गद्दीनशीनी का पहले से बंदोबस्त कर लिया था, मगर बेगम साहबा मानीं मुन्नाजान को लेकर लाल बारहदरी यानी उस जगह ले गयीं जहां सिंहासन था

 

रेजीडेंट ने हजार रोका और समझाया, मगर एक सुनी और ज़बरदस्ती मुन्नाजान के तख्त पर क़दम रखते ही उनकी बलाएं ली और अपने दुश्मनों से फ़ौरन बदला लेना भी शुरू कर दिया बहुतों के घर लुटवाये, कुछ को गिरफ्तार कर लिया, बाज़ क़त्ल हुए और शहर में एक हड़बोंग मच गया रेज़िडेंट साहब और उनके सहायक फ़ौरन दरबार में पहुंचे

 

बादशाह बेगम को समझाया कि मुन्नाजान सल्तनत के वारिस नहीं हो सकते और इसमें आपको हरगिज़ कामयाबी होगी फिर लाट साहब का लिखित फ़र मान दिखाया और कहा कि बेहतर यही है कि मुन्नाजान तख्त को खाली कर दें और नसीरउद्दौला को गद्दी पर बिठाया जाये , मगर किसी ने एक सुनी

बल्कि किसी ने असिस्टेंट रेजिडेंट पर हमला किया जिससे उनका चेहरा लहू लुहान हो गया रेजिडेंट ने मंडियानों से अंग्रेज़ फ़ौज पहले ही से बुलवा ली थी और उसने तस्तगाह के सामने तोपें लगा दी थीं और सिपाही कतार बांधे खड़े थे

 

मजबूरन रेजिडेंट साहब ने घड़ी हाथ में ली और कहा दस मिनट की मोहलत दी जाती है इस समय के अंदर अगर मुन्नाजान तरूत से उतरे तो ज़बरदस्ती की कार्रवाई की जायेगी इसकी भी किसी ने परवाह की हालांकि रेजिडेंट बार-बार कहते जाते थे कि अब पांच मिनट बाक़ी हैं, अब दो ही मिनट रह गये, और अब देखिए पूरा एक मिनट भी नहीं

 

इन चेतावनियों पर किसी ने ध्यान दिया और यकायक तोपों ने गुराबें मारना शुरू की आनन-फानन में तीस-चालीस आदमी गिर गये।दरबारी घबराकर गिरते -पड़ते भागे जो नृत्य मंडली मुजरा कर रही थी उसमें से भी कई आदमी जरूमी हुए शीशे के बर्तन झनाझन टूटकर गिरने लगे जब कई वफ़ादार बहादुर, जो डट कर मुकाबिला कर रहे थे, मारे जा चुके तो मुन्नाजान ने भी तख्त से गिर कर भागने का निश्चय किया, मगर पकड़ लिए गये

 

आखिर मे ब्रिगेडियर जानसन के हवलदार ने मुन्नाजान के बाजू बाँध दिये और बात'की बात में उनके सर से ताज उतार लिया गया बादशाह बेगम और बेताज के बादशाह मुन्नाजान को अग्रेजी फ़ौज की निगरानी में लखनऊ के बेली- गारद में क़ैद कर लिया गया।

 

मुन्नाजान की इस ताजपोशी को अपराध घोषित किया गया क्योंकि मरने वाले बादशाह ने उसे अपना पुत्र मानने से इन्कार कर दिया था और गवर्नर-जनरल ईस्ट इण्डिया कम्पनी सरकार की ओर से लाट ' साहब को लिखा-फरमान भी इस अवसर पर प्रस्तृत किया गया था।

 

इसी अपराध में बेगम की कुल जागीर रेजीडेंट साहब ने ज़ब्त कर ली और उन दोनों को उम्र- क़ैद की सज़ा हो गयी | गरज़ बेगम साहबा और उन्हें दोनों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया|

 

नसीरउद्दौला को गद्दी पर बिठा दिया गया जो मुहम्मदअली शाह के नाम मे अवध के बादशाह करार पाये और मन्नाजान और उनकी दादी हिरा मत में लखनऊ से कानपुर और कानपुर से क़िला चिनारगढ़ भेज दिये गये और दो हजार चार सौ रुपया माहवार उनकी तनख्वाह लखनऊ के खजाने से मुकर्रर कर दी गयी

इसी क़िले की क़ंद में पुरी उम्र गुज़ार कर अवध के ये बेक़ूसूर बन्दी मौत की गोद में सो गये

The End

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